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‘रत्न’ दर्जे वाली PSU को ज्यादा स्वायत्तता देने के लिए बदलेंगे नियम, वित्त मंत्रालय बना रहा योजना

नियमों में ढील देने के बाद अधिक संख्या में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम रत्न श्रेणी वाली कंपनियों की जमात में शामिल होने की पात्र होंगी।

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हर्ष कुमार   
Last Updated- May 27, 2024 | 6:12 AM IST

वित्त मंत्रालय केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के लिए महारात्न, नवरत्न और मिनीरत्न दर्जे वाली कंपनियों के संचालन के लिए प्रवेश नियमों में संशोधन करने पर विचार कर रहा है। इस मामले के जानकार दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि इसका मकसद इस श्रेणी में सार्वजनिक क्षेत्र की ज्यादा कंपनियों को शामिल करना है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘हम इस पर काम कर रहे हैं। यह अगली सरकार के 100 दिन के एजेंडे का हिस्सा हो सकता है। नियमों में ढील देने के बाद अधिक संख्या में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम रत्न श्रेणी वाली कंपनियों की जमात में शामिल होने की पात्र होंगी।’

इस बारे में जानकारी के लिए वित्त मंत्रालय को ईमेल भेजा गया मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को रत्न दर्जा मलने से उन्हें कारोबार करने में आजादी होती है। उन्होंने कहा, ‘इस श्रेणी की कंपनियों को हरेक कारोबारी निर्णय की मंजूरी के लिए सरकार के पास नहीं जाना पड़ता है।’

ओएनजीसी के पूर्व चेयरमैन आर एस शर्मा ने कहा, ‘रत्न का तमगा मिलने से केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम का दर्जा बढ़ जाता है। इसके साथ ही जब इस श्रेणी की कंपनी सूचीबद्ध होती है तो उसका मूल्यांकन अधिक होता है। नियमों में ढील से सरकार और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों दोनों को मदद मिलेगी।’

उपर्युक्त अधिकारी ने कहा, ’30 अप्रैल, 2024 तक देश में 13 महारत्न, 20 नवरत्न, 54 श्रेणी 1 की मिनीरत्न, 11 श्रेणी 2 की मिनीरत्न कंपनियां थीं। वर्तमान में देश में 253 केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों का परिचालन किया जा रहा है।’

महारत्न कंपनी को देसी स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कराने की जरूरत होती है और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के विनियमों के अनुसार न्यूनतम 25 फीसदी सार्वजनिक शेयरधारिता के नियम का पालन करना होता है।

ऐसी सार्वजनिक कंपनी का सालाना औसत कारोबार 25,000 करोड़ रुपये से अधिक और सालाना औसत नेटवर्थ 15,000 करोड़ रुपये होना चाहिए। इसके साथ ही पिछले तीन साल के दौरान इन कंपनियों का सालाना कर बाद शुद्ध मुनाफा औसतन 5,000 करोड़ रुपये होना चाहिए और ऐसी कंपनियों की अच्छी खासी वैश्विक मौजूदगी होनी चाहिए। वर्ष 2010 में शरू की गई महारत्न योजना का मुख्य उद्देश्य मेगा केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को अपने परिचालन का विस्तार करने और वैश्विक दिग्गज के रूप में उभरने में सशक्त बनाना था।

सरकार द्वारा नवरत्न दर्जा के लिए जो मानदंड तय किए गए हैं उसके अनुसार मिनीरत्न केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम को पिछले 5 साल में तीन साल तक ‘उत्कृष्ट’ और ‘बहुत अच्छा’ समझौता ज्ञापन रेटिंग हासिल करनी होगी।

इन कंपनियों को नेटवर्थ में शुद्ध मुनाफे का अनुपात, कुल उत्पादन/सेवाओं की लागत में कर्मचारियों का खर्च, निवेशित पूंजी पर मूल्यह्रास, ब्याज और कर पूर्व मुनाफा, प्रति शेयर आय और अंतर-क्षेत्रीय प्रदर्शन जैसे 6 चुनिंदा प्रदर्शन संकेतकों में 60 या उससे अधिक कंपोजिट स्कोर हासिल करना चाहिए।

सरकार ने तुलनात्मक लाभ वाले केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों की पहचान करने और वैश्विक दिग्गज बनने में सहयोग के लिए 1997 में नवरत्न योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत नवरत्न उपक्रमों के बोर्डों को पूंजीगत खर्च, संयुक्त उपक्रमों में निवेश, विलय/अधिग्रहण और मानव संसाधन प्रबंधन आदि में स्वायत्ता और ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। अक्टूबर 1997 में सरकार ने कुछ अन्य मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को निर्धारित शर्तें पूरी करने के बाद ज्यादा स्वायत्तता दी थी।

First Published : May 26, 2024 | 10:07 PM IST