उत्तर प्रदेश और असम जैसे राज्यों ने सूचित किया है कि उन्हें इस दर पर गेहूं खरीदने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने कहा कि इस दर माल खरीदने की योजना नहीं बनाई गई है। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने यह सोचकर खुले बाजार में गेहूं बेचने का फैसला किया था कि त्योहारी सीजन में अक्सर गेहूं महंगा हो जाता है, लिहाजा इसकी उपलब्धता बढ़ाकर आम लोगों की समस्या कम की जा सकती है। सरकार को उम्मीद थी कि विभिन्न राज्यों की सरकारें केंद्रीय खाद्य निगम (एफसीआई) के जरिए खरीदारी करेंगी और फिर इसे खुदरा ग्राहकों तक पहुंचाएंगी। ऐसे खुदरा खरीदारों के बीच हर महीने 30 टन गेहूं की खपत होती है। थोक मूल्य सूचकांक में गेहूं का भार 1.38 फीसदी का है। गौरतलब है कि पिछले कई हफ्तों से महंगाई की दर 12 फीसदी से ऊंची रही है।
एफसीआई के एक अधिकारी ने कहा कि 30 सितंबर तक न तो किसी राज्य सरकारों ने और न ही केंद्र शासित प्रदेशों ने खुले बाजार से गेहूं की खरीदारी की है। हालांकि दो राज्य उत्तर प्रदेश और असम ने इस बाबत सूचित किया है कि गेहूं की खरीदारी में फिलहाल उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। यूपी के लिए 40 हजार टन रखा गया है जबकि असम के लिए 30 हजार टन। खुले बाजार में सरकार पंजाब व हरियाणा के लिए गेहूं 1021 रुपये प्रति क्विंटल पर उपलब्ध करा रही है जबकि अंडमान व निकोबार द्वीप के लिए 1358 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर। कीमत का आकलन लुधियाना से राज्यों की राजधानी तक ले जाने का ढुलाई खर्च और 1000 रुपये केन्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को शामिल करते हुए किया गया है। इसके अलावा खरीदार को इसके वितरण आदि पर भी 100 रुपये प्रति क्विंटल का खर्च करना पड़ेगा।
दिल्ली के थोक बाजार में गेहूं 1080-1090 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है जबकि दक्षिणी राज्यों में यह 1250-1300 रुपये प्रति क्विंटल पर उपलब्ध है। इसके अलावा गेहूं उत्पादक राज्यों और पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की विभिन्न मंडियों में गेहूं की कीमत 930-960 रुपये प्रति क्विंटल पर उपलब्ध है, जो एक हजार रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी कम है।
अच्छे एमएसपी के चलते चालू सीजन में गेहूं की पैदावार 78.40 मिलियन टन के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया और सरकारी खरीद भी अब तक के उच्च स्तर 22.5 मिलियन टन पर पहुंच गई। केंद्रीय पूल में एक सितंबर को 23.2 मिलियन टन गेहूं का स्टॉक था।