कैंसर की एक प्रमुख दवा की कीमतों पर दबाव के साथ-साथ संभावित टैरिफ से पहले मार्च में अमेरिका को भेजी गई खेपों में तेज वृद्धि के कारण वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही के दौरान अमेरिका को दवा निर्यात करने वाली प्रमुख कंपनियों का प्रदर्शन मिला-जुला रहा है।
डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज (डीआरएल), सिप्ला और अरबिंदो जैसी कंपनियों ने खास तौर पर प्रमुख दवाओं की कीमतों में गिरावट की वजह से अमेरिका को जाने वाले निर्यात में गिरावट दर्ज की है। इस बीच सन फार्मा ने मामूली 1.5 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया जबकि जाइडस ने पिछल साल के मुकाबले 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। इसके विपरीत ल्यूपिन, टॉरंट फार्मा और एलेम्बिक जैसी कंपनियों ने बाजार में नई दवाओं की शुरुआत की बदौलत दो अंकों की जोरदार वृद्धि दर्ज की है।
मुंबई के एक फार्मा विश्लेषक ने कहा, ‘कुछ कंपनियों के अमेरिकी राजस्व में गिरावट के जो कारण हैं, उनमें से एक है जेनेरिक रेवलिमिड की कीमतों में कमी। इसके अलावा संभावित टैरिफ की आशंका से मार्च में भी अमेरिका को निर्यात में वृद्धि हुई थी। हमें पहली तिमाही में अमेरिकी निर्यात में कोई प्रणालीगत समस्या नहीं दिख रही है।’
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मूल्य निर्धारण संबंधी प्रतिस्पर्धा लंबी अवधि तक जारी रहेगी। प्राइमस पार्टनर्स के समूह के मुख्य कार्य अधिकारी और सह-संस्थापक निलय वर्मा ने कहा, ‘कई भारतीय फार्मा कंपनियों ने वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में उत्तरी अमेरिका में धीमी वृद्धि दर्ज की जिसकी मुख्य वजह अमेरिकी जेनेरिक बाजार में कीमतों में लगातार गिरावट आना है।’ कुछेक अधिक मूल्य वाली दवाओं की शुरुआत करने के अलावा अमेरिकी वितरकों द्वारा स्टॉक को दुरुस्त किए जाने और नियामकीय देरी ने नरमी को और बढ़ा दिया।
जाइडस लाइफसाइंसेज अपने समेकित राजस्व का 49 प्रतिशत भाग अमेरिकी बाजार से हासिल करती है। कंपनी विशेषज्ञता क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रही है और बच्चों की दुर्लभ बीमारियों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। उसने पहली तिमाही में अमेरिका में 3 दवा उतारी हैं और तिमाही के दौरान 6 और दवाओं के लिए मंजूरी हासिल की है। सन फार्मा भी विशेषज्ञता के अपने पोर्टफोलियो को दोगुना कर रही है, जिसे अब ‘नवीन दवाओं’ के रूप में नए ढंग से पेश किया जा रहा है। वह अपने समेकित राजस्व का 29 प्रतिशत भाग अमेरिका से प्राप्त करती है।