उद्योग

भारत में AI इंजीनियरों की भारी कमी, कंपनियां मुश्किल से ढूंढ पा रही हैं योग्य उम्मीदवार

एआई और मशीन लर्निंग की बढ़ती मांग के बावजूद, पर्याप्त कौशल वाले कर्मचारी नहीं मिल पा रहे, विशेषज्ञों का कहना है कि यह कमी आने वाले वर्षों में बनी रहेगी

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अविक दास   
Last Updated- May 01, 2025 | 11:30 PM IST

न्यूरॉन7.एआई जब भी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) इंजीनियर भर्ती करने चलती है तो बड़ी दिक्कत होती है। इस सॉल्यूशन इंटेलिजेंस कंपनी का कहना है कि 100 आवेदकों में से बमुश्किल तीन ही नौकरी के लायक मिलते हैं। भारत में दफ्तर और कर्मचारी वाली यह अमेरिकी कंपनी अपने ग्राहकों को यह अंदाजा लगाने में मदद करती है कि सॉफ्टवेयर के हिस्से कैसे काम करेंगे या कहां चूक हो सकती है। साथ ही यह ग्राहकों को साथ जोड़ने और जानकारी इकट्ठी करने में भी मदद करती है।

न्यूरॉन7.एआई में एआई और इंजीनियरिंग प्रमुख अमित वर्मा समझाते हैं कि खूब इस्तेमाल किए जाने वाले इस प्लेटफॉर्म पर डेटा को एक प्रकार से दूसरे प्रकार में कैसे बदला जाता है। वह कहते हैं, ‘बतौर जावा डेवलपर अगर आप यह नहीं बता पा रहे कि ऑब्जेक्ट से जुड़ा क्या बदलाव हो रहा है तो हम चौकन्ने हो जाते हैं। इसका मतलब है कि आपने जावा ऐप्लिकेशन इस्तेमाल तो किया है मगर उसे अपडेट नहीं किया है या गहराई में जाने के बजाय आप छिटपुट इस्तेमाल करके रह गए हैं।’ कंपनियों को एआई, मशीन लर्निंग और जेनरेटिव एआई (जेन-एआई) के लिए सैकड़ों भर्तियां करनी होती हैं मगर जो आवेदक आते हैं, उनके पास जरूरी हुनर ही नहीं होता।

खाली पड़ीं कुर्सियां

खास तरह के कर्मचारी मुहैया कराने वाली कंपनी एक्सफेनो के सह-संस्थापक कमल कारंत बताते हैं, ‘एआई में माहिर लोगों के लिए करीब 2,000 जगहें खाली हैं मगर बाजार में इनके लिए पर्याप्त कौशल रखने वाले लोग ही नहीं हैं। सेवा क्षेत्र को भी जोड़ लें तो एआई में माहिर 20,000 से ज्यादा लोगों की जरूरत है। मगर इनके लिए जरूरी प्रतिभाएं न तो तैयार हो रही हैं और न ही पहले से मौजूद हैं। इसीलिए बाजार में एआई के अनुभवी और कुशल लोगों की संख्या मांग के मुकाबले बहुत कम रह गई है।’ इसका मतलब है कि जब एआई और जेनएआई की दुनिया तेजी से बदल रही है और तकरीबन हर तिमाही में संभावनाओं की नई तस्वीर आ रही है तब कंपनियां धीमी रफ्तार से काम कर पा रही हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि एआई पर ध्यान देते हुए अभी दशक भर ही हुआ है और इसके लिए प्रतिभा धीरे-धीरे तैयार हो रही हैं। कोगो एआई के मुख्य कार्य अधिकारी राज गोपालाकृष्णन ने कहा, ‘हमें जो हुनर चाहिए वह मिल नहीं रहा। इसलिए हम उन लोगों को भर्ती कर रहे हैं, जिनके पास तर्क के साथ सोचने की बहुत क्षमता है और जो डेटा लॉजिक और इंजीनियरिंग की गहरी समझ रखते हैं।’

भर्तियों में दिक्कत तब आ रही है, जब कंपनियां पुराने सॉफ्टवेयर की जानकारी रखने वालों के बजाय एआई और डेटा साइंस के माहिरों को भारी-भरकम वेतन दे रही हैं। कर्मचारी अच्छा हो तो कंपनियां मोटी रकम खर्चने को तैयार हैं। स्टाफिंग कंपनी क्वेस कॉर्प की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबर सुरक्षा, जेन-एआई, प्लेटफॉर्म इंजीनियरिंग, यूजर इंटरफेस और यूजर एक्सपीरियंस में केवल 8 साल के तजुर्बे वाले भी बेंगलूरु में सालाना 50 लाख रुपये पा रहे हैं। पिछले एक दशक में उन इंजीनियरों को खासी तवज्जो मिली है, जो बड़ा एआई एल्गोरिदम इस्तेमाल कर पाते हैं या नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग कर पाते हैं क्योंकि इनका इस्तेमाल चैटबॉट में किया जाता है। एआई और मशीन लर्निंग सॉल्यूशन देने वाले इंजीनियर भी हाथोहाथ लिए जाते हैं।

