ग्राहक की जरूत आप कितनी जल्दी पूरी कर सकते हैं? और कौन-कौन सी जरूरत पूरी कर सकते हैं? तमाम छोटी-बड़ी कंपनियां अब रफ्तार की इस होड़ में शामिल हो गई हैं। क्विक कॉमर्स यानी चुटकियों में सामान पहुंचाने के कारोबार में अब रिलायंस की ई-कॉमर्स कंपनी जियोमार्ट भी उतरने जा रही है। फ्लिपकार्ट पहले ही यह मंशा जाहिर कर चुकी है।
मगर बड़ी कंपनियां आएंगी तो क्विक कॉमर्स में पहले से मौजूद ब्लिंकइट, स्विगी इंस्टामार्ट और जेप्टो जैसी कंपनियों का क्या होगा? मुकाबला कड़ा होने की बात भांपकर ये भी अपना दायरा बढ़ रही हैं। अब वे एफएमसीजी उत्पादों तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि महंगे कंज्यूमर ड्यूरेबल्स भी पहुंचाने लगी हैं। आपको कूलर चाहिए? 10 मिनट में आपके घर पहुंच जाएगा। फैशन जूलरी लेनी है? 10 मिनट रुकिए। पूल पर पहुंच गए हैं मगर स्विमिंग कॉस्ट्यूम घर भूल गए हैं? फिक्र मत कीजिए। चुटकियों में आपके पास आ जाएगा।
क्विक कॉमर्स कंपनियां अभी तक किराना और जरूरी सामान ही 10 मिनट में पहुंचाने का वादा करती थीं मगर अब महंगे कंज्यूमर ड्यूरेबल्स भी झट से आप तक पहुंचाए जा रहे हैं। फिर भी जियोमार्ट इस क्षेत्र में उतरने का ऐलान करते समय सामान की डिलिवरी के लिए 30 मिनट लेने की बात कह रही है।
झटपट यानी इंस्टैंट डिलिवरी का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और बेसब्र भारतीय उपभोक्ता इसे रफ्तार दे रहे हैं। न्यूयॉर्क की वैश्विक मार्केटिंग कम्युनिकेशंस एजेंसी वंडरमैन थॉम्पसन की जुलाई 2023 की रिपोर्ट में लिखा था कि 38 फीसदी भारतीय उपभोक्ताओं में सब्र नहीं है और वे चाहते हैं कि सामान 2 घंटे में ही आ जाए।
क्विक कॉमर्स कंपनियां उनकी यही फरमाइश पूरी कर रही हैं। बोट के स्पीकर हों या ऐपल की स्मार्टवॉच, वे चाहती हैं कि हर किसी की जरूरत का हरेक सामान उन्हीं के पास मिल जाए। उन्हें रिलायंस, एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी कंपनियों की भी परवाह नहीं है।
अमेरिका की ई-कॉमर्स सॉल्यूशन्स फर्म असिडस ग्लोबल की संस्थापक और सीईओ सोमदत्ता सिंह कहती हैं, ‘क्विक कॉमर्स का मॉडल महानगरों से निकलकर विशाखापत्तनम, नागपुर, कोच्चि, जयपुर और लखनऊ जैसे शहरों में भी पैठ बना रहा है।’ बेंगलूरु की स्ट्रैटजी परामर्श फर्म रेडसियर के मुताबिक क्विक कॉमर्स उद्योग का सकल मर्चंडाइज मूल्य (जीएमवी) इस समय 2.8 अरब डॉलर है।
क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म जेप्टो ने हाल ही में प्रीमियम लगेज ब्रांड नैशर माइल्स के साथ अपनी साझेदारी शुरू करते हुए अपने लिंक्डइन पेज पर लिखा, ‘आप छुट्टी लेने की फिक्र करें, आपको लगेज हम दे देंगे।’
कुछ दिन बाद ही जोमैटो के स्वामित्व वाली क्विक कॉमर्स कंपनी ब्लिंकइट ने मोकोबरा ट्रैवल बैग्स के साथ साझेदारी का ऐलान कर दिया। ग्राहकों को लुभाने के लिए उसने लिखा, ‘अचानक छुट्टियों पर जाना अब पहले जैसा नहीं रहेगा।’
फूड टेक और डिलिवरी प्लेटफॉर्म स्विगी भी पीछे नहीं रहा और अपने ऑनलाइन रिटेल कारोबार स्विगी मॉल को उसने अप्रैल में अपने क्विक कॉमर्स कारोबार इंस्टामार्ट में मिला दिया। इसकी तुक समझाते हुए सोमदत्ता कहती हैं, ‘किराना पर मार्जिन कम होता है, जिसकी भरपाई महंगे उत्पादों पर मिलने वाले ज्यादा मार्जिन से हो जाती है। इस तरह कारोबार लंबा चल सकता है।’
