Year Ender 2023: अब दफ्तर चले आइए। कोरोना महामारी के कारण कर्मचारियों को लंबे समय तक घर से काम (वर्क फ्रॉम होम) की सहूलियत देने के बाद इस साल कंपनियों के गलियारों में यही संदेश गूंजता रहा। हालांकि कर्मचारियों के कानों को ये संदेश ज्यादा पसंद नहीं आए और वे इससे बचने की भरसक कोशिश करते रहे। मगर आखिर में मन मारकर उन्हें दफ्तर लौटना ही पड़ा।
कर्मचारियों का रुख देखकर कुछ कंपनियों और संस्थाओं ने ‘हाइब्रिड’ रास्ता निकाला, जिसमें कर्मचारी कुछ दिन घर से काम कर सकते थे और बाकी दिन उन्हें दफ्तर आना पड़ता था। कहीं यह काम कर गया और कहीं कारगर नहीं रहा।
इसलिए कर्मचारियों के नौकरी बदलने के बीच ग्रेट रेजिग्नेशन, क्वाइट क्विटिंग और करियर कुशनिंग जैसे जुमले आए और उनके बाद एक नया शब्द दफ्तरों में आ गया – कॉफी बैजिंग। यह नया तरीका था, जिसमें कर्मचारी दफ्तर आते तो थे लेकिन थोड़े से वक्त के लिए। वे हाजिरी लगाते थे, कॉफी पीते थे, साथियों के साथ गपशप करते थे और घर जाकर काम शुरू कर देते थे।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग डिवाइस बनाने वाली कंपनी आउल लैब्स ने दुनिया भर में ‘स्टेट ऑफ हाइब्रिड वर्क 2023’ सर्वेक्षण कराया, जिसके मुताबिक हाइब्रिड काम करने वाले 39 फीसदी कर्मचारी कॉफी बैजिंग कर रहे थे।
कुछ भी हो, कर्मचारी दफ्तर आने लगे और अचानक उनकी वापसी की वजह से जगह की तंगी भी महसूस होने लगी। इसलिए 2023 के शुरुआती नौ महीनों में दफ्तर के लिए जगह की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है।
वाणिज्यिक रियल एस्टेट परामर्श फर्म सीबीआरई ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलूरु, पुणे, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद और कोच्चि में दफ्तरों के लिए 4.18 करोड़ वर्ग फुट जगह ली गई, जो पिछले साल से 33 फीसदी अधिक है।
जुलाई से सितंबर के बीच ही 1.58 करोड़ वर्ग फुट जगह ली गई। सीबीआरई के अनुसार दफ्तर के लिए नई जगह भी तेजी से बढ़ी और जनवरी से सितंबर के बीच 4.17 करोड़ वर्ग फुट जगह जुड़ी। बेंगलूरु, हैदराबाद और पुणे में सबसे अधिक तेजी दिखी, जहां कुल नई जगह का 71 फीसदी हिस्सा आया।
बैंकिंग, वित्तीय सेवा और बीमा (बीएफएसआई) जैसे कारोबार से जुड़ी कपंनियों ने सबसे ज्यादा 29 फीसदी जगह दफ्तर के लिए ली। उनके बाद तकनीकी कंपनियों ने 23 फीसदी रही, लाइफसाइंस कंपनियों ने 10 फीसदी और कंसल्टिंग तथा एनालिटिक्स कंपनियों ने 7 फीसदी जगह किराये पर ली। जुलाई से सितंबर के बीच सबसे ज्यादा 42-42 फीसदी जगह अमेरिकी और देसी कंपनियों ने ली।
रियल एस्टेट सलाहकार नाइट फ्रैंक के अनुसार जनवरी से सितंबर के बीच दफ्तरों के लिए सौदे जनवरी-सितंबर, 2022 के मुकाबले 8 फीसदी ज्यादा रहे। एनारॉक के मुताबिक साल के शुरुआती नौ महीनों में दफ्तरों के लिए करीब 3.5 करोड़ वर्ग फुट नई जगह तैयार हुई और लगभग 2.5 करोड़ वर्ग फुट के सौदे हुए। 2022 में देश के शीर्ष सात शहरों में दफ्तरों के लिए ए ग्रेड की लगभग 4.5 करोड़ वर्ग फुट नई जगह आई थी और करीब 3.6 करोड़ वर्ग फुट जगह किराये पर ली गई थी।
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कंपनियों को काम से मतलब है और कई कारोबारी दिग्गज इस पर अपनी बात भी कहते रहे। उन्हीं में से सूचना प्रौद्योगिकी दिग्गज इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति के सुझाव ने तूफान खड़ा कर दिया। उन्होंने ज्यादा काम करने की सलाह देते हुए कहा, ‘मेरे हिसाब से हमारे युवाओं को कहना चाहिए कि यह मेरा देश है और मैं हफ्ते में 70 घंटे काम करूंगा।’
इसके बाद देश भर में कर्मचारियों के बीच काम और जीवन के संतुलन तथा मानसिक और शारीरिक सेहत पर बहस छिड़ गई। कई ने तो मूर्ति की सलाह को एकदम बकवास करार दिया। मगर कई कंपनियों के संस्थापक और मुखिया मूर्ति के समर्थन में भी दिखे।
इसी बीच अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के 2023 के आंकड़े आ गए, जिनके मुताबिक एक भारतीय पेशेवर हर हफ्ते औसतन 47.7 घंटे काम करता है और इतना काम दुनिया में कहीं नहीं किया जाता। मैकिंजी हेल्थ इंस्टीट्यूट के इसी साल के सर्वेक्षण में 62 फीसदी भारतीय कर्मचारियों ने कहा कि दफ्तर में लगातार काम करने की वजह से थकावट के शिकार हैं और उनका मन उचट गया है।
