केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) बिना नियमन के वजन घटाने वाली दवाओं के इस्तेमाल का अध्ययन करने के लिए जल्द ही समिति बना सकता है। समिति बनाने का निर्देश अदालत ने दिया है। सूत्रों के अनुसार जुलाई के मध्य तक विशेषज्ञ समिति के गठन पर काम शुरू हो सकता है।
इस घटनाक्रम के जानकार अधिकारियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि समिति भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) की अध्यक्षता में बनाई जा सकती है। इसमें स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) और औषधि विभाग के अधिकारियों को बतौर सदस्य शामिल किया जा सकता है।
मामले के जानकार एक अधिकारी ने कहा, ‘इस बात पर चर्चा जारी है कि दवा संगठनों को इसमें शामिल होने और उद्योग का नजरिया रखने को कहा जाए।’सीडीएससीओ ने बिजनेस स्टैंडर्ड के ईमेल सवालों का जवाब नहीं दिया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह डीसीजीआई से तीन महीने के भीतर इस मामले पर विशेषज्ञों और संबंधित हितधारकों से परामर्श करने के लिए कहा था। उम्मीद है कि पैनल याचिकाकर्ता को जवाब देने के लिए अदालत द्वारा दी गई तीन महीने की समय सीमा के भीतर वजन घटाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मधुमेह निरोधक दवाओं के संभावित अनियमित उपयोग की भी जांच करेगा। यह निर्देश फिटनेस उद्यमी जितेंद्र चौकसी की एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में दिए गए थे। याचिका में सीमित सुरक्षा डेटा और भारत-केंद्रित नैदानिक परीक्षणों की कमी के बावजूद वजन प्रबंधन में उपयोग के लिए सेमाग्लूटाइड, टिरजेपेटाइड और लिराग्लूटाइड जैसी दवाओं की मार्केटिंग को मंजूरी दिए जाने पर चिंता जताई गई थी।
यह निर्देश भारत में बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियों द्वारा वजन घटाने वाली कई दवाओं की पेशकश के ठीक बाद आया है। अमेरिका की एलाई लिली ने इस साल मार्च में मौंजारो (टिरजेपेटाइड) उतारी, वहीं डेनमार्क की दवा निर्माता नोवो वीगोवी ने पिछले महीने वीगोवी (सेमाग्लूटाइड) की पेशकश की थी। ओबेसिटी मैनेजमेंट मेडिकेशंस (ओएमएम) के मानक दिशा निर्देशों के अनुसार वजन घटाने वाली दवाएं 27 से अधिक के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) वाले मरीजों के लिए स्वीकृत की जाती हैं जो मोटापे से संबंधित कम से कम एक बीमारी जैसे कि टाइप-2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, या उच्च कोलेस्ट्रॉल से जुड़े हों। लेकिन डॉक्टर इन चिकित्सकीय समस्याओं से नहीं जूझने वाले लोगों से भी ऐसी दवाओं के लिए पूछताछ में वृद्धि देख रहे हैं।