दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को गो फर्स्ट (Go First) और उसके प्रतिनिधियों को दिवालिया विमानन कंपनी के पट्टादाताओं की मंजूरी के बिना अपने कब्जे वाले विमान का परिचालन करने से रोक दिया।
अदालत ने पट्टादाताओं को गो फर्स्ट के कब्जे वाले विमान का रखरखाव कार्य करने की भी अनुमति प्रदान की। विमान का पंजीकरण रद्द करने के मसले पर फैसला बाद में किया जाएगा।
अदालत ने कहा कि पट्टादाताओं के विमान काफी मूल्यवान हैं और उनके संरक्षण के लिए रखरखाव की आवश्यकता है तथा इसलिए यह निर्देश पारित किया जा रहा है कि पट्टादाताओं और उनके प्रतिनिधियों को अपने से संबंधित विमानों का निरीक्षण करने के लिए उस हवाईअड्डे तक पहुंचने के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) तथा भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण (AAI) द्वारा अनुमति प्रदान की जाएगी, जहां 30 विमान खड़े हुए हैं। न्यायमूर्ति तारा वितस्ता गंजू ने मौखिक रूप से यह आदेश दिया।
अदालत ने कहा कि याचियों (पट्टादाताओं) को सामादेश याचिका (इस मामले में) के अंतिम निपटान तक महीने में कम से कम दो बार विमान, इंजन और अन्य पुर्जों के निरीक्षण तथा सभी अंतरिम रखरखाव कार्य करने की अनुमति प्रदान की जाएगी।
प्रतिवादी – गो एयर, इसके निदेशकों, कर्मचारियों, एजेंटों, अधिकारियों या प्रतिनिधियों अथवा राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (एनसीएलटी) द्वारा नियुक्त समाधान पेशेवरों या उनके प्रतिनिधियों को ऐसे विमान के पट्टादाताओं की पूर्व लिखित मंजूरी के बिना 30 विमानों में से किसी से भी कोई हिस्सा या पुर्जा निकालने, बदलने, हटाने आदि अथवा किसी भी संबंधित परिचालन या अन्य मैनुअल रिकॉर्ड, दस्तावेज तैयार करने से रोका जाता है।
विमान का पंजीकरण पर फैसला बाद में किया जाएगा
अदालत ने अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि विमान का पंजीकरण रद्द किया जाए या नहीं, इस मसले पर फैसला बाद में किया जाएगा। अदालत ने फैसले के आखिर में कहा कि पक्षों की ओर से कोई भी दलील अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले दाखिल की जानी चाहिए।
उच्च न्यायालय ने 1 जून को गो फर्स्ट के पट्टादाताओं द्वारा नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के खिलाफ दायर उन याचिकाओं के संबंध में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
इससे पहले डीजीसीए ने उच्च न्यायालय को बताया था कि उसने विमान पंजीकरण रद्द करने के लिए गो फर्स्ट के पट्टादाताओं का आवेदन खारिज नहीं किया है, लेकिन मॉरेटोरियम की वजह से यह प्रक्रिया (पंजीकरण रद्द करने की) स्थगित रखी थी।
एनसीएलएटी द्वारा 22 मई को राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (NCLT) का आदेश बरकरार रखने के तुरंत बाद गो फर्स्ट के पट्टादाताओं ने डीजीसीए के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया था। एनसीएलटी ने 10 मई को गो फर्स्ट का स्वैच्छिक दिवाला आवेदन स्वीकार कर लिया था।