गेहूं कारोबारियों को राहत नहीं

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 10:15 PM IST

गेहूं कारोबारियों की परेशानी बढ़ती ही जा रही है। पहले से ही कम कीमत पर गेहूं बेचने को मजबूर कारोबारियों को इन दिनों आटे मिल वालों से भी कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है।


गेहूं विक्रेताओं में इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की संभावना से भी कोई उत्साह नहीं है। गेहूं के थोक विक्रेताओं ने बताया कि आटा बनाने वाली मिलों को सरकार की तरफ से सस्ती दरों पर गेहूं बेची जा रही है।

मिलों को मिलने वाले गेहूं की कीमत मात्र 1030 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि बाजार में गेहूं 1200 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर है। दिल्ली ग्रेन मचर्ट एसोसिएशन के कार्यकारिणी सदस्य अशोक बंसल ने बताया कि सरकार सस्ती दरों पर आटे की बिक्री के लिए कम कीमत पर आटा मिलों को गेहूं दे रही हैं।

लेकिन आटे के नाम पर मिलने वाले गेहूं की बिक्री बाजार में 1100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की जा रही है। गेहूं के कारोबारी बताते हैं कि वे पहले से ही लगभग खरीद कीमत पर ही गेहूं की बिकवाली कर रहे हैं।

गत अप्रैल में उन्होंने 1100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीदारी की थी और ढुलाई खर्च वगैरह मिलाकर मंडी में आते-आते इसकी कीमत 1150 रुपये प्रति क्विंटल हो गयी।

लेकिन मांग के स्थिर रहने और सरकारी स्टॉक की भरपूर मात्रा होने के कारण गेहूं की कीमत में पिछले 8 महीनों के दौरान कोई बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गयी। इस दौरान गेहूं 1150-1200 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर ही  पड़ा रहा।

आगामी रबी के दौरान भी गेहूं की बंपर फसल होने की उम्मीद है। दिसंबर के आखिरी सप्ताह तक 250 लाख हेक्टेयर जमीन पर गेहूं की बुवाई हो चुकी थी जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान मात्र 244 लाख हेक्टेयर जमीन पर इसकी बुवाई की गयी थी।

सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक बीते पांच सालों के मुकाबले अपने अधिकतम है। सरकार के पास 195 लाख टन से अधिक गेहूं का स्टॉक है।

कारोबारी कहते हैं कि चुनावी साल होने के नाते गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 50 रुपये तक की बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन इससे उन्हें कोई लाभ नहीं मिलने वाला है।

हालांकि कुछ कारोबारी इस बात की उम्मीद जता रहे हैं कि आटा मिलों को भारी मात्रा में गेहूं मिलने के कारण सरकारी गोदामों में गेहूं की मात्रा कम हो जाएगी और तब कही जाकर गेहूं का बाजार तेज भी हो सकता है।

लेकिन कुछ कारोबारी मांग के मुकाबले आपूर्ति की काफी मजबूत स्थिति को देखते हुए इस दलील को पूरी तरह से खारिज कर रहे हैं।

First Published : January 16, 2009 | 9:48 PM IST