प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Pixabay
अमेरिका में अकाउंटेंट पेशेवरों की कमी से निपटने के लिए अकाउंटिंग फर्में भारत से प्रतिभा पूल आकर्षित कर रही हैं। इसके लिए आरएसएम यूएस, मॉस एडम्स, बेन कैपिटल समर्थित सिकिच तथा एपैक्स पार्टनर्स के समर्थन वाली कोहेनरेजनिक जैसी कंपनियां यहां जोरशोर से अपने कारोबार का विस्तार कर रही हैं। अकाउंटेंसी पेशेवरों की तेजी से उभर रही मांग के कारण देश में कॉमर्स विशेषज्ञता वाले पाठ्यक्रमों में नामांकन बढ़ने लगा है। यही रुझान रहा तो एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अकाउंटिंग प्रतिभा का बड़ा केंद्र बन सकती है। यह बदलती स्थिति 90 के दशक के टेक आउटसोर्सिंग बूम की याद दिलाती है, जिसने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जबरदस्त क्रांति ला दी थी।
मॉस एडम्स इंडिया के मैनेजिंग पार्टनर बालाजी अय्यर ने बताया, ‘यह भारत में पब्लिक अकाउंटिंग फर्मों के लिए एक निर्णायक क्षण साबित हो सकता है, क्योंकि अमेरिका इस समय प्रमाणित पब्लिक अकाउंटेंटों की भारी कमी से जूझ रहा है। आने वाले वर्षों में वहां इन पेशेवरों की मांग और ज्यादा बढ़ेगी।’
अमेरिकी श्रम सांख्यिकी ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024 में अमेरिका में लगभग 17.8 लाख लोग अकाउंटेंट के रूप में काम कर रहे थे। यह संख्या 2019 की तुलना में लगभग 10 प्रतिशत कम है, क्योंकि इस दौरान अनेक अनुभवी अकाउंटेंट तो सेवानिवृत्त हो गए, लेकिन प्रतिभा पूल की कमी के कारण उनकी जगह नए भरोसेमंद पेशेवर भर्ती नहीं किए जा सके।
अर्हता परीक्षा आयोजित करने, ग्रेड देने तथा इस पेशे के लिए ऑडिटिंग मानक निर्धारित करने वाले अमेरिका के राष्ट्रीय निकाय अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ सीपीए (एआईसीपीए) ने पिछले साल स्वतंत्र रूप से किए गए एक अध्ययन में प्रतिभा पूल के संकट को स्वीकार किया था। इसके लगभग आधे सदस्य 50 वर्ष से अधिक उम्र के हैं।
नैशनल टैलेंट एडवाइजरी ग्रुप के अध्ययन में पाया गया, ‘अकाउंटेंट की कमी पूरे बाजार में तीव्रता से महसूस की जा रही है। अकाउंटेंट नहीं होने के कारण ही खिलौना बनाने वाली कंपनी मैटल की वार्षिक रिपोर्ट और अन्य महत्त्वपूर्ण फाइलिंग प्रक्रिया पूरी करने में देर हुई। कई व्यवसायों में भी यही स्थिति है।’
अकाउंटेंसी में अपेक्षाकृत अधिक घंटों तक काम करना पड़ता है, लेकिन कई अन्य फाइनैंस नौकरियों की तुलना में वेतन कम होता है। इसके अलावा सीपीए लाइसेंस के लिए विश्वविद्यालय में पांच साल जैसी लंबी अवधि तक पढ़ाई के कारण यह कोर्स युवाओं को बहुत अधिक आकर्षित नहीं करता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के रॉबर्ट एच. स्मिथ स्कूल ऑफ बिजनेस में रिसर्च एसोसिएट डीन रेबेका हैन ने कहा, ‘बहुत कम छात्र अकाउंटिंग में करियर बनाना पसंद कर रहे हैं। क्योंकि, प्रौद्योगिकी या फाइनैंस की तुलना में इसे कम रोमांचक माना जाता है। इसके अलावा ऑटोमेशन आने के साथ इसमें अनिश्चितता बढ़ गई है।’
