देश का केंद्रीय बैंक गहन पूंजी वाली बीमा कंपनियों में बैंकों की हिस्सेदारी अधिकतम 20 फीसदी तक सीमित करना चाहता है, जो मौजूदा नियम के तहत मंजूर सीमा का आधा से भी कम है। सूत्रों ने रॉयटर्स को यह जानकारी दी। भारतीय रिजर्व बैंक के नियम के तहत बैंकों को बीमा कंपनियों में 50 फीसदी हिस्सेदारी लेने की अनुमति है और चुनिंदा आधार पर इक्विटी होल्डिंग ज्यादा भी हो सकती है लेकिन निश्चित अवधि में उसे घटाकर नीचे लाना भी आवश्यक है।
सूत्रों ने हालांकि कहा कि साल 2019 में केंद्रीय बैंक ने बीमा कंपनियों की हिस्सेदारी लेने की इच्छा रखने वाले बैंकों को अनाधिकारिक तौर पर कहा ता कि वे ऐसी हिस्सेदारी की अधिकतम सीमा 30 फीसदी रखे और हाल मे उन्हें ऐसी खरीद 20 फीसदी तक सीमित रखने का निर्देश दिया गया है। सूत्रों ने कहा, अनाधिकारिक तौर पर बैंकों से कहा गया है कि बीमा फर्मों में हिस्सा बढ़ाने वाले बैंकों के प्रति नियामक सहज नहीं है।
आरबीआई चाहता है कि बैंक गैर-प्रमुख क्षेत्रों मेंं पूंजी लगाने के बजाय अपने मुख्य कारोबार पर ध्यान केंद्रित करे। इस बारे में पूछे जाने पर केंद्रीय बैंक ने कोई टिप्पणी नहीं की। अनाधिकारिक तौर पर आरबीआई की तरफ से कहे जाने का मतलब यह है कि केंद्रीय बैंक इस क्षेत्र में लेनदारों के स्वामित्व में एकरूपता चाहता है, जैसा कि नवंबर में आंतरिक समूह की तरफ से जारी दस्तावेज में सुझाव दिया गया था।
कोटक महिंद्रा बैंक व भारतीय स्टेट बैंक जैसे लेनदारों के पास पूर्ण स्वामित्व वाली बीमा कंपनी है या बहुलांश हिस्सेदारी वाली बीमा सहायक है। इस दस्तावेज में कहा गया है कि अगर किसी लेनदार की बीमा कंपनी में हिस्सेदारी 20 फीसदी से ज्यादा है तो उन्हें गैर-परिचालन वाली वित्तीय होल्डिंग कंपनी का ढांचा अपनाना चाहिए। ज्यादातर लेनदार ऐसा ढांचा नहीं अपनाना चाहता क्योंकि यह शेयरधारक की वैल्यू को झटका देगा और पूंजी जुटाने की उनकी क्षमता को सीमित करेगा।
आंतरिक समूह ने जो सुझाव दिए हैं उन पर आरबीआई विचार कर रहा है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि कब केंद्रीय बैंक इन सुझावों को लागू करेगा। इस पृष्ठभूमि में सूत्रों का कहना है कि आरबीआई बीमा कंपनियों में नई हिस्सेदारी लेने के बैंक के अनुरोध पर लगाम कस सकता है।