उड़ीसा में विवादों में घिरी वेदांत समूह की कंपनी स्टरलाइट और कोरियाई कंपनी पोस्को को आज अदालत के कठघरे से राहत का पैगाम मिला।
सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों कंपनियों की विवादित परियोजनाओं को हरी झंडी दे दी। लेकिन अदालत ने उन पर ऐसे ही रहम नहीं किया। दोनों कंपनियों को ताकीद किया गया कि उन्हें परियोजना स्थल पर पर्यावरण की सुरक्षा और वहां से विस्थापित होने वाले आदिवासियों के कल्याण के लिए भी काम करना होगा।
इन आदिवासियों को उत्खनन करने वाली कंपनियों की वजह से परियोजनास्थल के इलाके से हटना पड़ेगा। अनिल अग्रवाल द्वारा प्रवर्तित कंपनी स्टरलाइट इंडस्ट्रीज अब अपनी विवादास्पद 4 हजार करोड़ रुपये की एल्युमीनियम परियोजना को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील नियामगिरि पहाड़ियों में आगे बढ़ा सकती है।
कंपनी ने अपने एल्युमिना संयंत्र को आपूर्ति करने के वास्ते उत्खनन के लिए 660.749 हेक्टेयर वन भूमि के इस्तेमाल की मंजूरी मांगी थी। मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली विशेष वन पीठ ने स्टरलाइट को बॉक्साइट उत्खनन की अनुमति दे दी है। हालांकि पीठ ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को आदेश दिया कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि परियोजना के कार्यान्वयन में नियमों और कानूनों का पालन हो।
पिछले वर्ष दिसंबर में अदालत की ओर से कंपनी पर लागू की गई शर्तें बरकरार रहेंगी। उनके अनुसार कंपनी से हर साल मुनाफे का 5 प्रतिशत हिस्सा या 10 करोड़ रुपये में से जो भी रकम अधिक हो, ली जाएगी। इस रकम का इस्तेमाल पारिस्थितिकीय संतुलन बरकरार रखने और उन आदिवासियों के कल्याण के लिए किया जाएगा, जो इस परियोजनाओं की वजह से विस्थापित होंगे।
सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति को नियुक्त किया है और दिसंबर में लिए गए फैसले के बाद ‘विशेष उद्देश्य वाली समिति’ पर्यावरण और इस परियोजना से प्रभावित हुए लोगों के पुनर्वास की दृष्टि से इस परियोजना के कार्यों का निरीक्षण करेगी। इसी विशेष पीठ ने उड़ीसा में पोस्को इंडिया की इस्पात परियोजना को भी अपनी मंजूरी दी।
इसमें दक्षिण कोरिया की कंपनी पोस्को की 51 हजार करोड़ रुपये निवेश करने की योजना है। कंपनी की पारादीप में एक बंदरगाह बनाने की भी योजना है। पोस्को ने उड़ीसा सरकार के साथ 2005 में एक करार किया था। सरकारी स्वामित्व वाली उड़ीसा माइनिंग कॉर्पोरेशन (ओएमसी) ने कंपनी की सालाना 1.2 करोड़ टन क्षमता वाली परियोजना के लिए लौह अयस्क और अन्य खनिजों की अबाध आपूर्ति करने की सहमति दी थी।
इस परियोजना के शुरू होने के साथ ही अपनी क्षमता के साथ यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा इस्पात संयंत्र हो सकता है। पोस्को खास तौर पर परियोजना में हो रही देर से बेजार थी। कंपनी ने तो बीच में छत्तीसगढ़ आदि में नई परियोजनाएं शुरू करने और उड़ीसा परियोजना को ठंडे बस्ते में डालने की योजना तक बना ली थी।
यह परियोजना में 1,650 हेक्टेयर जमीन इस्तेमाल में लाई जानी है, जिसमें से 1,253 हेक्टेयर जमीन वन भूमि है। इस वजह से आदिवासियों के बीच तनाव पैदा हो गया था और वे इस विशाल परियोजना के खिलाफ लगभग 3 वर्ष तक आंदोलन करते रहे।