इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड एकांउटेंट्स ऑफ इंडिया ने सभी कंपनियों से मांग की है कि वे डेरिवेटिव कारोबार (विदेशी मुद्रा वायदा कारोबार) में हुए मार्क-टू-मार्केट घाटे को इसी वित्तीय वर्ष में स्पष्ट करें।
इस मांग के मद्देनजर देश के प्रमुख चार्टर्ड एकांउटेंट (सीए) ने आईसीएआई के इस कदम का स्वागत किया है।चार्टर्ड एकाउंटेंटों का मानना है कि आईसीएआई के इस प्रभावी कदम से शेयर बाजार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा इससे भारतीय लेखा मानकों के बारे में निवेशकों में फिर से विश्वास की उम्मीद जगेगी।
इस विषय में पूछे जाने पर कि आईसीएआई द्वारा उठाए गए कदम भारतीय रिजर्व बैंक की अपेक्षाओं के अनुरूप है या नहीं, देश के अधिकांश चार्टर्ड एकाउंटेंट ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कोई भी कंपनी यह नहीं चाहेगी कि उसे अपनी बैलेंस शीट को लेकर किसी अव्यावहारिक व अनुचित मुद्दों से सामना करना पड़े।
प्राइसवाटरहॉउसकूपर्स में टैक्स एंड रेग्युलेटरी प्रैक्टिस के अध्यक्ष दिनेश कनाबर ने कहा कि इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट ऑफ इंडिया ने जो कदम उठाया है वह बेहद सक्रिय कदम है। कनाबर ने बताया,”निस्संदेह इस सराहनीय कदम से डेरिवेटिव मार्केट में मार्क-टू-मार्केट को लेकर निवेशकों के बीच अधिक से अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। फिलहाल हमें देखने है कि कंपनी जो घोषणा करेगी, उसके मद्देनजर टैक्स ऑथरिटी मार्क-टू-मार्केट घाटे पर टैक्स छूटों को मंजूरी देती है या नहीं।”
ऑटो पार्टस बनाने वाली एक कंपनी एन. के. मिंडा ग्रुप के गु्रप फाइनैंस अध्यक्ष सुधीर जैन ने बताया,”विदेशी विनिमय डेरिवेटिव पर उठाई गई हानि कल्पित है। निस्संदेह उसके खुलासे से वित्तीय विवरणों के पारदर्शिता में सहायता मिलेगी।”
एस. एस. कोठारी मेहता एंड कंपनी के मैनेजिंग पार्टनर के. एस. मेहता ने कहा कि आईसीएआई परिपत्र में यह बार बार कहा गया है कि डेरिवेटिव कारोबार के मद्देनजर जिन कंपनी को घाटे का सामना कहना पड़ा है उसकी पहचान की जाए। इसके अलावा मेहता ने यह भी कहा कि अगर किसी कंपनी ने कोई मामला दर्ज कर रखा है, तो यह कोई आधार नहीं होना चाहिए कि डेरिवेटिव मार्केट में हए घाटे को कंपनी द्वारा स्पष्ट नहीं किया जाएगा।
कंपनी द्वारा यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि उसे डेरिवेटिव मार्केट में कितना घाटा हुआ है।आईसीएआई में कॉर्पोरेट लॉ एंड मैनेजमेंट एकाउंटिंग कमिटी के अध्यक्ष विनोद जैन ने बताया,”एक लेखांकन नियामक होने के नाते आईसीआई यह महसूस करती है कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप भारतीय कंपनियों को पूरी तरह अनुवर्ती बनाया जाना आवश्यक है।
बहुत सारी भारतीय कंपनियों ने यह स्पष्ट किया है कि मुद्राओं, जिंसों और इक्विटी अनुबंधों में ही वित्तीय संबंधी घाटों का सामना करना पड़ा है। इसमें कोई शक नहीं कि नए मानकों को प्रभाव में लाने के बाद जो पारदर्शिता आएगी, उससे वित्तीय बाजार में भारतीय वित्तीय विवरणों की विश्वसनीयता और अधिक बढ़ जाएगी।”
गौरतलब है कि बीते शनिवार को आईसीएआई ने देश की सभी कंपनियों से मांग की थी कि वे डेरिवेटिव मार्केट में मार्क-टू-मार्केट आधार पर हुए घाटे को प्रकट करे। ईसीएआई के अग्रगामी लेखा मानकों, एएस-30 (एकाउंटिंग स्टैंडर्ड 30), जिसे 1 अप्रैल, 2011 से अनिवार्य किया जाएगा के मद्देनजर कंपनियों से यह मांग की गई है। प्रावधानों के अनुसार कंपनियों को डेरिवेटिव मार्केट में हुए सभी घाटे को स्पष्ट करना अनिवार्य होगा।
आईसीएआई के अध्यक्ष वेद जैन ने बताया कि परामर्शदातों का लक्ष्य देश की सभी कंपनियों को एएस-30 के प्रावधानों के प्रति जागरूक करना है। वेद जैन ने बताया,”आईसीएआई द्वारा जो भी नए प्रावधान लाए जाएंगे उसे दो साल बाद यानी 2011 से अनिवार्य कर दिया जाएगा।”
एक प्रमुख चार्टर्ड एकाउंटेंट अमित आजाद ने बताया,”फिलहाल आईसीएआई द्वारा लाए जाने वाले प्रावधनों के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। इसका मुख्य कारण यह भी है कि यह पहली बार लाया जा रहा है। हालांकि डेरिवेटिव मार्केट में लेखा के बारे में सभी कंपनियां अवगत हैं और इसके बारे में किसी भी कंपनी को समझना मुश्किल नहीं है।
आईसीएआई परिपत्र की मुख्य बातें
तीन महीने पहले आईसीएआई डेरिवेटिव के लिए एक नया लेखा मानक एस-30 को लेकर आया था
1 अप्रैल 2009 से यह वांछनीय होगा जबकि 1 अप्रैल 2011 से यह अनिवार्य हो जाएगा
अगर कोई कंपनी एस-30 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चलती है, तो कंपनियों को बैलेंस शीट में वित्तीय वर्ष 2008 से मार्क-टू-मार्केट में बकाया डेरिवेटिव को दर्शाना होगा
अगर कंपनियों द्वारा एएस-30 के प्रावधानों का अनुसरण किया जाता है, तो वित्तीय विवरणों में पहचान की गई राशि को स्पष्ट करना आवश्यक होगा।