कताई और बुनाई की आवाजें, जिन्हें अक्सर कपड़ों का शोर कह कर खारिज कर दिया जाता है वह तिरुपुर के कानों के लिए संगीत है। बाहरी लोगों को भले वहां होने वाली रंगाई, छपाई से निकलने वाले रसायन का दुर्गंध लगे मगर स्थानीय लोगों के लिए वह उनकी अर्थव्यवस्था की वैसी खुशबू है, जो हजारों वर्षों से चली आ रही है। उदाहरण के लिए, कहा जाता है कि वहां के पास का गांव कोडुमानल ने ही 2,500 साल पहले प्राचीन रोम को कपड़े पहनाए थे।
इस महीने की शुरुआत में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जवाबी शुल्क लगाने की घोषणा की थी तब कई लोगों को ऐसा लगा कि इसके बाद अब तिरुपुर की कहानी खत्म हो जाएगी, चूंकि यह अभी ही वैश्विक महामारी से उबरा था। इसके बदले, बीते दो हफ्तों से तिरुपुर की सड़कें और भी जीवंत हो गई हैं। एजेंट खरीदारी से जुड़ी जानकारी और ऑर्डर में दमदार वृद्धि देख रहे हैं और अधिकतर विनिर्माता भी मांग की इस नई लहर को पूरा करने के लिए कारोबार के विस्तार के लिए कमर कसने लगे हैं। आखिर अचानक आए इस बदलाव का क्या कारण है।
जानकारों का कहना है कि चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों पर अमेरिका ने भारी जवाबी शुल्क लगाया है और यही कारण है कि अब खरीदार तिरुपुर के भरोसेमंद आपूर्तिकर्ताओं का रुख करने लगे हैं। सूत्रों ने बताया कि सिर्फ चीन को मिलने वाले 10 से 15 फीसदी ऑर्डर भारत को मिल गए हैं और अधिकतर अमेरिकी ग्राहक 90 दिनों के भीतर डिलिवरी चाह रहे हैं। अगर यही स्थिति बरकरार रही तो इस साल शहर से निर्यात में 20 फीसदी और इजाफा हो सकता है।
भारत में परिधानों का सबसे बड़ा क्लस्टर तिरुपुर है। इसकी देश के सूती कपड़ों के निर्यात में 90 फीसदी और कुल बुने हुए कपड़ों के निर्यात में करीब 55 फीसदी हिस्सेदारी है। शहर के करीब हर घर में एक सूक्ष्म, लघु अथवा मध्यम इकाई चलती है। दुनियाभर के खरीदारों की यहां दिलचस्पी ऐसे वक्त में बढ़ गई है जब इस शहर ने साल 2024-25 में 40,000 करोड़ रुपये का अपना अब तक सबसे बड़ा निर्यात से राजस्व हासिल किया है, जिसे बांग्लादेश में राजनीतिक उठा-पटक से बल मिला था। तिरुपुर एक्सपोर्ट्स ऐंड मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट एम मुत्तुरत्नम ने कहा, ‘जो खरीदार पहले बांग्लादेश, चीन और वियतनाम से खरीदारी करते थे वे अब भारत का रुख कर रहे हैं।
वे छूट की मांग कर रहे हैं, लेकिन पिछले दो-ढाई हफ्तों से हम भारी भीड़ देख रहे हैं।’ तिरुपुर एक्सपोर्ट्स ऐंड मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन में अधिकतर वैसे सदस्य हैं, जिनके लघु उद्यम हैं और उनका कुल कारोबार भी 10 करोड़ रुपये से कम है। कुछ महीने पहले ही (वित्त वर्ष 2023-24 के आखिरी दिनों में) उन्होंने वैश्विक महामारी के बाद अपने संगठन से जुड़े करीब 500 इकाइयों के बंद होने के प्रति आगाह किया था।
