अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में आई कमजोरी का लाभ भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इन्फोसिस को मिला।
कमजोर कारोबारी प्रदर्शन के बावजूद रुपये की कमजोरी की वजह से कंपनी ने 31 दिसंबर 2008 को समाप्त हुई तिमाही में आय और लाभ में इजाफा दर्ज किया है। इससे अलग बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और बीमा क्षेत्रों में धीमी विकास दर देखने को मिली है।
मौजूदा तिमाही में धीमी विकास दर की कहानी जारी रही है। बीएफएसआई में जहां मात्र 1.1 फीसदी का इजाफा हुआ है, वहीं विनिर्माण 6 फीसदी गिर गया। खुदरा क्षेत्र में मात्र 0.3 फीसदी की वृद्धि देखी गई, जबकि दूरसंचार में 15.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर रुपये में स्थिरता होती, तो कहानी कुछ और ही होती। मिसाल के तौर पर, रुपये में स्थिरता होने पर दूरसंचार में 3.4 फीसदी और विनिर्माण क्षेत्र में 3.7 फीसदी की गिरावट होती। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि तीसरी तिमाही में मूल्य का दबाव हर तरफ देखा गया।
एंजेल ब्रोकिंग के विशेषज्ञ हरित शाह कहते हैं, ‘नतीजे तो उम्मीदों के आस पास ही रहे, लेकिन आगे मूल्य दबाव एक महत्वपूर्ण कारक बनेगा। यहां पर अगर दूरदर्शिता की बात करें, तो वह अनुमान पर खरा नहीं उतर पाई है।’
इन्फोसिस टेक्लॉजिज के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक एस. गोपालकृष्णन कहते हैं, ‘प्राइसिंग एक बहुत बडा कारक होता है, लेकिन हम यकीन करते हैं कि चौथी तिमाही में भी लाभ का सिलसिला जारी रहेगा। चौथी तिमाही में जैसे ही कारोबार का चक्र विकसित होगा, हम लोग और मजबूती से उभर कर आएंगे।’
मूल्य के दबाव के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनी इस माहौल में भी बेहतर प्रदर्शन कर रही है और अपने आप को बाजार के अनुरूप ढ़ाल रही है।
इसके अलावा इस तिमाही में आय में वृद्धि बरकरार रखना भी एक चुनौती के रूप में सामने आया। यह चुनौती इसलिए भी महसूस की गई, क्योंकि बहुत सारी परियोजनाओं में देरी देखी गई।
इन्फोसिस के प्रमुख वित्तीय अधिकारी एस. डी. शिबूलाल मानते हैं कि चौथी तिमाही में ग्राहकों और ऑर्डर को बनाए रखना काफी मुश्किल होगा। वे मानते हैं कि आगे मांग का माहौल काफी मुश्किलों भरा होगा।
वे कहते हैं, ‘कंपनी की किसी परियोजनाओं के रद्द होने की संभावना कम है।’ कहने का साफ मतलब है कि परियोजनाओं के चालू रहने के बावजूद स्थिति गंभीर रहने की संभावना है।