भारत ने प्रदूषण फैलाने वाली प्रसंस्करण इकाइयों पर लगाम कसने के लिए व्यावहारिक योजना पर चर्चा शुरू कर दी है। इस क्रम में कपड़ा, दवा उद्योग आदि क्षेत्रों की प्रसंस्करण इकाइयों के बारे में बातचीत जारी है। दरअसल, विकसित देशों ने मुक्त व्यापार समझौतों के साथ-साथ पूरे व्यापार में सतत विकास को शामिल करने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) व कपड़ा मंत्रालय प्रदूषण पर लगाम कसने की योजना के सिलसिले में कुछ बैठकें भी कर चुका है।अभी चर्चा इस मसले के इर्द-गिर्द केंद्रित है कि क्या उद्योग को निवेश बढ़ाने व ब्याज सहायता योजना की संभावना खोजने या उत्पादन से जुड़ी पहल के तहत कंपनियों को अपशिष्ट उपचार संयंत्र लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
वरिष्ठ अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘विकसित देशों के सतत विकास जैसे मुद्दों के बढ़ते दबाव में आकर उद्योगों को बंद करना समाधान नहीं है। ऐसा हमने चमड़ा उद्योग के साथ किया था और हमने बाजार खो दिया। इसलिए इस समस्या के हल के लिए बातचीत जारी है।’
संबंधित अधिकारी ने बताया’ ‘अगर आप देखें तो सतत विकास और प्रदूषण से उत्पाद का प्रसंस्करण प्रभावित होता है।’ अगर हम कपड़ा क्षेत्र की बात करें तो प्रसंस्करण इकाइयों में न केवल बड़ी मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता है। मोटे कच्चे रेशे से तैयार उत्पाद बनाने की पूरी प्रक्रिया में गर्म करने, ब्लीच करने और रंगने में पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अधिकारी ने बताया ‘डीपीआईआईटी और कपड़ा मंत्रालय में प्रसंस्करण इकाइयों के लिए योजना लाने पर बातचीत जारी है। इस संबंध में योजना लाना चुनौतीपूर्ण है। हमें हर क्षेत्र में प्रसंस्करण की जरूरत है चाहे वह कपड़ा, चमड़ा, दवा उद्योग आदि हो। सरकार के समक्ष चुनौती यह है कि वह प्रदूषण से पड़ने वाले दबाव से निपटने के लिए नए तरीके का समाधान लेकर आए।’
प्रसंस्करण प्रक्रिया में अत्यधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। लिहाजा छोटे कारोबारी इतने सक्षम नहीं है कि वे इतनी अधिक लागत को झेल पाएं और कूड़े को पुनर्चक्रित करने के लिए अपशिष्ट उपचार संयंत्र लगा पाएं।
दरअसल विकसित देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों ने सतत विकास और कारोबार को साथ-साथ चलने पर अधिक जोर देना शुरू कर दिया है। इसलिए प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए चर्चाएं जारी हैं। ऐसे में प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश करने की जिम्मेदारी बड़े कारोबारियों पर आ जाती है।
दरअसल, विकसित देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के देश इस मामले पर अत्यधिक जोर दे रहे हैं कि सतत विकास और कारोबार साथ-साथ चलें। विकसित देशों के इस रवैया के कारण भारत में चर्चाएं जारी हैं। जैसे जर्मनी के सप्लाई चेन ड्यू डिलिजेंस एक्ट के अंतर्गत जर्मनी की कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी सप्लाई चेन श्रृंखला में वातावरण और सामाजिक मानदंडों का पालन किया जाए। हालांकि भारत का मानना है कि ऐसे नियामक गैरशुल्कीय व्यापार बाधा खड़ी करने में समर्थ हैं और इससे आमतौर पर छोटे कारोबारियों को नुकसान पहुंचेगा। ऐसे में प्रमुख व्यापारिक भागीदार से कारोबार करना मुश्किल हो जाएगा।
तिरुपुर एक्सोपर्टर्स एसोसिएशन (टीईए) के अध्यक्ष केएम सुब्रमण्यन ने कहा कि सरकार ने कपड़ा उद्योग में सतत विकास को बढ़ाने की पहल शुरू कर दी है। इस सिलसिले में सरकार ने परियोजना रिपोर्ट बनाने के लिए परामर्शक नियुक्त किया है और यह परामर्शक देश के कपड़ा उद्योग के केंद्रों का दौरा कर रहा है।
सुब्रमण्यन ने कहा, ‘भारत में बुनाई वाले कपड़ों का प्रमुख केंद्र तिरुपुर है और यह तिरुपुर क्लस्टर शुरू करना चाहता है। इस सिलसिले में आने वाले हफ्तों के दौरान लगातार कई बैठकें होंगी और इन बैठकों में संबंधित मुद्दों की चर्चा की जाएगी।’