देश में प्रखंड स्तर पर आईटी पहल के जरिये खाद की उपलब्धता को पूरा करना खाद उद्योग के लिए एक सरदर्द बना हुआ है।
अभी खाद उद्योग के लिए दो उद्देश्य प्रमुख हैं- एक तो खाद की उपलब्धता को बनाए रखना और दूसरा बकाया खाद सब्सिडी को पूरा करना। लेकिन यदि इसको पूरा करने की मौजूदा तकनीक चलती रही तो यह खाद कंपनियों के लिए एक और मुसीबत खड़ा कर देगा। इस लिहाज से इन कंपनियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि अगर सरकार किसी ब्लॉक में खाद की उपलब्धता पर जोर देती है तो इन कंपनियों को बिना किसी छानबीन के इसे पूरा करना होता है।
अगर किसी क्षेत्र में खाद की मांग कम हो तो इन कंपनियों को सरकार की तरफ से नगण्य रियायत मिलती है। वैसे भी खाद उत्पादन की लागत में दिन-ब-दिन बढाेतरी होती जा रही है। इस लिहाज से ये कंपनियों उन क्षेत्रों की तरफ रूख करना चाहते हैं जहां इसकी मांग सबसे ज्यादा होती है। इस तरह उसे सरकार की तरफ से किसी प्रकार के रियायत मिलने की गुंजाइश नही रह जाती है।
दिल्ली की एक खाद कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अगर यूरिया की कीमत 10,000 रुपये प्रतिटन हो और अगर इसे 5,000 रुपये प्रति टन की दर से बेचा जाए तो बांकी की रकम सरकार के द्वारा बतौर सब्सिडी के दिया जाता है। लेकिन अगर कीमत इससे ज्यादा मिले तो ऐसी कोई रियायत नही मिल पाती है। इस स्थिति में हमें खोना पड़ता है।
उनके मुताबिक इस तरह की नीति के कारण कंपनी को सितंबर 2007 से जनवरी 2008 में 25 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। ये कंपनियां अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इस तरह के वित्तीय परिणामों की घोषणा नही करना चाहते। बाजार और सरकार की इस नीति के कारण इन कंपनियों को व्यापार करने में घाटा हो रहा है।