रेटिंग एजेंसी ICRA ने सोमवार को कहा कि वित्त वर्ष 2025 तक नई बस बिक्री में इलेक्ट्रिक बसों (ई-बसों) का हिस्सा 13 प्रतिशत तक रहने की उम्मीद है।
ICRA ने एक बयान में कहा, “ICRA को उम्मीद है कि इलेक्ट्रिक बसें भारत के इलेक्ट्रिफिकेशन अभियान में सबसे आगे रहेंगी, इस सेगमेंट में आगे चलकर हेल्दी ट्रेक्शन दिखने की उम्मीद है। ICRA का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 तक नई बस बिक्री में ई-बसों की हिस्सेदारी 11-13 प्रतिशत होगी।”
रिपोर्ट का अनुमान है कि सरकारी सब्सिडी और एडवांस टेक्नॉलजी ई-बसों से जुड़ी कॉस्ट को और कम करने में योगदान देंगी। इसके अतिरिक्त, डीजल वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों की ऑपरेशन बचत भी बढ़ती मांग में योगदान करेगी।
इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष 2023 में ई-बस की मांग 7 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
इस गति को और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है क्योंकि राज्य सरकारें अपनी इलेक्ट्रिक वाहन (EV) नीतियों को अनवील कर रही हैं, ई-बस अपनाने के लिए विशिष्ट टार्गेट और समयसीमा निर्धारित कर रही हैं। यह पहल देश में इलेक्ट्रिफिकेशन के रोडमैप को मजबूत करती है।
रेटिंग एजेंसी ने हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास को बढ़ावा देने में FAME योजना के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्हें उम्मीद है कि मार्च 2024 में योजना समाप्त होने तक आने वाले महीनों में यह वृद्धि लगातार जारी रहेगी।
ICRA लिमिटेड के वाइस प्रेसिडेंट और को-ग्रुप हेड कॉर्पोरेट रेटिंग किंजल शाह ने बताया कि ई-बस परियोजनाएं अधिकतर महंगी होती हैं क्योंकि बसों की लागत बहुत अधिक होती है – कुल लागत का लगभग 75-80%। FAME II योजना प्रति बस 35-55 लाख रुपये की सब्सिडी देती है, जो लागत का 40% तक कवर करती है और परियोजनाओं को अधिक व्यवहार्य बनाती है। साथ ही, बसें चलाने में बहुत सस्ती (नियमित बसों की तुलना में 3-5 गुना कम) होने के कारण, ये सब्सिडी ई-बसों के मालिक होने की कुल लागत को नियमित सीएनजी या डीजल बसों की तुलना में 10-25% कम कर देती है।
ICRA ने देखा कि सरकार अधिक ई-बसें चाहती है, इसलिए वे कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज लिमिटेड (सीईएसएल) द्वारा प्रबंधित टेंडर में बोलियां जोड़ रहे हैं।
CESL 3,600 इलेक्ट्रिक बसों के लिए ऑपरेटर खोजने के लिए बोलियां इनवाइट की हैं। वे बसों को खरीदने, सप्लाई करने, चलाने और रखरखाव के साथ-साथ संबंधित इलेक्ट्रिक और सिविल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में सहायता चाहते हैं। यह सब प्रधानमंत्री (पीएम)-ईबस सेवा पहल का हिस्सा है।
सिटी बस सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार के पास 57,613 करोड़ रुपये की योजना है। उनका लक्ष्य 169 शहरों में 10,000 इलेक्ट्रिक बसें चलाने का है, साथ ही उन स्थानों पर ध्यान केंद्रित करना है जहां सुव्यवस्थित बस सेवाएं नहीं हैं।
ICRA का कहना है कि इससे अधिक लोग ई-बसों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। सीईएसएल पहले ही 10,000 से अधिक ई-बसों के लिए दो बोलियां शुरू कर चुकी है।
उन्होंने कहा, चूंकि अधिक बसों की आवश्यकता थी, बहुत सारी कंपनियां पहली दो निविदाओं का हिस्सा बनना चाहती थीं। यहां तक कि दूसरे टेंडर में भी, जहां कोई सब्सिडी नहीं थी, कई मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) ने रुचि दिखाई और इसमें शामिल हो गए।
लेकिन CESL के तीसरे टेंडर में ज्यादा कंपनियां शामिल नहीं हुईं क्योंकि सुरक्षित भुगतान प्रणाली और अलग ऑपरेटिंग मॉडल नहीं था। उन्हें टेंडर रद्द करना पड़ा। ICRA का कहना है कि देश में ई-बस को तेजी से अपनाने के लिए इन मुद्दों को ठीक करना महत्वपूर्ण है।