तिरुपुर एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट केएम सुब्रमण्यन ने कहा, ‘ट्रंप द्वारा 90 दिनों तक जवाबी शुल्क नहीं लगाने के निर्णय ने हमारे पक्ष में काम किया है। खरीदार पुराने ऑर्डर खत्म कर रहे हैं और नए डायवर्सन उद्योग में नई जान फूंक रहे हैं। हर कोई विस्तार करना चाह रहा है, नई इकाइयों में निवेश किया जा रहा है और पुरानी इकाइयों को उन्नत बनाया जा रहा है। हम इस वित्त वर्ष में निर्यात में 15 फीसदी वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘अगर प्रतिस्पर्धी देशों में अमेरिका का जवाबी शुल्क इन्ही स्तरों पर बरकरार रहता है तो अमेरिकी खरीदारों के लिए भारत एक किफायती विकल्प बना रहेगा। बायिंग एजेंट कह रहे हैं कि वे ऑर्डर के प्रवाह को बरकरार नहीं रख सकते हैं।’ पिछले साल तिरुपुर के ग्राहकों में प्राइमार्क, टेस्को, नेक्स्ट, मार्क ऐंड स्पेंसर, वॉलमार्ट, टॉमी हिलफिगर, वार्नर ब्रदर्स, डिस्कवरी ग्लोबल कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, गैप, कार्टर, डन्स स्वीडन, टारगेट और वूलवर्थ्स जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां शामिल थीं। इनमें से अधिकतर ब्रांडों ने अब ऑर्डर बढ़ा दिया है।
बायिंग एजेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और एसएनक्यूएस इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक एलंगोवन विश्वनाथन ने कहा, ‘मौजूदा अमेरिकी खरीदार चीन से तिरुपुर तक अपने ऑर्डर की पूछताछ कर रहे हैं। प्रतिस्पर्धी बने रहने के कारण सूती कपड़ों का आयात पहले से ही यहां शुरू हो चुका है। सबसे बड़ी समस्या है कि चीन की कीमतें करीब 15 फीसदी कम है, जो पॉलिएस्टर जैसे सस्ते कच्चे माल की कीमत के कारण है। 90 दिनों तक जवाबी शुल्क नहीं लगने के कारण खरीदार भी इसी वक्त तक डिलिवरी का दबाव बना रहे हैं। तिरुपुर के लिए परिदृश्य बेहतरीन है, लेकिन काफी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि जब शुल्क लगना शुरू होगा तब हम इन ऑर्डर में से कितने ऑर्डर बरकरार रख सकते हैं।’
रूस-यूक्रेन के बीच संघर्ष और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों के कारण पिछले साल 11 फीसदी कम होकर 30,960 करोड़ रुपये रहने वाला तिरुपुर का निर्यात वित्त वर्ष 2024-25 में उछलकर 40,000 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड आंकड़ा छू गया। उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2023-24 में 56,000 करोड़ रुपये के भारत के बुने हुए कपड़ों के निर्यात में अमेरिकी की करीब 35 फीसदी हिस्सेदारी थी। उसके बाद यूरोपीय संघ की 29 फीसदी हिस्सेदारी रही। अमेरिका में बिकने वाले 95 फीसदी परिधान आयात किए जाते हैं।
आईसीसी नैशनल टेक्सटाइल कमिटी के चेयरमैन संजय के जैन के मुताबिक, भारत में मेड-अप आर्टिकल, जर्सी और कंबल जैसी श्रेणियों में दमदार शुरुआत है, लेकिन चीन अभी भी आगे है। तिरुपुर की वापसी वैसी समय में हुई जम बांग्लादेश के परिधान केंद्र चटगांव में बड़े पैमाने पर इकाइयों के बंद होने का सिलसिला जारी है। वहां पंजीकृत 611 इकाइयों में से सिर्फ 350 ही संचालित हो रही हैं और बीते छह महीनों में 54 से ज्यादा इकाइयां बंद हो गई हैं। मगर विश्लेषकों ने आगाह किया है कि तिरुपुर के निर्यातकों को ज्यादा खुश होने के बजाय अभी सतर्क रुख अपनाना चाहिए।
व्यापार नीति विश्लेषक एस चंद्रशेखरन ने कहा, ‘शुरू के ये 90 दिन नई वैश्विक मूल्य श्रृंखला को आकार देंगे। हमें इस अवसर को ज्यादा से ज्यादा भुनाने के लिए तेजी से आगे बढ़ना चाहिए।’ मगर उन्होंने आगाह किया है कि कच्चे कपास तक अमेरिका की पहुंच और स्वचालन के बढ़ते उपयोग को देखते हुए अमेरिकी कंपनियां जल्द ही आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का लाभ उठाते हुए भविष्य में रोबोट अथवा सीवबॉट सिलाई की ओर रुख कर सकती हैं।