सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) से जुड़े उद्योग संगठनों ने भारतीय रिजर्व बैंक के साथ हुई बैठक में ई-कॉमर्स निर्यात को लेकर नियमों में कुछ बदलाव का अनुरोध किया है। पिछले सप्ताह गुजरात के अहमदाबाद शहर में यह बैठक हुई थी।
उद्योग से जुड़े सूत्रों ने कहा कि उद्योग संगठनों ने रिजर्व बैंक से अनुरोध किया है कि ई-कॉमर्स निर्यात इतनी अधिक मात्रा में होता है कि इसका मिलान करना अव्यावहारिक सा है। उद्योग के सूत्रों ने आगे यह भी कहा कि उन्होंने रिजर्व बैंक से एक्सपोर्ट डेटा प्रॉसेसिंग ऐंड मॉनिटरिंग सिस्टम (ईडीपीएमएस) में एक स्वचालित समाधान प्रणाली विकसित करने का अनुरोध किया है, जिससे कि निर्यातक रिकॉर्ड के आधार पर शिपिंग बिलों के साथ आईआरएम का मिलान करने के लिए एआई एल्गोरिद्म का लाभ उठाया जा सके, भले ही बाजार शुल्क या रिफंड के कारण राशि भिन्न हो।
एक सूत्र ने कहा, ‘इस प्रणाली से लेनदेन के थोक में अपलोड की अनुमति भी दी जा सकती है। इससे निर्यातक हर बिल को अलग-अलग हैंडल करने से बच सकेंगे। इसके साथ ही छोटे निर्यातकों के लिए सीए प्रमाणपत्र की जरूरत खत्म करने और उसकी जगह पर 5 करोड़ रुपये या इससे कम कारोबार वाले एमएसएमई के स्व-घोषणा फॉर्म लाने की जरूरत है।’
बैंक खातों से जुड़ी डिजिटल सत्यापन व्यवस्था इस प्रक्रिया को और सरल बना सकती है। एमएसएमई संगठनों ने लागत कम करने का सुझाव दिया है। उन्होंने रिजर्व बैंक से शिपिंग बिल नियमितीकरण के शुल्क के मानकीकृत करने, एक निश्चित वार्षिक समाधान शुल्क (जैसे, 5 करोड़ रुपये से कम कारोबार वाले निर्यातकों के लिए 5000 रुपये) शुरू करने और 1000 डॉलर से अधिक के लेन-देन के लिए प्रति बिल शुल्क को 100 रुपये तक सीमित करने का आग्रह किया है। इसके अलावा अनुचित दंड और प्रोसेसिंग में देरी जैसे मुद्दों को हल करने के लिए 7-दिवसीय समाधान समय सीमा के साथ एक डिजिटल विवाद समाधान पोर्टल स्थापित किए जाने का भी अनुरोध किया गया है।