हैन ने पिछले साल देश में अकाउंटेंट की कमी पर एक शोध पत्र प्रकाशित किया था। आरएसएम यूएस ने बताया कि फर्म का लक्ष्य 2027 तक भारत में अपने कार्यबल को दोगुना से अधिक बढ़ाकर 5,000 तक करना है। सिकिच ने भी कहा कि वह अकाउंटेंट और ऑडिटर जैसे पदों पर रिक्तियां भरने के लिए भारत में तेजी से भर्ती प्रक्रिया चला रही है। इसके साथ ही फर्म अपने ऑटोमेशन और एआई समर्थित कार्यों को गति देने के लिए टेक प्रतिभाओं की भी भर्ती कर रही है।
सिकिच में प्रिंसिपल और भारत ऑपरेशंस लीड बॉबी अचेत्तु ने कहा, ‘यह केवल पेशवरों की भर्ती कर रिक्त पद भरने का नहीं है, बल्कि देखना यह है कि बदलते दौर में हम किस प्रकार कुशल प्रतिभा और उन्नत टेक्नॉलजी दोनों का उपयोग कर अपने ग्राहकों को अधिक गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्रदान करते हैं।’ इस फर्म में भारत में 200 सदस्यों की टीम काम कर रही है, जो इसके वैश्विक कार्यबल का लगभग 10 फीसदी है।
मार्केट इंटेलिजेंस फर्म अनअर्थइनसाइट के अनुसार, डिलॉयट, ईवाई, केपीएमजी और पीडब्ल्यूसी जैसी अकांटिंग क्षेत्र की ‘बिग फॉर’ नाम से मशहूर चार बड़ी कंपनियों के भारत स्थित वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) में 2024 तक संयुक्त रूप रूप से 140,000 से 160,000 पेशेवर कार्यरत थे। इन ‘बिग फोर’ कंपनियों ने इस बारे में टिप्पणी के लिए भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया है।
जिस तरह अकाउंटिंग प्रतिभाओं के लिए इस क्षेत्र की फर्में भारत का रुख कर रही हैं, यही रुझान पिछले दो दशकों से प्रौद्योगिकी क्षेत्र में बना हुआ है। वॉलमार्ट, माइक्रोसॉफ्ट और जेपी मॉर्गन चेज सहित तमाम वैश्विक कंपनियों ने भी अपने यहां इंजीनियरिंग प्रतिभा पूल बनाने के लिए भारत में कार्यालय स्थापित किए हैं। अमेरिकी श्रम ब्यूरो के अनुमान के अनुसार अकाउंटेंट और ऑडिटर की नौकरियां अगले एक दशक 6 फीसदी तक बढ़ेंगी। यह सभी व्यवसायों से जुड़ी पेशेवरों की मांगे के औसत से अधिक है।
कुछ मध्यम आकार की अकाउंटिंग फर्में तो इतनी बेताब हैं कि वे सीधे भारतीय विश्वविद्यालयों के कैंपस पहुंचकर भर्ती कर रही हैं। इनमें अनेक ऐसी हैं जो अपनी युवा प्रतिभा के लिए सीपीए कोर्सों को प्रायोजित करने की पेशकश भी कर रही हैं।
बेंगलूरु में क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज के निदेशक बीजू टॉम्स ने कहा, ‘अकाउंट पेशेवरों की प्रक्रिया सबसे पहले इन ‘बिग फोर’ अकाउंटिंग फर्मों ने शुरू की थी। इनके बाद इजनर एम्पर और बीडीओ जैसी छोटी फर्मों ने भी वहीं राह पकड़ ली।’ इससे कॉलेज के बैचलर ऑफ कॉमर्स (इंटरनैशनल फाइनैंस) जैसे विशेषज्ञता वाले कोर्सों की मांग बढ़ गई है। उनके यहां इस कोर्स में 120 सीटें हैं और इनमें दाखिले के लिए लगभग 3,000 आवेदन आए हैं। टॉम्स ने कहा, ‘भारत से काम करने वाली कंपनियों को प्रशिक्षित प्रतिभा पूल की हमेशा आवश्यकता होती है। इसलिए टेक आउटसोर्सिंग की तरह ही अब अकाउंटिंग क्षेत्र भी कुशल पेशेवरों के लिए खुल रहा है।’