सड़कों के ठेके देने के लिए सबसे कम बोली लगाने वाली प्रणाली को बदलकर ऐसी प्रणाली में बदलने की जरूरत है, जो बोलियों में गुणवत्ता और जवाबदेही को प्राथमिकता दे ताकि सड़कों और राजमार्गों की बार-बार की दिकक्तों को रोका जा सके, खास तौर पर मॉनसून के सीजन में बार-बार होने वाली समस्याओं को। यह कहना है कि नोएडा-आगरा एक्सप्रेसवे का संचालन करने वाले सुरक्षा ग्रुप के एक वरिष्ठ अधिकारी का।
समूह के निदेशक सुधीर वालिया ने कहा, ‘सड़कों के ज्यादातर ठेके स्थानीय निकायों की खुली निविदा वाली नीलामी के जरिये दिए जाते हैं। हालांकि यह प्रणाली पारदर्शिता को बढ़ावा देती है, लेकिन चयन प्रक्रिया सड़क निर्माण के लिए केवल सबसे कम बोली पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि गहन मूल्यांकन पर आधारित होनी चाहिए।’ मुंबई के इस समूह ने जेपी इन्फ्राटेक की ऋण समाधान योजना के तहत यमुना एक्सप्रेसवे का अधिग्रहण किया था।
एक उदाहरण देते हुए वालिया ने कहा कि हर साल मुंबई के पास मुंबई-नाशिक और मुंबई-वापी जैसे मुख्य मार्ग गड्ढों के कारण खराब हो जाते हैं जिससे यातायात की रफ्तार 20 से 30 किलोमीटर प्रति घंटे तक धीमी पड़ जाती है और यात्रा का समय दो घंटे तक बढ़ जाता है। उन्होंने कहा, ‘यह कोई एक बार की दिक्कत नहीं है, बल्कि साल-दर-साल ऐसा होता रहता है।’
वालिया ने चेताया कि बोली की मौजूदा प्रक्रिया ठेकेदारों को कम कीमत पर बोली लगाने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे बाद में बिल बढ़ जाते हैं या सामग्री पर समझौता किया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘केवल लागत के आधार पर ठेके दिए जाने से अक्सर कीमत कम लगाई जाती है, जहां बाद में ठेकेदार अतिरिक्त वस्तुओं के लिए बिल बढ़ा देते हैं या बचत करने के लिए घटिया सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। सबसे कम बोली लगाने वाले को ठेके देने की मौजूदा परिपाटी सड़कों की गुणवत्ता के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है।’
लगातार दिक्कतों के बावजूद भारत में सड़क निर्माण की लागत वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी है। वालिया ने कहा, ‘सड़क बनाने में लागत महत्त्वपूर्ण होती है, लेकिन सामग्री और निर्माण विधि का चुनाव उससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है।’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पानी सड़कों का ‘सबसे बड़ा दुश्मन’ होता है और ढलानों के खराब डिजाइन तथा अपर्याप्त जल निकासी से सड़कें तेजी से टूटती हैं। उन्होंने प्लास्टिक-मिश्रित टार जैसी तकनीकों का जिक्र किया जो पानी से होने वाले नुकसान को कम कर देती हैं। उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों में पत्थर वाली सड़कों का भी जिक्र भी किया, जो कम श्रम लागत पर टिकाऊ क्षमता और पकड़ प्रदान करती हैं।