मूर्ति का बयान उस समय आया, जब कंपनियां अपने कर्मचारियों पर दफ्तर आकर काम करने का जोर डाल रही हैं।
एक आईटी कर्मचारी की शिकायत है, ‘जो कर्मचारी दफ्तर आकर काम करने को तैयार नहीं हैं, उनकी छुट्टियां अपने आप काट ली जा रही हैं।’ इस साल मई में विप्रो के 55 फीसदी कर्मचारियों के लिए दफ्तर आकर काम करना अनिवार्य बना दिया गया।
नवंबर के मध्य में कंपनी ने सभी कर्मचारियों को वापस दफ्तर बुला लिया।
विप्रो के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारे हिसाब से प्रतिभा का पेशेवर विकास और ग्राहकों के लिए इनोवेशन जारी रखना है तो एक-दूसरे के साथ बैठना जरूरी है। हम सभी कर्मचारियों को दफ्तर बुला रहे हैं।’
बेंगलूरु की कंपनी हैपिएस्ट माइंड्स के ज्यादातर कर्मचारी अब दफ्तर से ही काम कर रहे हैं। यह अलग बात है कि वे पूरे हफ्ते दफ्तर नहीं आते। कंपनी के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट और चीफ पीपल ऑफिसर सचिन खुराना बताते हैं कि कंपनी के 90 फीसदी कर्मचारी तय समय पर दफ्तर आ रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि कुछ ही महीनों में 100 फीसदी कर्मचारी दफ्तर पहुंचने लगेंगे।
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मुंबई में के रहेजा समूह के माइंडस्पेस बिजनेस पार्क रीट का कहना है कि भारत में 74 फीसदी लोग दफ्तर वापस आ गए हैं, जबकि अमेरिका में यह दर अब भी 40 फीसदी ही है। इस वजह से कंपनी का वाणिज्यिक रियल्टी का पोर्टफोलियो बढ़ रहा है।
माइंडस्पेस रीट के मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) रमेश नायर कहते हैं, ‘2023 में वाणिज्यिक दफ्तरों के लिए ए ग्रेड की जगह की मांग करीब 4 करोड़ वर्ग फुट पहुंचने की उम्मीद है, जो 2019 के 4.4 करोड़ वर्ग फुट के काफी करीब है। 2022 में यह 3.4 करोड़ वर्ग फुट ही थी।’
बड़ी कंपनियां दफ्तर लौटने वाले कर्मचारियों की संख्या बढ़ने के साथ ही दफ्तरों के लिए ए ग्रेड की ज्यादा जगह मांग रही हैं और इस मांग पर बेंगलूरु के सत्व समूह की भी नजर है। समूह के निदेशक महेश खेतान ने कहा कि दफ्तर में अमूमन 500 से 2,000 लोगों के बैठने की जगह होती है और कभी-कभी यह 6,000 के भी पार पहुंच जाती है।
कर्मचारियों की वापसी से को-वर्किंग स्पेस का चलन भी बढ़ा है, जहां एक ही जगह दो या ज्यादा कंपनियों का दफ्तर चल सकता है। को-वर्किंग स्पेस मुहैया कराने वाली फर्म ऑफिस ने बताया कि 2023 की पहली तीन तिमाहियों में छह बड़े शहरों में 3.8 करोड़ वर्ग फुट जगह ली गई, जो 2022 के बराबर है।
स्टार्टअप से लेकर फॉर्च्यून 500 तक तमाम कंपनियों का कारोबार और आकार बढ़ने के साथ ही फ्लेक्सिबल दफ्तर के लिए मांग उपलब्ध जगह से ज्यादा हो गई है। ऑफिस की ‘वर्कस्पेस नेक्स्ट’ रिपोर्ट के मुताबिक दफ्तर चला रही 63 फीसदी कंपनियां महामारी के बाद फ्लेक्सिबल यानी लचीला तरीका अपनाने लगी हैं।
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ऑफिस के संस्थापक और सीईओ अमित रमानी बताते हैं कि शेयर्ड ऑफिस (जहां एक ही जगह पर एक साथ या अलग-अलग समय पर दो या ज्यादा कंपनियां अपना दफ्तर चलाती हैं) के लिए ज्यादा जगह किराये पर ली जा रही है। तैयार दफ्तर मुहैया कराने वाली गुरुग्राम की द ऑफिस पास के संस्थापक और सीईओ आदित्य वर्मा कहते हैं कि अगले पांच साल में दफ्तरों की तरकीबन 30 फीसदी जगह को-वर्किंग उद्योग के ही पास चली जाएगी।
वाणिज्यिक रियल एस्टेट फर्म वेस्टियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल को-वर्किंग कंपनियां करीब 1.05 करोड़ वर्ग फुट जगह किराये पर ले सकती हैं, जो 2022 से 25 फीसदी ज्यादा होगी। को-वर्किंग फर्म अरबन वॉल्ट के सह-संस्थापक अमल मिश्र कहते हैं कि कंपनियां दफ्तर के लिए ए ग्रेड की जगह देख रही हैं।
इसके लिए वे संपत्ति के मालिकों से मोलभाव करने का पुराना तरीका भी अपना रही हैं और मैनेज्ड वर्कस्पेस यानी तैयार दफ्तर उपलब्ध कराने वाली फर्मों से भी मिल रही हैं। मुख्य बात यह है कि अब कर्मचारियों को ऑफिस से ही काम करना होगा। मगर लब्बोलुआब यही है कि अब दफ्तर से ही काम करना होगा।