अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन से कहा है कि इस्पात तथा एल्युमीनियम पर शुल्क लगाने का निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर लिया गया और इसे उद्योगों के हितों की रक्षा के लिए उठाया गया कदम यानी रक्षोपाय उपाय नहीं माना जाना चाहिए। भारत के 11 अप्रैल को अमेरिका के साथ डब्ल्यूटीओ के सुरक्षा समझौते के तहत परामर्श का अनुरोध करने के बाद अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के समक्ष अपना रुख स्पष्ट किया है।
भारत ने कहा था कि अमेरिका द्वारा इन उपायों को सुरक्षा उपाय बताए जाने के बावजूद ये मूलतः उद्योगों के हितों के लिए उठाए गए कदम हैं। इससे अमेरिका इन उपायों को लागू करने के निर्णय के बारे में रक्षोपाय समझौते (एओएस) के एक प्रावधान के तहत डब्ल्यूटीओ सुरक्षा समिति को सूचित करने में विफल रहा है।
अमेरिका ने 17 अप्रैल को डब्ल्यूटीओ को भेजे एक पत्र में कहा, ‘उसने पाया कि रक्षोपाय उपायों पर समझौते के अनुच्छेद 12.3 के तहत परामर्श के लिए भारत के अनुरोध का आधार यह है कि शुल्क उद्योग के हितों के लिए उठाया गया कदम है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने धारा 232 के तहत स्टील तथा एल्युमीनियम पर शुल्क लगाया। इसके तहत राष्ट्रपति ने निर्धारित किया कि शुल्क स्टील और एल्युमीनियम वस्तुओं के आयात को समायोजित करने के लिए आवश्यक हैं जिससे अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होने की आशंका है।’
अमेरिका ने कहा कि धारा 232 एक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून है तथा शुल्क को शुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (जीएटीटी) 1994 के एक प्रावधान के तहत सुरक्षा अपवाद के तहत रखा जा रहा है। इसमें कहा गया है कि ये शुल्क 1974 के व्यापार अधिनियम के प्रावधान के तहत नहीं लगाए गए हैं, जिसके तहत अमेरिका रक्षोपाय उपाय लागू करता है।
अमेरिका ने कहा, ‘अमेरिका रक्षोपाय/आपात कार्रवाई प्रावधान के अनुरूप इन कार्रवाइयों को जारी नहीं रख रहा है। ये कार्रवाइयां उद्योगों के हितों में उठाया गया कदम नहीं हैं और इसलिए इन उपायों के संबंध में रक्षोपाय समझौते के तहत परामर्श करने का कोई आधार नहीं है।’ इसमें कहा गया, ‘अत:, परामर्श के लिए भारत का अनुरोध, रक्षोपाय उपायों पर समझौते के तहत कोई आधार नहीं रखता है। फिर भी, हम भारत के साथ इस या किसी अन्य मुद्दे पर चर्चा करने को तैयार हैं।’