राजनीतिक चंदे और बॉन्ड खरीदारी के बारे में भारतीय उद्योग जगत के वार्षिक खुलासे पर सर्वोच्च न्यायालय के चुनावी बॉन्ड संबंधी फैसले के निहितार्थ अभी स्पष्ट नहीं हैं। इस मुद्दे पर कानूनी विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है।
सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को अपने आदेश में कहा कि 2017 में कंपनी अधिनियम की धारा 182 में किया गया संशोधन असंवैधानिक था। उस संशोधन के तहत राजनीतिक दलों को दिए गए चंदे का विवरण गोपनीय रखने का प्रावधान था।
बीएमआर लीगल के संस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर मुकेश बुटानी ने कहा, ‘संवैधानिक प्रावधानों के साथ सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पढ़ने से पता चलता है कि अब कंपनियों के लिए किसी भी वित्तीय विवरण का खुलासा करना आवश्यक होगा। मगर यह 15 फरवरी, 2024 के बाद दिए गए चंदे पर लागू होगा क्योंकि उसी दिन से सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश प्रभावी होगा।’
कानून में संशोधन किए जाने से पहले तक किसी भी कंपनी के लिए राजनीतिक दलों को दी गई रकम का खुलासा करना आवश्यक था। उसे न केवल चंदे का विवरण बल्कि उसे प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल के नाम का भी अनिवार्य तौर पर खुलासा करना होता था।
इस कानून के तहत किसी एक वित्त वर्ष के दौरान राजनीतिक दलों के लिए चंदे की अधिकतम सीमा भी निर्धारित की गई थी। चंदे की रकम को पिछले तीन वित्त वर्षों के दौरान कंपनी के औसत शुद्ध लाभ के 7.5 फीसदी तक सीमित किया गया था।
कंपनी अधिनियम की धारा 182 को 2017 में वित्त अधिनियम के जरिये संशोधित कर दिया गया। उसके जरिये कानून के उस प्रावधान को हटा दिया गया जिसके तहत किसी कंपनी के लिए राजनीतिक चंदे की अधिकतम सीमा निर्धारित की गई थी। साथ ही उस प्रावधान को भी हटा दिया गया जिसके तहत यह बताना अनिवार्य था कि कंपनी ने किस राजनीतिक दल को चंदा दिया।
हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनी अधिनियम की धारा 182 को अब लागू नहीं किया जा सकता है। ऐसे में कंपनियों को 15 फरवरी से पहले दिए गए राजनीतिक चंदे के लिए भी वित्त वर्ष 2023-24 के लिए अपने लाभ और हानि विवरण में यह खुलासा करना होगा।
कॉरपोरेट प्रोफेशनल्स के पार्टनर अंकित सिंघी ने कहा, ‘चुनावी बॉन्ड के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के बाद कंपनियों को राजनीतिक दलों को चंदा देते समय पिछले तीन वर्षों के औसत शुद्ध लाभ के 7.5 फीसदी सीमा को ध्यान में रखना होगा। साथ ही वित्त वर्ष 2023-24 के बाद के वित्तीय खुलासे में चंदा प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण भी बताना होगा।’
आरनेस लॉ फर्म की पार्टनर अंजलि जैन ने कहा, ‘फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि यह फैसला चंदा देने वालों पर पिछली तारीख से लागू होगा और उसके बारे में खुलासे भी पिछली तारीख से करने होंगे। अगर ऐसा हुआ तो कंपनी मामलों के मंत्रालय के पोर्टल को ऐसी जरूरतों के अनुरूप बनाया जाएगा। मगर इतना तो तय है कि इस फैसले का प्रभाव जरूर दिखेगा।’
सर्वोच्च न्यायालय ने एक निश्चित अवधि के भीतर चुनावी बॉन्ड संबंधी विवरण चुनाव आयोग को उपलब्ध कराने के लिए भारतीय स्टेट बैंक को निर्देश दिया है। मगर विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियां अभी भी पारदर्शिता की भावना से अपने वित्तीय विवरणों में यह खुलासा कर सकती है। इस बाबत जानकारी के लिए कंपनी मामलों के मंत्रालय को भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं आया।