अरबपति कारोबारी मालविंदर मोहन सिंह का रैनबैक्सी लैबोरेटरीज में अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला भारत में जेनरिक दवा उद्योग के खत्म होने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
फार्मा उद्योग के जानकारों का मानना है कि इस फैसले से यह भी संकेत मिलता है कि दवा कंपनियां अपनी रणनीति पर दोबारा सोचेंगी। पीरामल हेल्थकेयर के अध्यक्ष अजय पीरामल कहते हैं, ‘सिर्फ जेनरिक पर ध्यान केंद्रित किया जाना ही तर्कसंगत नहीं है। इस स्थिति में प्रवर्तकों को विविधीकरण को लेकर पुनर्विचार किए जाने की भी जरूरत है।’
उन्होंने कहा, ‘इस व्यवसाय को किफायत पर ध्यान देना होगा। भारत कम लागत के लाभ को बरकरार रख सकता है।’ जेनरिक कारोबार में लगी कंपनियों को अल्पावधि लाभ तलाशने के बजाय दीर्घावधि परिदृश्य को अपनाने की जरूरत है। कंसल्टेंसी फर्म प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के सहायक निदेशक सुजय शेट्टी कहते हैं कि जेनरिक व्यवसाय सिर्फ अगले पांच वर्षों के लिए अनुकूल है। शेट्टी के मुताबिक, ‘अधिकांश प्रमुख दवाओं की मियाद अगले पांच वर्षों में समाप्त हो जाएगी।’
वैश्विक रूप से जेनरिक कारोबार फिलहाल 2800 अरब रुपये का है जिसके 2010 में कम से कम 11 फीसदी तक की बढ़ोतरी के साथ 3760 अरब रुपये तक पहुंच जाने की संभावना हे। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और केपीएमजी की ओर से संयुक्त रूप से कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक वैश्विक जेनरिक कारोबार में भारत की भागीदारी 10 फीसदी की है वहीं अमेरिका की यह बाजार भागीदारी 28 फीसदी है।
ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स के मुख्य कार्यकारी और प्रबंध निदेशक ग्लेन सलदन्हा ने कहा, ‘जेनरिक कारोबार जटिलता के दौर से गुजर रहा है और कंपनियों को विकास को बनाए रखने के लिए मूलभूत सुधार किए जाने की जरूरत है। प्रबंधन को फार्मास्युटिकल्स कारोबार को दीर्घावधि परिदृश्य के साथ देखने की जरूरत है।’
विश्लेषकों के मुताबिक अपने विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए रैनबैक्सी दबाव महसूस कर रही है। स्ट्राइड्स आर्कोलैब के निदेशक के. आर. रविशंकर बताते हैं कि जब 2003 में मालविंदर सिंह ने रैनबैक्सी की कमान संभाली, वह तीन वर्षों में बिक्री दोगुना कर 80 अरब रुपये और 2012 तक राजस्व में पांच गुना इजाफा कर इसे 200 अरब रुपये पर पहुंचाना चाहते थे। लेकिन मार्जिन दबावों के कारण इसका राजस्व कुल कारोबार का एक-चौथाई ही रहा।
जेनरिक व्यवसाय में नियामक मानक हासिल करना कठिन हो रहा है और कर्मचारियों पर खर्च में भी बढ़ोतरी हुई है। इन वजहों से उत्पादन लागत में हर साल इजाफा हो रहा है और मार्जिन में कमी दर्ज की जा रही है।
इंटरलिंक मार्केटिंग कंसल्टेंसी के प्रबंध निदेशक डॉ. आर. बी. स्मार्टा ने कहा, ‘जेनरिक व्यवसाय में वैश्विक रूप से असीम संभावनाएं मौजूद हैं और वैश्विक कंपनियों का प्रमुख भारतीय जेनरिक कंपनियों की ओर देखना स्वाभाविक है। कंपनियों ने कॉमन जेनरिक पर ध्यान केंद्रित किया है जिसे सामान्य चिकित्सकों के बीच बेचा जाता है।’