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Reliance AGM: रिलायंस की AGM पर छाया संकट! अमेरिकी टैरिफ और रूसी तेल डील ने बढ़ाई टेंशन

Reliance AGM: अमेरिकी टैरिफ और रूसी तेल सौदे ने रिलायंस की बड़ी निवेशक मीटिंग पर सवाल खड़े कर दिए हैं; क्या AGM में मुकेश अंबानी देंगे जवाब?

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बीएस वेब टीम   
Last Updated- August 29, 2025 | 9:43 AM IST

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की सालाना आम बैठक (AGM) हमेशा से भारतीय निवेशकों और शेयर बाजार के लिए बड़ा दिन रही है। हर साल निवेशक कंपनी की नई योजनाओं, बड़े ऐलानों और चेयरमैन मुकेश अंबानी के भाषण का इंतजार करते हैं। लेकिन इस बार फोकस सिर्फ भविष्य की योजनाओं पर नहीं बल्कि मौजूदा हालात पर भी रहेगा।

रूसी तेल सौदे और अमेरिकी दबाव

अमेरिका ने हाल ही में भारत पर डबल टैरिफ लगाया है, यह कदम सस्ते रूसी तेल आयात को लेकर उठाया गया। रिलायंस ने रूस की रोसनेफ्ट कंपनी के साथ लंबी अवधि का तेल खरीद समझौता किया है। इस डील से कंपनी को इस साल सैकड़ों मिलियन डॉलर की बचत हुई है। लेकिन अब कंपनी दोराहे पर है। अगर रूसी तेल छोड़ती है तो मुनाफे का बड़ा मौका गंवाएगी, और अगर जारी रखती है तो अमेरिकी प्रतिबंधों का खतरा रहेगा।

यूरोपीय संघ ने जुलाई में नायरा एनर्जी को ब्लैकलिस्ट किया था, जो रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी के पास ही एक रिफाइनरी चलाती है। इससे वहां वित्तीय और लॉजिस्टिक दिक्कतें बढ़ गईं। यही डर अब रिलायंस पर भी मंडरा रहा है।

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अंबानी का भाषण और उम्मीदें

जानकारों का कहना है कि मुकेश अंबानी का भाषण रूस पर सीधे तौर पर कुछ नहीं कहेगा। वे डिजिटल कारोबार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नई ऊर्जा परियोजनाओं पर फोकस करेंगे। रिलायंस ने हाल के सालों में अपने कारोबार का बड़ा हिस्सा टेलीकॉम, रिटेल और ग्रीन एनर्जी की ओर मोड़ा है।

कंपनी का जियो टेलीकॉम बिज़नेस भारत में मोबाइल और इंटरनेट की तस्वीर बदल चुका है। आज रिलायंस देश की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी भी है और गुजरात में ग्रीन एनर्जी के लिए दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब खड़ा कर रही है।

अमेरिका का दबाव और रूस का साया

हालांकि मुकेश अंबानी रूस पर खुलकर कुछ न भी कहें, लेकिन रूस का मुद्दा AGM के ऊपर छाया रहेगा। हालिया समय में, सीनियर अमेरिकी अधिकारियों ने भारत की कड़ी आलोचना तेज कर दी है। बुधवार को व्हाइट हाउस के ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो ने फिर आरोप लगाया कि भारत रूस की “वॉर मशीन” को फंड कर रहा है। उन्होंने अंबानी का नाम नहीं लिया, लेकिन यह जरूर कहा कि भारत के कुछ सबसे अमीर परिवार युद्ध से मुनाफा कमा रहे हैं। यह ऐसे समय में कहा गया जब भारत के सबसे अमीर उद्योगपति अंबानी की कंपनी देश में रूसी कच्चे तेल की सबसे बड़ी खरीदार है।

ट्रंप प्रशासन के दबाव अभियान के बाद भारत ने रूसी कच्चे तेल की खरीद कम तो की है, लेकिन बंद नहीं की। द एशिया ग्रुप के सीनियर सलाहकार मार्क लिंस्कॉट ने सवाल उठाया, क्या भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद घटाना और अमेरिकी तेल सोर्स की ओर शिफ्ट होना ट्रंप प्रशासन को मान्य होगा, या फिर अमेरिका चाहता है कि भारतीय सरकार सीधे मुनाफाखोरी के आरोपों पर कार्रवाई करे? उन्होंने कहा कि यह समझना मुश्किल है कि ट्रंप प्रशासन की असली अपेक्षाएं क्या हैं।

वॉशिंगटन के सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी की एनालिस्ट रैचेल जीम्बा ने कहा, “मुझे लगता है कि इस बार बहुत से सवाल उठेंगे। आगे कंपनी का आउटलुक और धुंधला हो सकता है, क्योंकि उसे ज्यादा कंप्लायंस का सामना करना पड़ेगा। रिलायंस पर राजनीतिक दबाव और टैक्सेशन का बोझ भी बढ़ सकता है।”

तेल कारोबार अब भी अहम

हालांकि, कंपनी का तेल, गैस और केमिकल कारोबार अभी भी कुल राजस्व का आधे से ज्यादा और मुनाफे का 40% तक हिस्सा रखता है। ICRA के मुताबिक, वित्त वर्ष 2025 में भारत ने रूसी तेल सौदों से करीब 3.8 अरब डॉलर की बचत की। अकेले रिलायंस ने इस साल की पहली छमाही में लगभग 571 मिलियन डॉलर बचाए।

नया संतुलन बनाने की कोशिश

रिलायंस अब अमेरिकी और खाड़ी देशों से कच्चे तेल की नई खरीद पर भी काम कर रही है। हाल ही में कंपनी ने अक्टूबर के लिए 20 लाख बैरल अमेरिकी कच्चा तेल खरीदने का सौदा किया है। इसे अमेरिका के साथ रिश्तों को बेहतर करने का संकेत माना जा रहा है।

Reliance AGM का फोकस

मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बार की AGM में जियो, रिन्यूएबल एनर्जी और बाहरी निवेश पर फोकस होगा। तेल और गैस पर कोई बड़ा ऐलान नहीं किया जाएगा। ध्यान इस बात पर भी रहेगा कि अमेरिका के दबाव के बीच रिलायंस अपनी रणनीति कैसे आगे बढ़ाती है, क्योंकि कंपनी का जामनगर कॉम्प्लेक्स दुनिया की सबसे बड़ी और एडवांस रिफाइनरी है, जो मुश्किल से मुश्किल कच्चे तेल को भी प्रोसेस कर सकती है। (ब्लूमबर्ग के इनपुट के साथ)

First Published : August 29, 2025 | 9:42 AM IST