Illustration by Binay Sinha
रियल एस्टेट कंपनियों के लिए परियोजना के मुताबिक दिवाला समाधान की अनुमति देने के प्रस्ताव के संभावित दुरुपयोग से चिंतित कंपनी मामलों का मंत्रालय (MCA) कुछ ‘व्यवधान’ पर काम कर रहा है, जिससे कानून में संतुलन बना रहे। सरकार से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी है।
ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (IBC) पर अपने परामर्श पत्र में मंत्रालय ने प्रस्ताव किया है कि ‘जब कॉर्पोरेट देनदार द्वारा कॉर्पोरेट इंसाल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रॉसेस (CRIP) की पहल करने के लिए आवेदन किया जाता है, जो रियल एस्टेट परियोजना का प्रमोटर है और चूक उसकी एक या एक से अधिक रियल स्टेट परियोजना के मामले में होती है, तो संबंधित सक्षम अधिकारी अपने विवेक के मुताबिक उस मामले को स्वीकार कर सकता है, लेकिन CRIP प्रावधान सिर्फ ऐसी रियल एस्टेट परियोजनाओं पर ही लागू होगा, जिन्होंने चूक की है।’
एमसीए ने कहा है कि इस तरह की परियोजनाएं समाधान के सीमित मकसद के लिए बड़ी इकाई से अलग चिह्नित की जाएंगी। राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (NCLT) उन मामलों पर फैसला का अधिकार दिया जा सकता है, जहां रियल एस्टेट परियोजना का ऋणशोधन एक परियोजना की चूक तक सीमित है।
सरकार रियल एस्टेट इंसाल्वेंसी से निपटने के लिए पूरी तरह अलग व्यवस्था की जरूरत पर भी चर्चा कर रही है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘रियल एस्टेट परियोजना की इंसाल्वेंसी में सबके लिए उचित कोई एक ढांचा नहीं हो सकता। हमें पर्याप्त प्रतिबंधों के साथ तेजी से काम करने वाली एक व्यवस्था लानी होगी।’
आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के साथ मिलकर एमसीए रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) के प्रतिनिधियों के साथ भी इस मसले पर चर्चा कर रहा है। इसमें से एक प्रस्ताव सिर्फ रेरा में पंजीकृत परियोजनाओं का परियोजना वार दिवाला समाधान की अनुमति देने से जुड़ा है।
रेरा उत्तर प्रदेश के चेयरमैन राजीव कुमार ने कहा कि आईबीसी की कार्यवाही में रेरा और गैर रेरा परियोजनाओं में भेद नहीं किया जाता है। इस प्रक्रिया को विचाराधीन परियोजना तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। कानून में यह बदलाव एनसीएलटी के कुछ आदेशों को कानूनी समर्थन देगा। कानून के दुरुपयोग की चिंता को देखते हुए सरकार प्रवेश के पहले कुछ नियम कानून जैसी सुरक्षा स्थापित करने पर विचार कर रही है, जिससे कि कोष का अनधिकृत डायवर्जन न हो। कुमार ने कहा कि रेरा को यह देखने कीअनुमति होनी चाहिए कि एनसीएलटी के फैसले के पहले क्या परियोजना का कोई समाधान हो सकता है।
IBC के अस्तित्व में आने के बाद से ही रियल एस्टेट क्षेत्र की अपनी अलग चुनौतियां रही हैं। वैश्विक पेशेवर सेवा फर्म अलवर्ज ऐंड मार्शल ने कहा कि परंपरागत वित्तीय कर्जदाताओं की तुलना में मकान के खरीदारों का व्यवहार अलग होता है और वे कमजोर आर्थिक फैसले कर सकते हैं।
IBC में प्रस्तावित बदलाव में समाधान पेशेवरों को मालिकाना के हस्तांतरण में सक्षम बनाना और सीओसी की सहमति से भूखंड, अपार्टमेंट या भवन पर आवंटी को कब्जा दिलाने का अधिकार दिया जाना शामिल है।