चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान रुपये पर गिरावट का दबाव जारी रहा और डॉलर के मुकाबले रुपया नए निचले स्तर पर पहुंच गया। इसकी वजह डॉलर में मजबूती, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और विदेशी पूंजी की निकासी है। मौजूदा वित्त वर्ष में रुपया अब तक 3.7 फीसदी नरम हुआ है जबकि अप्रैल में उसने अच्छी शुरुआत की थी।
पहली तिमाही के दौरान स्थानीय मुद्रा में उतार-चढ़ाव रहा। लेकिन अंततः वह अवधि काफी हद तक स्थिर रही और रुपये में डॉलर के मुकाबले 0.3 फीसदी कमजोर रही। मंगलवार को यह 88.79 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। यह लगातार दूसरे सत्र में डॉलर के मुकाबले नया निचला स्तर है।
हालांकि, दूसरी तिमाही के दौरान बाहरी और घरेलू दोनों तरह की चुनौतियों के कारण रुपये पर गिरावट का दबाव बढ़ा । भारतीय वस्तुओं पर अमेरिका के जवाबी शुल्कों के लागू होने और इसमें इजाफे, कुछ सेक्टरों में प्रभावी शुल्क 50 फीसदी तक कर दिए गए, ने भारतीय बाजारों के प्रति निवेशकों की धारणा को कमजोर कर दिया।
एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, पहली छमाही में रुपये पर दबाव का मुख्य कारण अमेरिकी टैरिफ थे। उन्होंने कहा, दूसरी तिमाही में आरबीआई का हस्तक्षेप कम रहा। उन्होंने तीव्र उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए कभी-कभी डॉलर बेचे, लेकिन ज्यादातर समय रुपये को बाजार की ताकतों के अनुसार चलने दिया। दूसरी ओर, बेंचमार्क 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर यील्ड वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में स्थिर रहा जबकि दूसरी तिमाही में इसमें करीब 23 आधार अंकों की वृद्धि हुई, जिससे पहली तिमाही के लाभ में कमी आई।
वर्ष की पहली छमाही में बेंचमार्क 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल में 3 आधार अंकों की गिरावट आई। बाजार के प्रतिभागियों ने बताया कि आपूर्ति दबाव और केंद्रीय बैंक के खुले बाजार परिचालन न करने से दूसरी तिमाही में प्रतिफल में वृद्धि हुई। नीतिगत दरों में कटौती, आरबीआई द्वारा नकदी बढ़ाने और घरेलू निवेशकों की मजबूत मांग के कारण सभी परिपक्वता अवधि के सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल शुरुआत में दबाव में रहा।