डिजिटल अधिकार संगठन एक्सेस नाऊ से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) कानून उन उद्देश्यों को पूरा नहीं कर रहा है, जिसके लिए इसे तैयार किया जा रहा है। इसका मकसद सार्वजनिक या निजी क्षेत्रों में व्यक्तियों के आंकड़ों की सुरक्षा के अधिकार का संरक्षण शामिल है, वहीं इसके दायरे का विस्तार अन्य क्षेत्रों में बगैर किसी परामर्श के किया गया है।
पीडीपी को अब संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाना है, जो इस सप्ताह शुरू होगा। पीडीपी पर बनी संसद की संयुक्त समिति के सदस्यों ने शुरुआती मसौदे में कुछ बदलाव के सुझाव दिए थे और पेश की गई रिपोर्ट पर असहमति नोट भी आ चुके हैं। साथ ही इस प्रस्तावित कानून में सोशल मीडिया जैसे नए क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।
एशिया पैसिफिक पॉलिसी के निदेशक और वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय परामर्शदाता रमन जीत सिंह चीमा और एशिया प्रशांत पॉलिसी परामर्शदाता नम्रता माहेश्वरी ने कहा, ‘अब तक की रिपोर्टों और इस प्रक्रिया में शामिल सांसदों की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक यह साफ है कि यह इस समय निजता और डेटा संरक्षण कानून नहीं है, जिसकी भारत को जरूरत है. मौजूदा मसौदे में खासकर सरकार से लोगों की निजता की सुरक्षा का पर्याप्त प्रावधान नहीं है। संसद को मसौदे में संशोधन कर निजता पर उच्चतम न्यायालय के नियम और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के मुताबिक करना होगा।’
आंकड़ोंं की चोरी और वित्तीय धोखाखड़ी बढ़ रही है, ऐसे में आंकड़ोंं की सुरक्षा के लिए मजबूत कानून वक्त की मांग है।
