सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) ने फिर कहा है कि 6 गीगाहर्ट्ज (GHz) में मध्यम दायरे (मिड बैंड) के स्पेक्ट्रम में से दूरसंचार कंपनियों को एक बड़ी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।
COAI ने इस बारे में दूरसंचार सचिव को पत्र लिखा है। संघ का कहना है कि भारत में 6 गीगाहर्ट्ज बैंड में मोबाइल संचार में कम से कम 1200 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाना चाहिए। संघ ने कहा कि फिलहाल भारत में मिड बैंड में केवल 720 मेगाहर्ट्ज उपलब्ध है।
तीन दूरसंचार कंपनियों रिलायंस जियो, भारती एयरटेल और वोडाफोन का प्रतिनिधित्व करने वाले COAI ने सोमवार को कहा कि अगर सरकार 6 गीगाहर्ट्ज बैंड में आवश्यकता से कम स्पेक्ट्रम का आवंटन करती है तो 5G डाउनलोड स्पीड कम होकर मात्र 50 प्रतिशत रह जाएगी।
संघ ने कहा कि आवश्यकता से कम स्पेक्ट्रम मिलने से दूरसंचार कंपनियों का खर्च सालाना 60 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।
केंद्र फिलहाल यह तय करने में लगा है कि किस क्षेत्र के लिए स्पेक्ट्रम आरक्षित किया जाना चाहिए।
दूरसंचार विभाग के अधीनस्थ वायरलैस प्लानिंग ऐंड को-ऑर्डिनेशन (Wireless Planning and coordination) के तहत गठित समिति इस विषय पर विचार कर रही है।
COAI ने इस समिति से कहा कि मिड बैंड जैसे 6 गीगाहर्ट्ज 5G New Radio, 5.5G (मौजूदा 5G नेटवर्क में अगला चरण) और 6G की व्यावसायिक सफलता और स्थापना के लिए जरूरी हैं।
5G New Radio एकीकृत 5G वायरलेस एयर इंटरफेस के लिए वैश्विक मानक है। इसकी वजह यह है कि मिड बैंड व्यापक कवरेज और क्षमता के साथ संतुलन स्थापित करते हैं।