वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि सितंबर तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में आई सुस्ती ‘प्रणालीगत’ नहीं है और तीसरी तिमाही में बेहतर सार्वजनिक व्यय के साथ आर्थिक गतिविधि इस नरमी की भरपाई कर सकती है। सीतारमण ने एक कार्यक्रम में कहा, “यह प्रणालीगत सुस्ती नहीं है। यह सार्वजनिक व्यय, पूंजीगत व्यय और इसी तरह की अन्य गतिविधियों में कमी की वजह से है…मुझे उम्मीद है कि तीसरी तिमाही में इन सबकी भरपाई हो जाएगी।”
वित्त मंत्री भारत-जापान फोरम 2024 में 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन के सिंह के साथ बातचीत कर रही थीं।
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी, लोगों की आकांक्षाएं और अर्थव्यवस्था की ज़रूरतें भारत और जापान के लिए पूरक हैं और दोनों देशों को वैश्विक दक्षिण और वैश्विक आम लोगों को प्रौद्योगिकी और स्थिरता प्रदान करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
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वित्त मंत्री ने कहा कि जीडीपी वृद्धि के नवीनतम आंकड़ों को अर्थव्यवस्था और शासन संरचना के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जो पहली तिमाही में चुनावों पर केंद्रित थी, जिसका दूसरी तिमाही पर असर पड़ा।
वित्त वर्ष 2025 की जुलाई-सितंबर अवधि में भारत की वृद्धि दर सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आ गई। वित्त वर्ष 2025 के अप्रैल-अक्टूबर की अवधि के लिए लेखा महानियंत्रक द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि पूंजीगत व्यय में साल-दर-साल (YoY) लगभग 15 प्रतिशत की गिरावट आई है।
सीतारमण उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में वृद्धि आंकड़ों पर बुरा असर पड़ना जरूरी नहीं है। हमें कई अन्य कारकों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। वित्त मंत्री ने कहा कि भारत अगले साल और उसके बाद भी सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। आम चुनाव और पूंजीगत व्यय में कमी के कारण पहली तिमाही में वृद्धि की रफ्तार सुस्त रही। इसका असर दूसरी तिमाही पर भी पड़ा है। पहली छमाही में सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपये के अपने पूंजीगत व्यय लक्ष्य का सिर्फ 37.3 प्रतिशत ही खर्च किया।
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सीतारमण ने कहा कि आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में वैश्विक मांग में स्थिरता भी शामिल है, जिसने निर्यात वृद्धि को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा, “भारतीयों की क्रय शक्ति बढ़ रही है, लेकिन भारत के भीतर आपको वेतन में वृद्धि के स्थिर होने से जुड़ी चिंताएं भी हैं। हम इन कारकों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। इनका भारत की अपनी खपत पर प्रभाव पड़ सकता है।”
जुलाई-सितंबर तिमाही में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। वहीं अप्रैल-जून तिमाही में वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत थी। इस सुस्ती के बीच रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है।
यह रेखांकित करते हुए कि भारतीयों की क्रय शक्ति में सुधार हो रहा है, वित्त मंत्री ने घरेलू खपत को प्रभावित करने वाले कारकों में भारत के भीतर मजदूरी संतृप्ति के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “हम इन कारकों से अच्छी तरह वाकिफ हैं जो भारत की अपनी खपत पर असर डाल सकते हैं… भारत के पास चुनौतियों के साथ-साथ अवसर भी हैं।”
उन्होंने कहा कि विशेष रूप से विकसित देशों में मांग में स्थिरता चिंता का विषय है, जैसा कि कृषि और संबद्ध उत्पादों के संबंध में जलवायु परिवर्तन है।
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उत्पादन के कारकों से संबंधित सुधारों को लागू करने वाले राज्यों के बारे में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, सीतारमण ने कहा कि यह देश के हित में है, और अर्थव्यवस्था को जिस गति की आवश्यकता होगी, उसके हित में ऐसे सुधार करना है। उन्होंने कहा कि कुछ राज्य पहले से ही विनियामक आसानी और व्यापार सुविधा के लिए केंद्रीय नीतियों के साथ जुड़ रहे हैं। “सरकार यह समझने के लिए कई राज्यों से बात कर रही है कि उनकी कठिनाइयाँ कहाँ से आती हैं। यह जुड़ाव जारी रहेगा; हम राज्यों से बात करेंगे और उन्हें साथ लेंगे,”
वित्त मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि वैश्विक पुनर्निर्धारण में भारत वैश्विक दक्षिण (Global South) की चिंताओं को आवाज़ देने की अपनी भूमिका को आगे बढ़ाएगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों में मंदी प्रणालीगत नहीं थी और पहली तिमाही में चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने और पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) और सार्वजनिक व्यय पर गतिविधि की अनुपस्थिति से प्रभावित हुई थी।