वर्मा कहते हैं, ‘प्रॉम्ट इंजीनियरिंग आपको यहीं तक पहुंचा पाएगी। इसमें काम करने वाले खुद को जेन-एआई और लार्ज लैंग्वेज मोड (एलएलएम) का जानकार कह सकते हैं मगर उनसे बात कीजिए और ट्रांसफॉर्मर आर्किटेक्चर के बारे में पूछिए। जब आप उनसे जीपीटी2 और जीपीटी3 के बीच अंतर पूछेंगे और पूछेंगे कि आर्किटेक्चर लगातार बदल क्यों रहा है, उसकी सीमा क्या हैं, उन मॉडलों को कब और कैसे प्रशिक्षित किया जाए तो दिक्कत हो जाएगी।’

सिएल एचआर के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी आदित्य नारायण मिश्र कहते हैं कि अभ्यर्थी अपने रेज्यूमे में तमाम कौशल गिना देते हैं मगर अक्सर उन्हें अनुभव नहीं होता। वह बताते हैं, ‘एआई और साइबर सुरक्षा जैसे तेजी से बढ़ रहे क्षेत्रों में ऐसा ही होता है, जहां मशीन लर्निंग, जीरो ट्रस्ट और सोर (सिक्योरिटी, ऑर्केस्ट्रेशन, ऑटोमेशन ऐंड रिस्पॉन्स) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में सबसे ऊपर रहना जरूरी है।’

हुनर की पूछ

फ्रैक्टल एनालिटिक्स की वाइस प्रेसिडेंट और ग्लोबल हेट (टैलेंट एक्विजिशन) सविता होर्तीकर का कहना है, ‘एआई क्षेत्र में लोगों की नियुक्ति काफी मुश्किल होती है और मुख्य तौर पर कौशल बढ़ाने या नए सिरे से कौशल दिलाने पर निर्भर करती है। मशीन लर्निंग में पांच साल के अनुभव वाला कर्मचारी तलाशने चलें तो मिलना मुमकिन नहीं है। अब हम समस्या का समाधान करने और विश्लेषणात्मक कौशल वाले लोगों को तलाश रहे हैं। साथ ही हमारी कोशिश रहती है कि हम उन लोगों को रखें, जिनमें सीखने की ललक हो।’

फ्रैक्टल के पास आए आवेदनों की पड़ताल करें तो पता चलता है कि सात से आठ साल के अनुभव वाला कर्मचारी तलाश रही कंपनी के पास ज्यादातर फ्रेशर यानी अनुभवहीन लोग पहुंचते हैं या दो-तीन साल का तजुर्बा लेकर आते हैं। सविता बताती हैं, ‘ज्यादातर अभ्यर्थी कोई ऑनलाइन सर्टिफिकेशन कोर्स कर आते हैं या कॉलेज में कोई स्पेशलाइजेशन कर लेते हैं। सही लोग मिलना बहुत मुश्किल हो गया है। हमारे पास बड़ी संख्या में आवेदन आते हैं और हमें बारीकी से उन्हें देखना पड़ता है। भारत में प्रतिभा की दिक्कत नहीं है, दिक्कत है अच्छी प्रतिभा और अनुभव न मिलने की।’

एक्सफेनो का शोध दर्शाता है कि अनुभव और विशेषज्ञता के पैमाने कड़ाई से लागू करने पर देश में सीनियर एआई इंजीनियरों की तादाद 3,000 के करीब ही बचती है। भारत में एआई टूल्स की जानकारी रखने वाले अनुभवी इंजीनियर 18,000 से भी कम हैं। एआई सर्विस में विशेषज्ञता रखने वाले इंजीनियर ज्यादा हैं और तकनीक को विकसित करने के हुनर वाले कम।

एक्सफेनो के कारंत का कहना है, ‘फिलहाल भारत में अनुभवी एआई पेशेवरों की संख्या जितनी कम है और एआई कौशल जिस तरह बढ़ता जा रहा है, उसे देखते हुए यह कमी कम से कम दो-तीन साल बनी रहेगी। उद्यमों में एआई का उपयोग बढ़ने और रोजमर्रा के काम में इसकी खपत बढ़ने से एआई के माहिर लोगों की मांग तेज होगी। अनुमान जताया जा रहा है कि साल 2030 तक एआई वाली नौकरियां आठ से दस गुना बढ़ जाएंगी। भारत में एआई प्रतिभा तैयार करने और देने में तेजी आनी चाहिए। यह काम समय रहते करना होगा ताकि मौका हाथ से निकल न जाए।’

First Published : May 1, 2025 | 11:30 PM IST