तीन साल पहले पेटेंट कानूनों में बदलाव के कारण पेटेंट वाली सस्ती दवाएं बेचने से वंचित भारतीय दवा कंपनियों को जल्दी ही बांग्लादेश से सहारा मिल सकता है।
पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में भारतीय तकनीकी साझेदारी की नई संभावनाए पैदा होने जा रही है। वहां के पेटेंट कानूनों में संशोधन के तहत पेटेंट वाली सस्ती दवाओं की घरेलू बिक्री और निर्यात के लिए बांग्ला देश को मुख्य केंद्र बनाया जाएगा। कुछ नियमों में लचीलेपन की वजह से बांग्ला देश में इस लक्ष्य को पूरा भी किया जा सकता है। विश्व व्यापार संगठन के तहत ट्रिप्स समझौते के अनुसार बांग्ला देश जैसे पिछड़े देशों में इस तरह की दवाओं का 2016 तक उत्पादन करने की छूट दी गई है।
इस बाबत ऑक्सफोर्ड आई पी अनुसंधान केंद्र के शोध सहायक शमनाद बशीर ने कहा,’यह भारतीय कंपनियों के लिए शानदार अवसर है। 2005 का अधिनियम पारित होने के बाद से कई कंपनियों का मानना रहा है कि उनका पुराना व्यापारिक मॉडल कारगर साबित नहीं हो पा रहा है। इन कंपनियों के लिए बांग्ला देश बहुत ही बेहतर आधार है जहां से ये कंपनियां अपनी कारोबारिक गतिविधियां चला सकती हैं। ‘
बशर का यह भी मानना है कि न केवल व्यापारिक नजरिये से सस्ती दवाओं का फॉर्मूला कामयाब रहेगा बल्कि जन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह बेहतर कदम है। समानांतर आयात के प्रावधानों के तहत भारतीय पेटेंट अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया है कि इन दवाओं के आयात के लिए कहीं से भी कोई समस्या नहीं है बशर्ते कानून के अंतर्गत उस देश में उस दवा के उत्पादन की इजाजत हो।
बांग्लादेश फार्मास्युटिकल्स इंडस्ट्री एसोसिएशन (बीएपीआई) के महासचिव नजमुल एहसान भी इससे सहमत दिखते हैं। उनका कहना है कि हमारी सरकार ट्रिप्स के लचीलेपन और मौजूदा पेटेंट कानूनों के प्रावधानों को शामिल करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। यह एक गठजोड़ के रूप में होगा जिससे पेटेंट वाली दवाओं के कहीं भी उत्पादन को मान्यता दी जाएगी। एहसान ने यह भी बताया कि हम इसकी आपूर्ति विकासशील देशों को करने में भी सक्षम होंगे।
उन्होंने बताया कि वैसे हमारी पहली प्राथमिकता दवा उत्पादन की रहेगी इसके लिए कच्चे माल की आपूर्ति के लिए हम प्रमुख रूप से भारत को साझेदार के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत में नये पेटेंट कानूनों के चलते पेटेंट दवाओं के कच्चे माल और बल्क ड्रग्स की आपूर्ति में अड़चनें हैं। लेकिन यहां से द्वितीयक स्तर के कच्चे माल यानी इंटरमीडिएट्स की आपूर्ति दुनिया भर में बिना किसी दिक्कत के हो सकती है।
इंटरमीडिएट्स वो पदार्थ होते हैं जो उत्पादन प्रक्रिया में एक चरण पहले प्रयुक्त किए जाते हैं और दवा की श्रेणी में नहीं आते। यदि भारतीय कंपनियां अपनी बांग्ला देशी सहयोगी कंपनियों को तकनीकी रूप से सुदृढ़ करने में सक्षम हो पाती हैं तो इन इंटरमीडिएट्स को दोबारा विकसित करके बल्क ड्रग्स और अंत में दवा भी बनाई जा सकती है। इन दवाओं का गरीब देशों में काफी बड़ा बाजार है। अनिवार्य लाइसेंस के आधार पर भारत जैसे देशों तक इनकी पहुंच हो सकती है।
अहसान ने बताया कि बांग्ला देश सरकार 300 एकड़ जमीन में एक फार्मास्युटिकल पार्क बनाने जा रही है। इसमें इंटरमीडिएट स्तर से दवाओं का उत्पादन किया जाएगा। उनका कहना है कि बहुत सारी भारतीय दवा कंपनियों ने इस पार्क में बल्क ड्रग्स इकाइयां स्थापित करने में रूचि दिखाई है। इसके लिए उन्होंने बांग्लादेशी कंपनियों से बात भी की है।
अभी उनके नाम का खुलासा करना जल्दबाजी होगा लेकिन इसको लेकर उनकी गंभीरता तय है। अहसान की कंपनी बेक्सिमको जो बांग्ला देश की दूसरी सबसे बड़ी दवा कंपनी है, का भारतीय दवा कंपनी अरबिंदो से पहले से ही तकनीकी गठजोड़ है। बेक्सिमको की सालाना बिक्री तकरीबन 6.5 करोड़ डॉलर की है।