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रूस कच्चे तेल की कम बिक्री से परेशान, भारतीय रिफाइनरों को दिया ज्यादा छूट पर खरीदने का ऑफर

ग्लोबल लेवल पर कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के बीच ज्यादा छूट से भारत और भारतीय तेल कंपनियों को फायदा हो सकता है।

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एस दिनकर   
Last Updated- September 24, 2023 | 2:02 PM IST

रूस ने भारतीय रिफाइनरों के लिए सितंबर में कच्चे तेल (Crude Oil) की बिक्री पर छूट 25-50 प्रतिशत तक बढ़ा दी है। इंडस्ट्री के अधिकारियों ने कहा कि रूस कच्चे तेल के निर्यात पर आपत्ति जता रहा था, लेकिन उनकी आपत्तियों की वजह से भारत के कच्चे तेल आयात में रूस की 42 प्रतिशत से ज्यादा की बाजार हिस्सेदारी खत्म होने का खतरा था।

बता दें कि सस्ते रूसी तेल ने अगस्त के सात महीने के निचले स्तर से इस महीने भारतीय खरीद में तेजी ला दी है। भारतीय तेल कंपनियों द्वारा गल्फ देशों से आयातित किए जा रहे के कच्चे तेल के तरह ही रूस के बेंचमार्क यूराल (हाई-सल्फर ग्रेड) पर छूट पिछले महीने 3- 4 डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर तक गिर गई थी, लेकिन इस महीने से यह बढ़कर 5- 6 डॉलर प्रति बैरल हो गई है। यह जानकारी सरकारी अधिकारी और मुंबई स्थित रिफाइनर के एक अधिकारी, जो रूसी निर्यातकों के साथ बातचीत में शामिल थे, ने दी।

क्यों रूस से महंगा हो गया था कच्चे तेल का आयात

एक अन्य रिफाइनिंग अधिकारी ने कहा, भारतीय खरीदारों ने तेल व्यापारियों द्वारा सितंबर के अंत और अक्टूबर डिलीवरी के लिए अगस्त के मिड में बातचीत के दौरान बेंचमार्क रूसी यूराल (Russian Urals) ग्रेड की बिक्री पर छूट कम करने के प्रयासों का विरोध किया, जिससे व्यापारियों को छूट बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

कब Crude Oil बनते हैं भारतीय रिफाइनर्स के लिए प्रतिस्पर्धी?

इंडस्ट्री के एक अधिकारी ने कहा, भारतीय रिफाइनर को Urals तभी प्रतिस्पर्धी लगता है जब छूट 5 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो जाती है, क्योंकि उन्हें अपनी रिफाइनरियों में प्रोसेसिंग के लिए यूराल के साथ ब्लेंडिंग करने के लिए महंगे सामानों का आयात करना पड़ता है।

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इसके अलावा, रूसी तेल के लिए पेमेंट करना एक चुनौती बनी हुई है, ज्यादातर भुगतान अब संयुक्त अरब अमीरात दिरहम (UAE dirhams) में किए जा रहे हैं। 5 डॉलर प्रति बैरल से कम की छूट गल्फ देशों के कच्चे तेल को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाती है।

रोसनेफ्ट भारत को भेजती है सबसे ज्यादा रूसी तेल

रोसनेफ्ट (Rosneft ) भारत को रूसी तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है। केप्लर (Kpler) के मुताबिक, इस साल रूस से भारत भेजी गई सप्लाई में इसकी हिस्सेदारी 42 प्रतिशत है। कंपनी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया कि क्या उसने भारतीय रिफाइनरों के लिए छूट बढ़ाई है। ज्यादातर रूसी तेल शिपमेंट बिचौलियों के माध्यम से भेजे जाते हैं।

दुनियाभर में बढ़ रही कच्चे तेल की कीमतों के बीच भारत को होगा फायदा

ग्लोबल लेवल पर कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के बीच ज्यादा छूट से भारत और भारतीय तेल कंपनियों को फायदा हो सकता है। जेपी मॉर्गन ने चेतावनी दी कि ब्रेंट क्रूड की कीमतें वर्तमान में 93 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 2026 तक 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।

