सरकार ने जब करीब छह महीने पहले 8वें केंद्रीय वेतन आयोग (8th CPC) की योजना बनाने की घोषणा की थी, तो लाखों सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को उम्मीद बंधी थी। अब इसी कड़ी में सरकारी कर्मचारियों के प्रतिनिधियों ने आयोग के लिए अपने सुझाव भेज दिए हैं। इन सुझावों में कई अहम मांगे शामिल हैं, जिनका असर करीब 45 लाख कर्मचारियों और 68 लाख पेंशनधारकों पर पड़ेगा, जिनमें रक्षा कर्मी भी शामिल हैं।
कर्मचारी संगठनों ने सबसे पहले पुरानी पेंशन योजना (Old Pension Scheme) को फिर से लागू करने की मांग की है। ये मांग उन कर्मचारियों के लिए है, जो 2004 के बाद सरकारी सेवा में आए हैं। मौजूदा समय में इन्हें नए पेंशन सिस्टम (NPS) में रखा गया है, जिसमें योगदान देना पड़ता है। कर्मचारी चाहते हैं कि फिर से गैर-योगदान आधारित पेंशन स्कीम लागू की जाए, ताकि रिटायरमेंट के बाद उन्हें तय पेंशन मिल सके।
कर्मचारी संगठनों ने सुझाव दिया है कि सभी कर्मचारियों और पेंशनर्स को कैशलेस और आसान मेडिकल सुविधा दी जाए। इसके अलावा बच्चों की पढ़ाई के लिए शिक्षा भत्ता और हॉस्टल सब्सिडी को पोस्ट ग्रेजुएशन तक बढ़ाने की मांग की गई है। उन्होंने यह भी कहा है कि डेथ कम रिटायरमेंट ग्रेच्युटी, फैमिली पेंशन, और पेंशन का कम्युटेड हिस्सा 12 साल बाद बहाल करने जैसे पुराने लाभों को भी सुधारा जाए।
वेतन आयोग जब न्यूनतम वेतन तय करता है तो वह परिवार के खर्च के आधार पर करता है। अब कर्मचारियों ने सुझाव दिया है कि इस खर्च के मापदंड को 3 से बढ़ाकर 3.6 यूनिट किया जाए। इससे शुरुआती वेतन का आधार भी बढ़ेगा और कुल खर्च का अनुमान भी ऊपर जाएगा। यह सुझाव श्रम मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
कर्मचारी प्रतिनिधियों का कहना है कि जो कर्मचारी कई सालों तक प्रमोशन नहीं पा सके हैं, उन्हें मिलने वाली MACP योजना (जिसमें बिना प्रमोशन के भी तय समय पर वेतन बढ़ता है) में जो भी गड़बड़ियां हैं, उन्हें सुधारा जाए। साथ ही, जो वेतन स्तर अब काम के हिसाब से ठीक नहीं हैं, उन्हें मिलाकर एक नया और बेहतर वेतन ढांचा तैयार किया जाए।
कर्मचारी पक्ष ने यह भी मांग की है कि रेलवे कर्मचारियों के लिए जोखिम और कठिनाई भत्ता (Risk and Hardship Allowance) तय किया जाए। इसके अलावा जो डिफेंस सिविलियन कर्मचारी हथियार, बारूद, कैमिकल्स या विस्फोटक बनाते हैं या स्टोर करते हैं, उन्हें विशेष जोखिम भत्ता और इंश्योरेंस कवर भी मिलना चाहिए।
इस बार मांग की गई है कि 8वें वेतन आयोग में सिर्फ केंद्रीय कर्मचारी ही नहीं, बल्कि ग्रामीण डाक सेवक (GDS), अर्धसैनिक बलों, और केंद्रीय स्वायत्त संस्थाओं के कर्मचारी भी शामिल किए जाएं। 7वें वेतन आयोग में इन्हें शामिल नहीं किया गया था।
NC-JCM (नेशनल काउंसिल ऑफ जॉइंट कंसल्टेटिव मशीनरी) एक मंच है जहां सरकार और कर्मचारियों के बीच संवाद होता है। इसमें कर्मचारियों की ओर से उठाए गए मुद्दों पर चर्चा होती है और समाधान खोजा जाता है। इस काउंसिल की अध्यक्षता वर्तमान में कैबिनेट सचिव टी.वी. सोमनाथन कर रहे हैं।
सरकार ने अब तक 8वें वेतन आयोग की आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन उसकी शर्तों (Terms of Reference) को तय करने का काम शुरू हो चुका है। इसके लिए राज्य सरकारों, और रक्षा, गृह, और कार्मिक मंत्रालयों से भी राय मांगी गई है। हालांकि कर्मचारी संगठनों के सुझाव अंतिम नहीं होते, लेकिन इन्हें कार्मिक विभाग (DoPT) और वित्त मंत्रालय का व्यय विभाग समीक्षा करता है और फिर कैबिनेट के पास अंतिम ड्राफ्ट भेजा जाता है।
जब 7वां वेतन आयोग लागू हुआ था, तब सरकार को साल 2016-17 में ₹1 लाख करोड़ से ज्यादा खर्च करना पड़ा था। अब 8वां वेतन आयोग 1 जनवरी 2026 से लागू होने की संभावना है, और अगर इन सभी सिफारिशों को माना गया, तो केंद्र सरकार के खर्च में भारी इजाफा हो सकता है।