वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह इस अक्टूबर में आठ महीनों में पहली बार एक लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा था। अब अहम मुद्दा यह है कि क्या यह स्तर आगे भी बरकरार रहेगा क्योंकि अक्टूबर का संग्रह मुख्य रूप से सितंबर से आर्थिक क्षेत्रों को खोलने की शुरुआत की बदौलत था। किसी भी महीने का संग्रह उससे पिछले महीने के कारोबार के लिए होता है।
अक्टूबर में जीएसटी संग्रह 1.05 लाख करोड़ रुपये रहा था। यह पिछले साल के इसी महीने के संग्रह 95,379 करोड़ रुपये से न केवल 10 फीसदी अधिक था बल्कि फरवरी के संग्रह के लगभग बराबर भी था। फरवरी लॉकडाउन से पहले का महीना था और उस समय देश में महामारी नहीं फैली थी।
सरकार ने दावा किया कि जीएसटी संग्रह में सालाना आधार पर वृद्धि और महीने पिछले के मुकाबले चार फीसदी बढ़ोतरी आार्थिक और राजस्व सुधार का संकेत है। जीएसटी संग्रह सितंबर में 95,840 करोड़ रुपये रहा था। हालांकि बहुत से लोगों का कहना है कि दबी मांग के चलते अक्टूबर में जीएसटी संग्रह का आंकड़ा ऊंचा रहा, लेकिन वित्त सचिव अजय भूषण पांडेय इससे पूर्णतया सहमत नहीं हैं।
वह कहते हैं, ‘यह सितंबर में सालाना आधार पर चार फीसदी अधिक था। अगर दबी हुई मांग थी तो यह अक्टूबर में घटनी चाहिए थी। लेकिन अक्टूबर में संग्रह सालाना आधार पर 10 फीसदी अधिक रहा।’ वह कहते हैं कि पिछले कुछ महीनों से विभिन्न मानकों में सुधार के संकेत दिख रहे हैं। इन मानकों में बिजली खपत, परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स और जीएसटी संग्रह आदि शामिल हैं।
वह अपने तर्क के लिए आंकड़े भी देते हैं। वह कहते हैं, ‘अक्टूबर में ई-वे बिल सृजन पिछले साल की तुलना में 21 फीसदी अधिक था। इसके अलावा 30 अक्टूबर तक 29 लाख ई-इनवॉयस सृजित हुए। ये सभी आंकड़े अर्थव्यवस्था की मजबूती के संकेत हैं। दबी हुई मांग का एक मामूली हिस्सा होगा, लेकिन अर्थव्यवस्था कोविड से पहले के स्तरों पर पहुंच रही है। यह माह दर माह आधार पर वृद्धि के दायरे में प्रवेश कर रही है।’
हालांकि विशेषज्ञों आगाह कर रहे हैं कि इन आंकड़ों को अधिक तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि जीएसटी संग्रह की निरंतरता नवंबर के बाद देखी जानी चाहिए। इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि ऐसा लगता है कि हाल के महीनों में जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी दबी मांग, त्योहारी सीजन से पहले इन्वेंट्री तैयार करने और हाल में ई-इनवॉयसिंग शुरू करने की बदौलत हुई है।
उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि बहुत से उत्पादों की मांग हाल की अवधि में बढ़ी है, लेकिन यह त्योहारी सीजन खत्म होने के बाद इसी रफ्तार पर बने रहने के आसार नहीं हैं। हम विभिन्न क्षेत्रों में दिख रही तेजी की निरंतरता को लेकर सतर्क हैं और नवंबर 2020 के बाद जीएसटी संग्रह के आंकड़े वास्तविक स्थिति को बयां करेंगे।’
वह कहती हैं कि इस समय इक्रा का अनुमान है कि भारत की वास्तविक जीडीपी में संचुकन वित्त वर्ष 2021 में 11 फीसदी रहेगा। वह इक्रा के अनुमानों का बचाव करते हुए कहती हैं, ‘हम दिसंबर 2020 की शुरुआत में इस अनुमान पर पुनर्विचार करेंगे। तब तक एनएसओ (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय) वित्त वर्ष 2021 की दूसरी तिमाही के आंकड़े भी जारी कर देगा। तब तक त्योहारी सीजन की तेजी के टिकाऊ होने की संभावना और ठंडे महीनों के दौरान घरेलू स्तर पर एवं प्रमुख कारोबारी साझेदार देशों में नए कोविड-19 संक्रमण को लेकर भी स्थिति साफ हो जाएगी।’
दरअसल आर्थिक मामलों के विभाग ने अक्टूबर के अपने मासिक बुलेटिन में आगाह किया था कि कोविड-19 की दूसरी लहर आर्थिक सुधार को पटरी से उतार सकती है। इसने सामाजिक दूरी के नियमों को तोडऩे के खिलाफ भी आगाह किया था। हालांकि इसने कहा कि अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार आ रहा है और यह चालू वित्त वर्ष के अंत तक कोविड से पहले के स्तरों पर पहुंचने की संभावना है।
इसने महामारी की नई लहर को लेकर आगाह करते हुए कहा, ‘कोविड के सक्रिय मामलों में लगातार कमी और मृत्यु दर में कमी से भारत में यह उम्मीद पैदा हुई है कि बुरा दौर पीछे छूट चुका है। लेकिन विकसित देशों में महामारी की दूसरी लहर यह याद दिलाती है कि जब सतर्कता की अनदेखी की जाती है तो कितना गंभीर नतीजा होता है।’
