राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) ने मंगलवार को रिलायंस कैपिटल के ऋणदाताओं की याचिका पर सुनवाई पूरी की और अपना आदेश सुरक्षित रखा। याचिका में कर्ज में डूबी फर्म के लिए दूसरे दौर की वित्तीय बोली का अनुरोध किया गया है। कंपनी इस समय दिवाला समाधान प्रक्रिया से गुजर रही है।
टॉरेंट इन्वेस्टमेंट्स की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अपनी दलीलें पूरी कीं और कहा कि दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के तहत अधिकतम मूल्य हासिल करने का इरादा रहता है, लेकिन साथ ही संपत्ति के पुनरुद्धार पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
रोहतगी ने तर्क दिया कि IBC एक ऋण वसूली मंच नहीं है और ऋणदाताओं की समिति (COC) को उनकी व्यक्तिगत वसूली से परे देखना चाहिए। मुख्य ध्यान व्यवहार्यता पर होना चाहिए।
ऋणदाताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सोमवार को कहा था कि IBC का मकसद संपत्ति के मूल्य को अधिकतम करना है और COC शर्तों पर बातचीत करने के लिए स्वतंत्र है। NCLAT विस्ट्रा ITCL (भारत) की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
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अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस कैपिटल के ऋणदाताओं ने NCLAT के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें दिवालिया फर्म की आगे की नीलामी को रोक दिया गया है।
NCLAT (राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण) की मुंबई पीठ ने दो फरवरी को कहा था कि वित्तीय बोलियों के लिए चुनौती व्यवस्था 21 दिसंबर, 2022 को खत्म हो गई है, जिसमें 8,640 करोड़ रुपये की सबसे ऊंची बोली टॉरेंट इन्वेस्टमेंट्स की थी। रिलायंस कैपिटल पर करीब 40,000 करोड़ रुपये का कर्ज है।