अंतरिक्ष क्षेत्र की स्टार्टअप अग्निकुल कॉसमॉस (AgniKul Cosmos) ने गुरुवार को पहली बार अपने रॉकेट अग्निबाण का प्रक्षेपण किया, जो देश में निजी रूप से निर्मित रॉकेट की दूसरी उड़ान थी और जिसमें गैस और तरल दोनों ईंधनों का उपयोग करने वाले एकमात्र भारतीय रॉकेट इंजन का इस्तेमाल किया गया।
इंडियन नैशनल स्पेस प्रमोशन ऐंड ऑथराइजेशन सेंटर (इन-स्पेस) के चेयरमैन पवन गोयनका ने भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र के बारे में शाइन जैकब के साथ फोन पर बातचीत की। इन-स्पेस भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की वाणिज्यिक शाखा है। प्रमुख अंश:
-भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र और इन-स्पेस, खास तौर पर निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए अग्निबाण के प्रक्षेपण का क्या मतलब है?
हम केवल समन्वयकर्ता हैं, अग्निकुल ने भारी काम किया है। हमारा उद्देश्य भारत को अंतरिक्ष उपग्रहों के लिए वैश्विक केंद्र में तब्दील करना है। फिलहाल दुनिया भर में वाणिज्यिक रूप से केवल कुछ ही छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान उपलब्ध हैं।
भारत के पास तीन ऐसे यान हैं, जो वाणिज्यिक सेवा शुरू करने के लिए तकरीबन तैयार हैं – स्काईरूट, जिसने दिसंबर 2022 में उप-कक्षीय प्रक्षेपण किया था, अब अग्निकुल और लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी), जो फिलहाल निजी क्षेत्र को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की प्रक्रिया में हैं। ये तीनों यान निजी क्षेत्र के स्वामित्व में होंगे और हम तमिलनाडु के कुलशेखरपट्टनम में प्रक्षेपण केंद्र बना रहे हैं।
इस केंद्र का स्वामित्व और संचालन इसरो द्वारा छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए निजी क्षेत्र की सेवा के रूप में किया जाएगा। ये तीनों यान हमें छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए वैश्विक केंद्र बनने की महत्वपूर्ण क्षमता और योग्यता प्रदान करेंगे। इसलिए अग्निकुल का प्रक्षेपण भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
-हमारी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए राजस्व स्रोत के रूप में छोटे उपग्रहों का बाजार कितना महत्वपूर्ण रहेगा?
यह प्रक्षेपण वाहन खुद ही महत्त्वपूर्ण राजस्व पैदा करेगा। प्रत्येक प्रक्षेपण वाहन का मूल्य करीब 30 से 50 करोड़ रुपये होगा। अगर हम साल में 20 प्रक्षेपण करते हैं तो हम केवल प्रक्षेपण से लगभग 1,000 करोड़ रुपये की उम्मीद करेंगे।
हमें प्रक्षेपण स्थलों और अन्य सुविधाओं की भी जरूरत है। ये सब अंतरिक्षण अर्थव्यवस्था में सहायता करेंगे। यह साल 2033 तक 44 अरब डॉलर की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के हमारे संपूर्ण लक्ष्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बनेगा। हमारे मोटे अनुमान के आधार पर अगले 10 साल के
दौरान इस क्षेत्र में लगभग 25 अरब डॉलर का निवेश होगा।
-जब आपने सितंबर 2021 में इन-स्पेस का कार्यभार संभाला था, तब देश में 21 अंतरिक्ष स्टार्टअप थीं। अब आप इस क्षेत्र की वृद्धि किस तरह देखते हैं?
अब इनकी संख्या 200 से अधिक हो गई है। मुझे लगता है कि संख्याओं से अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वे क्या कर रहे हैं। अगर आप उनके काम के लिहाज से शीर्ष 10 को देखें तो वे सभी किसी न किसी क्षेत्र में प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ा रहे हैं।
अंतरिक्ष और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की नीतियों को लागू किए जाने के बाद उद्योग को किस तरह की वैश्विक प्रतिक्रिया मिली है?
भारत और विदेश में उद्योग उस लचीलेपन से प्रसन्न हैं, जो अंतरिक्ष नीति के जरिए भारत के तेजी से बढ़ते अंतरिक्ष क्षेत्र में शामिल होने के लिए निजी क्षेत्र को दे रहा है।
एफडीआई न केवल हमारी उन अपनी कंपनियों के लिए काफी आकर्षक है जो विदेश से निवेश चाहती हैं, बल्कि उन कई विदेशी कंपनियों के लिए भी है जो भारत में कारोबार करना चाहती हैं। एफडीआई नीति अंतरिक्ष नीति की सकारात्मकता में इजाफा करेगी।
-कोई अन्य नीतिगत पहल प्रक्रिया में है?
एक अकेली बची हुई नीतिगत पहल अंतरिक्ष कानून है, फिलहाल जिसका हम मसौदा तैयार कर रहे हैं।