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महंगे कच्चे माल से फीका पड़ा रंग-रोगन का बाजार

Last Updated- December 07, 2022 | 9:41 PM IST

फिलहाल कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे चला गया है, लेकिन 147 डॉलर के रेकॉर्ड स्तर तक पहुंचने की मार से पेंट उत्पादक अभी तक कराह रहे हैं।


पेंट इंडस्ट्री में मुख्य कच्चा माल के तौर इस्तेमाल हो रहा कच्चा तेल पिछले कुछ महीनों में इतना उछला कि उत्पादकों की कमर पर बल ही पड़ गए। पेंट कारोबारियों की कमर भले ही टूटते-टूटते रह गई लेकिन पेंट उद्योग की फिजां में इस दर्द की गूंज अभी तक सुनाई दे रही है। वैसे इस दर्द से सबसे ज्यादा असंगठित पेंट उद्योग की हालत खराब हुई है।

हाल यह है कि पेट्रोलियम पदार्थों के दो से तीन गुने महंगे होने से पेंट उद्योग का असंगठित कारोबार महज छह महीनों में ही 40 से 50 फीसदी तक सिमट गया है। पेंट तैयार करने में इस्तेमाल होने वाला मुख्य कच्चा माल एमपीओ (मिनरल परपेंसियल ऑयल) जनवरी से अब तक करीब तीन गुना महंगा हो गया है। लेकिन दर्द-ए-कारोबार यह है कि कीमतें अब भी जस की तस बनी हुई हैं।

देश में पेंट की सर्वोच्च संस्था आईएसएसपीए (इंडियन स्मॉल स्केल पेंट एसोसिएशन) के अध्यक्ष श्रीराम ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि समूचा पेंट उद्योग पेट्रोकेमिकल्स की कीमतों के ऊपर ही निर्भर करता है। उनके मुताबिक, कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से हालत क्यों खराब हुए हैं, इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है कि पेंट के कच्चे माल 50 फीसदी से ज्यादा महंगे हो गए हैं।

श्रीराम ने कहा कि पिछले पांच साल के दौरान देश का पेंट उद्योग 13 से 15 फीसदी की दर से तरक्की कर रहा है। असंगठित पेंट उद्योग की बुरी हालत की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि एक ओर तो संगठित क्षेत्र सालाना 20 फीसदी का विकास कर रहे हैं वहीं अंसगठित पेंट उद्योग महज 5 से 8 फीसदी की दर से तरक्की कर रहे हैं।

इसकी वजह, छोटे कारोबारियों के पास बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तुलना में पुरानी तकनीक और अपर्याप्त संसाधनों का होना है। पेंट कारोबारियों को तो 12.5 फीसदी वैट और 14.42 का उत्पाद कर भी चुकाना पड़ता है। कारोबारियों के मुताबिक, कर की ऊंची दरों, महंगी मजदूरी और महंगे कच्चे माल के चलते छोटे और असंगठित कारोबारियों की हालत ऐसी हो चुकी है कि उनके सामने उत्पाद की कीमतें बढ़ाने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है।

पेंट उद्योग के एक जानकार की मानें तो बड़े कारोबारी तो पेंट की कीमतें बढ़ाए बगैर भी इस मुश्किल स्थिति का सामना कर ले रहे हैं, लेकिन उत्पाद की कीमतें बढ़ाने को मजबूर हुए छोटे कारोबारियों की हालत इसके चलते खराब हो चुकी है।

दिल्ली पेंट इंडस्ट्री एसोसिएशन के सदस्य अजीत सिंह का कहना है कि बाजार में फिनिश्ड पेंट की कीमतों के न बढ़ने की वजह संगठित कंपनियों द्वारा कीमतें न बढ़ाया जाना है। बहुराष्ट्रीय संगठित कंपनियां कच्चे माल के महंगे होने के बावजूद फिनिश्ड पेंट की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि बड़ी कंपनियां तो अपना मार्जिन कम करके कारोबार कर लेती हैं, लेकिन इसके चलते हमारे जैसे असंगठित और छोटे कारोबारियों की संभावनाएं खत्म हो रही हैं। इस बाबत श्रीराम ने कहा कि इस समय देश में पेंट बनाने की  लगभग 4 हजार छोटी इकाइयां हैं। इसके जरिए कोई 80 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

उन्होंने बताया कि यदि इन छोटे कारोबारियों के हितों को सुरक्षित करना है तो सरकार को चाहिए कि इन इकाइयों को कर में छूट दे और सस्ती दरों पर ऋण मुहैया कराए।

First Published - September 17, 2008 | 11:35 PM IST

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