क्विक कॉमर्स पर महंगे ब्रांड आने के कारण ऑर्डर का औसत मूल्य भी बढ़ने लगा है। निवेश बैंकिंग फर्म जेएम फाइनैंशियल के अनुसार क्विक कॉमर्स के लिए औसत ऑर्डर मूल्य दो साल पहले 350 से 400 रुपये हुआ करता था जो अब बढ़कर 450 से 500 रुपये हो गया है।
नई दिल्ली में कंपनियों के लिए अंशकालिक चीफ मार्केटिंग ऑफिसर का काम करने वाले सौरभ परमार ने कहा कि इस बदलाव से क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म के बारे में ग्राहकों की राय भी बदल रही है, जिन्हें पहले रोजमर्रा के सामान बेचने वाला ही माना जाता था।
हालांकि रिपोर्ट कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के आने के बाद क्विक कॉमर्स की बढ़ती रफ्तार की ही बात करती हैं मगर विशेषज्ञ और ग्राहक चुनौतियों के बारे में भी बताते हैं। दिल्ली में दांतों की डॉक्टर अश्मिता भारद्वाज ने ब्लिंकइट से स्पीकर और इयरफोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान मंगाए हैं। वह कहती हैं कि मोबाइल फोन जैसा महंगा सामान मंगाने के लिए शायद वह क्विक कॉमर्स पर भरोसा नहीं कर पाएंगी। उनका कहना है, ‘ज्यादा छानबीन के बाद खरीदे जाने वाले जिस सामान में ग्राहक ज्यादा विकल्प चाहते हैं, उनमें क्विक कॉमर्स को वे शायद ही चुनें।’
सामान की कीमत बढ़ने के साथ ही ऑर्डर रद्द होने, सामान वापस करने या बदलने के बारे में कंपनी की नीति की चिंता भी बढ़ने लगती है। बेंगलूरु में रिटेल विशेषज्ञ और सलाहकार मधुमिता मोहंती कहती हैं, ‘क्विक कॉमर्स कंपनियां अपना कारोबार उन श्रेणियों में तेजी से बढ़ा रही हैं, जहां उपभोक्ता बिना सवाल पूछे सामान लौटाने की नीति के आदी हो चुके हैं। महंगे उत्पादों के मामले में इसका ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है।’
मगर कुछ लोगों की राय अलग भी है। बेंगलूरु में रहने वाले पायलट प्रियांक वर्मा ने ब्लिंकइट से सोनी पीएस5 गेमिंग स्टेशन मंगाया और उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई। वह कहते हैं कि इस साइट से वह आगे और भी महंगा सामान मंगा सकते हैं।
अलबत्ता दिल्ली में विज्ञापन के क्षेत्र में काम करने वाली संचिता भाटिया को लगता है कि इन प्लेटफॉर्म पर विकल्प बहुत कम हैं। संचिता ने ब्लिंकइट से एक खास ब्रांड के फैशन इयररिंग मंगाए थे। उनका कहना है कि सामान जल्द तो आ जाता है मगर प्लेटफॉर्म उसकी फीस लेते हैं और विकल्प बहुत कम होते हैं।
बहरहाल जेप्टो ने शुगर, लक्मे, प्लम और मेबिलिन जैसे लोकप्रिय मेकअप ब्रांड बेचने शुरू कर दिए हैं। ब्लिंकइट ने भी करण जौहर की माईग्लैम पाउट लिपस्टिक के साथ हाथ मिलाने का ऐलान किया है।
मार्च में बैंक ऑफ अमेरिका ने अपने विश्लेषण में बताया कि क्विक कॉमर्स अगले 3-4 साल में भारत के 2.5 करोड़ घरों तक पहुंच सकता है, जो उस पर महीने में औसतन 4,000 से 5,000 रुपये खर्च करेंगे।
अधिक मार्जिन वाले उत्पाद शामिल कर मार्जिन में बदलाव लाने की कोशिश हो रही है मगर मोहंती का कहना है, ‘अगर क्विक कॉमर्स कंपनियां फर्नीचर और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स का कारोबार करेंगी तो उन्हें बैकएंड पर ज्यादा बड़ी टीम की जरूरत होगी। इसका मतलब है कि उनका खर्च बढ़ेगा या बैकएंड सेवा देने वालों से हाथ मिलाना होगा। उस सूरत में मार्जिन फिर कम हो जाएगा।’