ब्रिटेन और नीदरलैंड में इस्पात उत्पादन कारोबार करने वाली टाटा स्टील की इकाई टाटा स्टील यूरोप ने एबिटा के मोर्चे पर वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही में अब तक का बेहतरीन प्रदर्शन दर्ज किया है। हालांकि पर्यावरण के अनुकूल इस्पात उत्पादन पर जोर के कारण ब्रिटेन में कारोबार की स्थिति नाजुक बनी हुई है। टाटा स्टील के एमडी एवं सीईओ टीवी नरेंद्रन ने ईशिता आयान दत्त से बातचीत में कहा कि ब्रिटेन सरकार को इस बदलाव का समर्थन करना चाहिए क्योंकि इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। पेश हैं मुख्य अंश:
टाटा स्टील के प्रदर्शन को यूरोप से काफी रफ्तार मिली है। क्या यह टिकाऊ है?
इन स्तरों पर नहीं। वास्तव में यह एक दमदार तिमाही थी और हमने उतना किया जितना आमतौर पर पूरे साल के दौरान करते थे। दूसरी तिमाही में भी लागत का दबाव बरकरार रहेगा, कोयले की कीमतों में गिरावट की शुरुआत हो चुकी है लेकिन संभावित इन्वेंट्री को देखते हुए ऐसा लगता है कि तीसरी तिमाही से पहले हमें उसका फायदा नहीं मिलेगा। इसके अलावा हमारे करीब 30 फीसदी अनुबंध वार्षिक हैं जो दिसंबर तक बरकरार रहेंगे और 30 फीसदी अनुबंध छमाही हैं। छमाही अनुबंध के लिए हम जुलाई में बातचीत करते हैं और उस दौरान मूल्य में कुछ सुधार की गुंजाइश बनती है। इसलिए यूरोपीय कारोबार के मार्जिन पर भी दबाव बरकरार रहेगा, लेकिन यूरोप का प्रदर्शन पहले के मुकाबले बेहतर रहेगा।
यूरोप में प्रति टन एबिटा टाटा स्टील इंडिया के मुकाबले अधिक रहा। क्या ऐसा पहली बार हुआ है?
जब आप यूरोपीय कारोबार पर गौर करेंगे तो आमतौर पर प्राप्तियां अधिक दिखेंगी। हमें वार्षिक एवं छमाही अनुबंधों की अधिक कीमतों का फायदा मिला। इसलिए पहली बार यूरोपीय कारोबार का प्रति टन एबिटा अधिक रहा। नीदरलैंड ने भी खासतौर पर अच्छा प्रदर्शन किया है। उसने सौ फीसदी कच्चे माल की खरीदारी की। इसलिए उसका प्रदर्शन भारत के मुकाबले बेहतर रहा क्योंकि भारतीय इकाई ने 80 फीसदी कोयले की खरीदारी की लेकिन सौ फीसदी लौह अयस्क हमारा अपना था।
इस प्रदर्शन के बावजूद सरकारी राहत न मिलने पर आप पोर्ट तालबोट को बंद कर देंगे। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है?
ब्रिटेन कारोबार ने एक लंबा सफर तय किया है। आज वह एबिटा सकारात्मक और नकदी सकारात्मक है। आज वह जैसा चाहे अपना परिचालन कर सकता है। लेकिन अगले कुछ वर्षों में इनमें से अधिकतर परिसंपत्तियां खत्म हो जाएंगी। इसलिए उन परिसंपतियों को बदलने अथवा नई प्रक्रिया को अपनाने की आवश्यकता होगी। हमने सरकार से कहा है कि पर्यावरण के अनुकूल नई प्रक्रियाओं को अपनाने के लिए हमारे लिए यह अच्छा समय है। इससे हमें और सरकार को कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे नई परिसंपत्तियां सृजित करने में भी मदद मिलेगी जो लंबी अवधि तक बरकरार रहेंगी। स्पेन, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों में सरकार इस्पात उद्योग के बदलाव में मदद कर रही है।
चर्चा है कि ब्रिटेन में बदलाव की लागत करीब 3 अरब पाउंड होगी। यदि वहां की सरकार 1.5 अरब पाउंड की मदद करती है तो क्या शेष रकम टाटा स्टील इंडिया उपलब्ध कराएगी?
कुल आवश्यक रकम इससे काफी कम है। सैद्धांतिक तौर पर यदि सरकार 50 फीसदी रकम उपलब्ध कराती है तो हम भी 50 फीसदी निवेश करेंगे।