‘हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है।’ दुनियाभर में असंभव करार दी जा रही लखटकिया नैनो को हकीकत बनाकर रतन टाटा फिलहाल ऑटो बाजार में कुछ ऐसे ही मुकाम पर हैं।
मगर दिलचस्प तो यह है कि टाटा का इरादा अब प्रॉपर्टी बाजार में भी ऐसा ही कुछ करिश्मा कर दिखाने का है। तभी तो उन्होंने महज चार लाख रुपये से सात लाख रुपये के बीच मकान लोगों को देने का ऐलान कर दिया है।
जाहिर है, टाटा के ऐलान पर खलबली न मचे, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। खलबली भी ऐन नैनो के ऐलान के जैसी, कोई इसे हास्यास्पद करार दे रहा है, तो कोई सजग हो गया है तो कुछ ऐसे भी हैं, जो इस पर ध्यान ही नहीं देना चाहते।
मसलन, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की रियल एस्टेट डेवलपर एसवीपी ग्रुप के सीईओ सुनील जिंदल कहते हैं- किसी भी हाउसिंग परियोजना के लिए लोकेशन और स्पेस बहुत मायने रखते हैं। चाहे मकान सस्ता हो या महंगा, लोगों की पहली प्राथमिकता लोकेशन को लेकर रहती है। इसके बाद ग्राहक स्पेस को तरजीह देते हैं।
जहां तक सस्ते मकान की बात है, तो हमारी कंपनी ने एनएच-58 पर 950 से 1000 वर्ग फुट में स्मॉल प्रीमियम अपार्टमेंट की घोषणा पहले ही कर चुकी है, जिसकी कीमत क्रमश: 15 लाख 98 हजार और 16 लाख 80 हजार रुपये है।
इसी तरह, प्रमुख रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के प्रवक्ता संजय राय ने हालांकि टाटा की इस नई घोषणा पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। लेकिन उन्होंने यह भी कहा- दिल्ली और एनसीआर जैसे इलाके में 4 से 7 लाख रुपये में मकान देना प्रासंगिक नहीं लग रहा है। जहां तक अर्फोडेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट की बात है, तो हमने ऐसी परियोजनाएं 2007 में ही लॉन्च कर दी थीं।
दिल्ली की एक प्रमुख डेवलपर कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी भी ऐसा ही सवाल उठाते हुए कहते हैं- अगर दिल्ली के आसपास हापुड़ या अन्य दूरस्थ इलाके में 7 से 8 लाख रुपये में मकान कोई दे भी देता है, तो कितने ऐसे आदमी हैं, जिनके पैमानों पर यह घर खरा उतरेगा?
वैसे भी आर्थिक मंदी के विपरीत आर्थिक हालात में दिल्ली और एनसीआर में इतने सस्ते मकान की बात करना हास्यास्पद ही लग रहा है। ज्यादातर उद्योग विशेषज्ञ भी यही मानते हैं कि महंगी लागत और जमीन के भावों के चलते दिल्ली और एनसीआर जैसे इलाके में मकान बनाकर 4 से 7 लाख रुपये में बेच पाना संभव ही नहीं है।
हालांकि चंद विशेषज्ञ ऐसे भी हैं, जिन्हें नैनो की ही तरह का चमत्कार प्रॉपर्टी बाजार में भी होने की उम्मीद है। वे कहते हैं- इसी तरह की बात नैनो को लेकर भी की जा रही थी कि एक लाख रुपये में कार मिलना मुश्किल है, लेकिन ऐसा हुआ। टाटा ने नैनो को उस समय लॉन्च किया, जब आर्थिक परिस्थितियां बिल्कुल प्रतिकूल थीं।
चार से सात लाख रुपये के बीच मकान के ऐलान से मची खलबली
कोई कहे हास्यास्पद, कोई हुआ सजग तो कोई कर रहा नजरअंदाज
प्रतिद्वंदी कंपनियां मान रहीं फ्लॉप शो, विशेषज्ञ कर रहे नैनो जैसे चमत्कार की आस
