फोक्सवैगन ने 1.4 अरब डॉलर की ‘असाधारण रूप से भारी’ कर मांग रद्द करने के लिए भारतीय विभागों पर मुकदमा दायर किया है। इसमें तर्क दिया गया है कि यह मांग कार के पुर्जों के लिए भारत के आयात कराधान के नियमों के उलट है और इस मांग से कंपनी की कारोबारी योजनाओं में बाधा आएगी। अदालती दस्तावेज से यह जानकारी मिली है।
फोक्सवैगन की इकाई स्कोडा ऑटो फोक्सवैगन इंडिया ने भी बंबई उच्च न्यायालय को बताया कि इस कर विवाद से भारत में उसका 1.5 अरब डॉलर का निवेश जोखिम में पड़ गया है और यह विदेशी निवेश के माहौल के लिए हानिकारक है। 105 पृष्ठों के इन दस्तावेज में यह जानकारी दी गई है जो सार्वजनिक नहीं है। लेकिन रॉयटर्स ने उन्हें देखा है।
अब तक की सबसे बड़ी आयात कर मांग में भारत ने सितंबर में फोक्सवैगन को 1.4 अरब डॉलर का कर नोटिस दिया था। कम शुल्क का भुगतान करने के लिए फोक्सवैगन, स्कोडा और ऑडी कारों के आयात को कई अलग-अलग पुर्जों में तोड़कर दिखाने की रणनीति के मामले में यह कर नोटिस दिया गया था।
भारतीय अधिकारियों ने आरोप लगाया कि फोक्सवैगन ने ‘लगभग पूरी’ कार को असेंबल्ड हालत में आयात किया था, जिस पर सीकेडी या कम्प्लीटली नॉक डाउन वाहनों (अलग-अलग पुर्जो के रूप में आयात करके असेंबल किए गए वाहन) पर 30 से 35 प्रतिशत कर लगता है। लेकिन उन्हें अलग-अलग खेपों में आने वाले ‘एकल पुर्जो’ के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत करते हुए केवल पांच से 15 प्रतिशत शुल्क का भुगतान करके करों से बच निकली।
कंपनी ने अदालत में चुनौती देते हुए कहा कि फोक्सवैगन इंडिया ने भारत सरकार को अपने ‘पुर्जा-दर-पुर्जा आयात’ वाले प्रारूप के बारे में जानकारी दी थी और साल 2011 में इसके समर्थन में स्पष्टीकरण हासिल किया था। अदालत में 29 जनवरी को दायर अपील में कहा गया है कि यह कर नोटिस ‘सरकार द्वारा अपनाई गई स्थिति से पूरी तरह विरोधाभासी है (और) उस विश्वास तथा भरोसे की नींव को खतरे में डालता है जो विदेशी निवेशक प्रशासन के कार्यों और आश्वासनों में चाहते हैं।’