बेंगलुरु की बजाए बफेलो (न्यूयॉर्क) का बयान देकर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत में नई बहस छेड़ दी है।
नैसकॉम के प्रेसीडेंट सोम मित्तल और चेयरमैन प्रमोद भसीन से इस मसले पर बिभु रंजन मिश्र ने विस्तार से बात की। प्रस्तुत है बातचीत के चुनिंदा अंश:
अमेरिकी नीति नियंताओं के लिए बेंगलुरु निशाना बनता हुआ नजर आ रहा है…..
भसीन- मेरी राय में ओबामा का भूगोल बिगड़ गया है। यह शंघाई होना चाहिए, न कि बेंगलुरु।
मित्तल- ओबामा के भाषण में बेंगलुरु और बफेलो का जिक्र किया गया था। मेरा मानना है कि उनके कहने का मतलब अमेरिका में ज्यादा रोजगार पैदा करने से है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे शहर का नाम इसमें शामिल किया गया है।
तो क्या अमेरिकी संरक्षणवाद फिर लौट गया है?
मित्तल- जो हो रहा है, उससे पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। अमेरिका और यूरोपीय देशों में काफी नौकरियां गई है। वहां विनिर्माण, कंस्ट्रक्शन और रिटेल जैसे क्षेत्रों में नौकरियां गई है। लेकिन इस तरह की जब घटना होती है, तो कई तरह के संरक्षणवाद सामने आते हैं। हमने देखा कि जी-20 ने भी संरक्षणवाद के आगमन के संकेत दिए है, क्योंकि यह शब्द अब वैश्विक हो गया है।
निश्चित तौर पर यह खबर भारतीय आईटी उद्योग के लिए अच्छी नहीं है?
मित्तल- संरक्षणवाद पर शिगूफा ज्यादा हो रहा है, लेकिन अंत में सब कुछ खत्म हो जाएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के नए कर प्रस्ताव पर नैसकॉम की क्या राय है?
मित्तल- मेरी राय में यह भारत का मुद्दा नहीं है। इसमें अमेरिकी सहयोगी कंपनी के कर संरचना की बात की गई है।
भसीन- ओबामा के प्रस्ताव में दो बातें शामिल हैं। पहला कर चोरी को बचाना है। यह उन लोगों के लिए जो अपनी आय छुपाते हैं और इसकी घोषणा नहीं करते हैं। दूसरा, यह प्रस्ताव उन कंपनियों के लिए है जो विदेशी परिचालन में लाभ तो कमाते हैं, लेकिन उसका कोई हिस्सा अमेरिकी सरकार को नहीं देते हैं। कोई भी सरकार वैसा ही करती, जो ओबामा ने किया है।
