भारत के सामुद्रिक क्षेत्र का भविष्य तकनीक अपनाने के साथ पोत निर्माण और लॉजिस्टिक्स को मजबूती से आगे बढ़ाने पर निर्भर करता है। यह राय उद्योग के विशेषज्ञों ने बिजनेस स्टैंडर्ड के इन्फ्रास्ट्रक्चर समिट में बिजनेस स्टैडर्ड की रुचिका चित्रवंशी के साथ परिचर्चा में रखी।
मित्सुई ओएसके लाइन्स के एमओएल साउथ एशिया मिडिल ईस्ट के बिजनेस हेड कैप्टन अमित सिंह ने कहा, ‘सरकार हमारे सामुद्रिक हितों के निर्माण पर बेहद ध्यान दे रही है। हम दो दशकों से पिछड़ रहे हैं। अगले 15-20 वर्षों में हमें अनिवार्य रूप से पोत निर्माण में अपनी हिस्सेदारी में महत्त्वपूर्ण वृद्धि के साथ बाजार हिस्सेदारी हासिल करनी है। हमें इको सेंटरों की जरूरत है : एक पोतों के निर्माण के लिए और दूसरा भारतीय पोतों का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए।’
अभी वैश्विक पोत निर्माण में भारत की हिस्सेदारी करीब 0.06 प्रतिशत है जबकि भारत का अपनी ढुलाई के 5 प्रतिशत पर सामुद्रिक नियंत्रण है। भारत का लक्ष्य 2047 तक विश्व के पांच पोत निर्माताओं में से एक बनना है।
उद्योग के हिस्सेदार इस पर भी सहमत थे कि भारत के लॉजिस्टिक्स परिदृश्य में सकारात्मक बदलाव दिख रहा है। इस बदलाव को बढ़ते आधारभूत ढांचे, अधिक निजी बंदरगाहों और सरकारी बंदरगाहों की बढ़ती दक्षता के साथ सरकार की पहलों जैसे गति शक्ति और नैशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी से मदद मिल रही है।
ऑलकार्गो लॉजिस्टिक्स के चीफ इन्फॉर्मेशन ऐंड टेक्नॉलजी ऑफिसर कपिल महाजन ने कहा, ‘हम भारत के लॉजिस्टिक्स पर गतिशक्ति कार्यक्रम के साथ-साथ ई वे बिल और वस्तु व सेवा कर का प्रभाव देख रहे हैं। कंटेनर फ्रेट स्टेशनों पर आधारभूत ढांचे में सुधार का बेहद सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।’
इस क्षेत्र ने तकनीक, खासतौर पर एआई की जरूरत की बात महसूस की है। विशेषज्ञों ने भारतीय तकनीक वाले वैश्विक लॉजिस्टिक्स प्लेटफॉर्म बनाने के महत्त्व पर जोर दिया।
विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि लॉजिस्टिक्स स्टॉर्टअप के इकोसिस्टम को सावधानीपूर्वक विकसित करने की जरूरत है। इस बारे में महाजन ने कहा, ‘मुख्य समस्या आकार बढ़ाने की है।
स्टॉर्ट अप को अक्सर भारत से बाहर दुबई, संयुक्त अरब अमीरात, चीन या अमेरिका तक कारोबार करना पड़ता है। लोग प्रयोग करना चाहते हैं लेकिन जब बात निवेश और बड़े अनुबंध देने की आती है तो चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं।’
उद्योग के विशेषज्ञों ने वैश्विक अनिश्चितताओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र लंबे समय से उतार-चढ़ाव का सामना करने का अभ्यस्त रहा है लेकिन यह दीर्घावधि बदलाव के लिए तैयार होने के साथ मजबूती से खड़ा हो रहा है।
सिंह ने जोर देकर कहा कि समुद्री क्षेत्र का पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह उथल-पुथल की बजाय ‘बदले हुए परिदृश्य’ का अनुभव कर रहा है। उन्होंने इंगित किया कि शिपिंग ऐतिहासिक रूप से बदलाव को अपनाता रहा है।
इस बीच, महाजन ने यह भी कहा कि निर्यात-आयात कारोबार में मांग का पैटर्न गड़बड़ा गया है। वैश्विक संघर्षों के कारण समुद्री जहाजों की आवाजाही बाधित हुई है। उन्होंने कहा, ‘अभी यह एक चक्र है औ इसके बारे में पहले से ही कुछ कहना बेहद मुश्किल है।’ उन्होंने कहा कि बढ़ती लागत और देरी ने दुनियाभर में खपत के पैटर्न को अस्थिर बना दिया है।