अमेरिकी बैंक का अनुमान है कि 2024 में ब्रेंट की कीमतें 90-110 डॉलर प्रति बैरल और 2025 में 100 से 120 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहेंगी, 2025 में आपूर्ति घाटा (supply deficit) 1.1 मिलियन बैरल प्रति दिन होगा, जो 2030 में बढ़कर 7.1 मिलियन बैरल प्रति दिन हो जाएगा।

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पेरिस स्थित कमोडिटी इंटेलिजेंस एजेंसी केप्लर (Kpler) के आंकड़ों और रिफाइनरी इंडस्ट्री के अधिकारियों के मुताबिक, रूसी तेल की भारतीय खरीद अगस्त में 1.55 मिलियन बैरल प्रति दिन के मुकाबले इस महीने लगभग 1.83 मिलियन बैरल प्रति दिन तक बढ़ सकती है। और ऐसा तब हो रहा है जब छूट इस साल सबसे कम थी। भारत में कच्चे तेल के आयात बाजार में रूस की हिस्सेदारी जुलाई में 43 प्रतिशत से ज्यादा थी, लेकिन छूट कम होने के बाद अगस्त में यह गिरकर 35 प्रतिशत हो गई।

Crude Oil के आयात पर बढ़ती कीमतों का कैसे पड़ता है असर? समझें

रूसी तेल आयात में वृद्धि तब हुई है जब यूरोपीय बेंचमार्क ब्रेंट (European benchmark Brent ) तेल की कीमतें इस महीने 95 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गई हैं, जो 10 महीनों में उच्चतम स्तर है। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण वृद्धि है: जुलाई की शुरुआत से कच्चे तेल में लगभग 20 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी हुई है।

आइये भारत की तेल आयात लागत पर कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के प्रभाव के बारे में समझते हैं। उदाहरण के लिए, अगर सालाना कच्चे तेल का आयात पिछले महीने के औसत स्तर लगभग 4.4 मिलियन बैरल प्रति दिन पर रहता है, तो भारतीय सीमा शुल्क डेटा पर आधारित गणना के अनुसार, भारत को जुलाई के शुरुआती स्तरों के मुकाबले अपने कच्चे तेल की खरीद पर प्रतिदिन 90 मिलियन डॉलर का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ सकता है। सालाना आधार पर, भारत मौजूदा दरों पर तेल आयात के लिए अतिरिक्त 32 बिलियन डॉलर का भुगतान करेगा।

रूसी तेल पर ज्यादा रियायत से भारत को हैं कई फायदे

रूसी तेल पर अधिक छूट से आयातित Crude Oil के लिए भारत को लागत कम करने में मदद मिलती है। इंडस्ट्री के एक अधिकारी ने कहा कि भारतीय रिफाइनरों के लिए अपनी खरीद में मुनाफा पाने के लिए प्रति बैरल कुछ सेंट का अंतर भी पर्याप्त है।

मुंबई स्थित एक रिफाइनर ने कहा कि छूट में प्रति बैरल 1 डॉलर की बढ़ोतरी से कई मिलियन डॉलर की बचत होती है। भारत ने इस साल रूसी तेल से 3.7-4 बिलियन डॉलर की बचत की होगी, जिससे इंडियन ऑयल के नेतृत्व वाली भारतीय राज्य-संचालित तेल कंपनियों के मार्केटिंग घाटे की भरपाई हो सकेगी।

भारतीय सीमा शुल्क आंकड़ों के अनुसार, भारत ने कैलेंडर वर्ष 2023 में रूसी कच्चे तेल के लिए 69.8 डॉलर प्रति बैरल का भुगतान किया है। वहीं, इराकी तेल के लिए 75 डॉलर प्रति बैरल और सऊदी अरब को कच्चे तेल के लिए 85 डॉलर प्रति बैरल का पेमेंट किया है।

G7 देशों के समूह द्वारा रूसी तेल की बिक्री पर 60 डॉलर प्रति बैरल मूल्य सीमा लागू करने के बाद रूसी निर्यातक 2023 की शुरुआत में 10 डॉलर से 13 डॉलर प्रति बैरल तक का ऑफर करते थे। इसका मतलब यह था कि फ्री ऑन बोर्ड (FOB) या लोडिंग के आधार पर मूल्य सीमा से ऊपर सप्लाई किए गए रूसी कच्चे तेल के लिए पश्चिमी शिपिंग और इन्श्योरेंस सर्विसेज उपलब्ध नहीं थीं।

First Published : September 24, 2023 | 2:01 PM IST