सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को अमेरिकी फर्म ग्लास ट्रस्ट कंपनी द्वारा दायर याचिका पर नकदी की कमी से जूझ रही एडटेक फर्म बैजूस के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया को रोकने के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधिक अपीलीय पंचाट (एनसीएलएटी) के आदेश को खारिज कर दिया। ग्लास ट्रस्ट कंपनी उन कर्जदाताओं का प्रतिनिधित्व करती है जिन पर बैजूस का 1.2 अरब डॉलर बकाया है।
एनसीएलटी ने इस साल जुलाई में 158 करोड़ रुपये के डिफॉल्ट पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) द्वारा दायर दिवालिया याचिका को स्वीकार कर लिया था। मगर एनसीएलएटी ने बैजूस के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी क्योंकि बैजूस ने दावा किया था कि 158 करोड़ रुपये के बकाये के भुगतान के लिए बीसीसीआई के साथ उसका समझौता हो गया है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के पीठ ने अन्य पक्षों से कहा कि वे उचित उपाय करने के लिए दिवालिया कंपनी के लेनदारों की समिति (सीओसी) से संपर्क करें। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि रकम को सीओसी द्वारा प्रबंधित एक एस्क्रो खाते में जमा किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि सीओसी को निर्देश दिया जाता है कि वे इस रकम को एस्क्रो खाते में बनाए रखें और एनसीएलटी के आगे के निर्देशों का पालन करें। न्यायालय ने कहा कि एनसीएलएटी को अपनी अपीलीय शक्तियों के आधार पर समझौते को मंजूरी नहीं देनी चाहिए थी और मामले को एनसीएलटी के पास वापस भेज देना चाहिए था।
सर्वोच्च न्यायालय ने इसी साल सितंबर में एनसीएलएटी के उस आदेश पर चिंता जताई थी जिसके तहत बैजूस के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया को रोक दिया गया था। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि अपीलीय पंचाट ने ‘बिल्कुल भी अपना दिमाग नहीं लगाया।’
अपीलीय पंचाट ने 2 अगस्त के अपने आदेश में कहा था कि सीओसी के गठन से पहले ही समझौता हो चुका था। समझौते के लिए धन के स्रोत पर कोई विवाद न होने के कारण कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की कोई वजह नहीं है।
बैजूस के अमेरिकी ऋणदाताओं ने उस समझौते का विरोध किया था। उन्होंने एनसीएलएटी को बताया था कि अदायगी के लिए इस्तेमाल की गई रकम 53.3 करोड़ डॉलर का हिस्सा थी जिसका कोई अतापता नहीं है।
कंपनी के संस्थापक बैजू रवींद्रन के भाई और बोर्ड सदस्य ऋजु रवींद्रन ने एनसीएलएटी से कहा था कि बीसीसीआई को भुगतान की जा रही रकम साफ-सुथरी है। उनके वकील ने अदालत को बताया था कि बीसीसीआई को दी जा रही रकम 53.3 करोड़ डॉलर के गायब रकम का हिस्सा नहीं है, जैसा अमेरिकी ऋणदाताओं ने आरोप लगाया है। वह गायब रकम ही अमेरिकी ऋणदाताओं और बैजूस की मूल कंपनी थिंक ऐंड लर्न के बीच लड़ाई की मुख्य वजह है।
एनसीएलएटी के आदेश के एक दिन बाद बैजू को उनकी कंपनी की कमान सौंप दी गई। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में एक कैविएट भी दायर किया था ताकि अमेरिकी ऋणदाता अगर उस आदेश के खिलाफ अपील कर तो उन्हें भी सूचित किया जाए। ग्लास ट्रस्ट ने एनसीएलएटी के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था।
खेतान ऐंड खेतान के प्रधान एसोसिएट अधीश शर्मा ने कहा, ‘बैजूस के दिवालिया होने से उसके लेनदारों, निवेशकों, कर्मचारियों और ग्राहकों पर काफी असर पड़ेगा। मगर बैजूस के लिए समाधान योजना के जरिये नए स्वामित्व के तहत पुनर्गठन करने का अवसर है।’