भारत की सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां ग्राहकों से बड़े सौदे हासिल करने के लिए अनुबंध की कड़ी शर्तें स्वीकार कर रही हैं क्योंकि उन्हें अनिश्चित वैश्विक आर्थिक हालात में ऑर्डर की कमी के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। उद्योग के अंदरूनी सूत्रों और विश्लेषकों ने यह जानकारी दी है।
245 अरब डॉलर के इस क्षेत्र को वैश्विक महामारी की वजह से डिजिटल सेवाओं में आई उछाल से काफी फायदा हुआ है। इस क्षेत्र को हाल की तिमाहियों के दौरान संघर्ष करना पड़ा है क्योंकि ग्राहकों ने महंगाई के दबाव और मंदी की आशंकाओं के बीच वैकल्पिक परियोजनाओं पर खर्च कम कर दिया है। इससे टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, इन्फोसिस और एचसीएलटेक जैसी कंपनियों को अनुबंध की शर्तें स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इनमें न्यूनतम लागत बचत की गारंटी, कुछ लक्ष्य हासिल होने पर ही ग्राहक को बिल देना और लागत वृद्धि की समीक्षा करने जैसी शर्तें शामिल हैं।
इन्फोसिस के पूर्व सीएफओ वी बालाकृष्णन ने कहा ‘जब कभी आर्थिक चुनौतियां दिखती हैं और मांग कम हो जाती है, तो यह खरीदार का बाजार बन जाता है। ग्राहक मूल्य निर्धारण सीमित करने और परिणाम-आधारित सौदों की मांग करने जैसी अधिक शर्तों पर जोर देने की कोशिश करते हैं।’
उन्होंने कहा कि साल 2008 के दौरान ऐसा देखा गया था, जब वैश्विक वित्तीय संकट आया था और साल 2001 के दौरान जब डॉट-कॉम धराशायी हुआ था।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज और इन्फोसिस ने रॉयटर्स के टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। एचसीएलटेक ने विशिष्ट सौदे की शर्तों के संबंध में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
आईटी अनुसंधान फर्म एवरेस्ट ग्रुप के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2023 में जिन 1,600 से अधिक आईटी और कारोबार क्रियान्वयन प्रबंधन सौदों पर निगाह रखी गई थी, उनमें से 80 प्रतिशत से अधिक में वचन-बचत की शर्त का कोई न कोई रूप शामिल था, जबकि साल 2019 में यह प्रतिशत लगभग 65 था।