देश के रियल एस्टेट उद्योग को भी अमेरिकी शुल्क ने चिंता में डाल दिया है। इस शुल्क से किफायती आवास बाजार को नुकसान हो सकता है। यह बाजार पहले से ही मुश्किलों का सामना कर रहा है। जानकारों का कहना है कि किफायती आवास खरीदने वालों में बड़ी संख्या छोटे व मझोले उद्योगों में काम करने वालों की है। ट्रंप शुल्क का इन उद्योगों पर सबसे अधिक मार पड़ने की आशंका है। जिससे किफायती आवास की मांग प्रभावित हो सकती है।
बीसीडी ग्रुप के मुख्य प्रबंध निदेशक अंगद बेदी ने कहा कि नये अमेरिकी शुल्क के कारण रियल एस्टेट क्षेत्र में विदेशी निवेश के साथ-साथ किफायती आवास में निवेश करने के इच्छुक मकान खरीदारों की क्रय शक्ति में भी उद्योग को कुछ अल्पकालिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। हम भविष्य की रणनीति को समझने के लिए अपने हितधारकों, उद्योग विशेषज्ञों और सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं।” साथ ही कंपनी सौहार्दपूर्ण, पारस्परिक रूप से लाभकारी समाधान की तलाश कर रही है।
संपत्ति सलाहकार फर्म एनारॉक समूह के कार्यकारी निदेशक रिसर्च और एडवाइजरी प्रशांत ठाकुर ने बताया कि किफायती आवास यानी 45 लाख रुपये और इससे कम कीमत वाले मकानों की मांग कोरोना महामारी के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई थी। यह क्षेत्र अभी भी सुधार के लिए संघर्ष कर रहा है। अमेरिकी शुल्क इस क्षेत्र के सुधरने की उम्मीद पर पानी फेर सकता है। एनारॉक के मुताबिक 2025 की पहली छमाही में देश के 7 प्रमुख शहरों में कुल 1.90 लाख मकान बिके, इनमें 18 फीसदी हिस्सेदारी के 34,565 मकान किफायती श्रेणी के थे। 2019 में मकानों की कुल बिक्री में किफायती मकानों की हिस्सेदारी 38 फीसदी थी।
जाहिर है बीते 5-6 सालों में किफायती मकानों की हिस्सेदारी में बड़ी गिरावट आई है। ठाकुर कहते हैं कि सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्योग (एमएसएमई) रोजगार और निर्यात के प्रमुख स्रोतों में से एक हैं। एमएसएमई औपचारिक और अनौपचारिक रूप से 26 करोड़ से ज्यादा भारतीयों को खासकर कपड़ा, इंजीनियरिंग सामान, ऑटो कंपोनेंट, रत्न और आभूषण और खाद्य प्रसंस्करण जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों में रोजगार देते हैं। ऐसे में इस शुल्क से यह उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो सकता है और इस उद्योग में काम करने वालों की आय प्रभावित होगी। जिससे पहले कमजोर किफायती आवासों की बिक्री और घट सकती है क्योंकि इस क्षेत्र में काम करने वाले इन आवासों के बड़े खरीदार हैं। उन्होंने कहा कि मांग में कमी आने पर बिल्डर किफायती आवास परियोजनाओं को लॉन्च करने में कटौती करेंगे। इस क्षेत्र को आवास ऋण देने वाले वित्तीय संस्थानों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
सीआईआई (उत्तर-क्षेत्र) रियल एस्टेट समिति के अध्यक्ष अश्विन्दर आर सिंह ने कहा अमेरिकी शुल्क का भारत के मध्यम आय वाले आवास खंड में प्राथमिक प्रभाव तब पड़ता, जब आयातित निर्माण सामग्री जैसे स्टील, एल्युमीनियम और फिक्स्चर की लागत बढ़ती। इस वृद्धि से मकानों की कीमतें मामूली रूप से बढ़ सकती या डेवलपर का मार्जिन कम हो सकता है। हालांकि यह शुल्क वैश्विक तरलता को कम करने के साथ ही रुपया-डॉलर गतिशीलता को प्रभावित कर सकता है। भारत की आवास मांग काफी हद तक अंतिम उपयोगकर्ता द्वारा संचालित है। विदेश में अस्थिरता कुछ हद तक प्रवासी भारतीय पू्ंजी को स्वदेश की ओर मोड़ सकती है, जिससे लागत का दबाव कम हो सकता है। इसका लाभ उन डेवलपर को मिलेगा जिनकी खरीद प्रक्रिया तेज और बैलेंस शीट अनुशासित होगी।
टाटा रियल्टी ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर के प्रबंध निदेशक और सीईओ संजय दत्त ने कहा, ‘टैरिफ में व्यवधान से मांग में ठहराव आ जाता है, क्योंकि कंपनियां बजट रोक देती हैं और खरीदारी धीमी हो जाती है। अगले छह महीनों में इस शुल्क के प्रभाव का बाजार आमतौर पर समायोजन कर लेता है। अतिरिक्त लागतों को परियोजना बजट में शामिल कर लिया जाता है और उसे उसे बिक्री मूल्यों में दर्शाता है।’
पिछले सप्ताह एनारॉक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि मकान खरीदारों का सबसे बड़ा हिस्सा 50 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के बजट रेंज में है, जो 2022 में लगभग 28 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 32 प्रतिशत और 2024 में 35 प्रतिशत हो गया है।