अगले बारह साल में मक्के की खपत में तेज वृद्धि होने का अनुमान है।
एसोचैम के मुताबिक, उम्मीद है कि मक्के की खपत 12 सालों में मौजूदा 1.51 करोड़ टन से बढ़कर 2.62 करोड़ टन तक पहुंच जाएगी। एसोचैम और एग्रीवाच द्वारा कराए गए एक संयुक्त अध्ययन में यह बात सामने आई है।
अध्ययन में कहा गया है कि मक्के का उत्पादन हर साल 6 फीसदी की दर से बढ़ रहा है जबकि इसकी खपत महज 4.7 फीसदी की दर से ही बढ़ रही है। एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने बताया कि पिछले दो दशकों के दौरान मक्के की औसत पैदावार करीब 3.82 फीसदी की दर से बढ़ रही है।
रावत ने बताया कि उम्मीद है कि मक्के के उत्पादन में अब पहले से तेज बढ़ोतरी होगी। मक्का के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए देश को 2.62 करोड़ टन मक्के पैदा करने का लक्ष्य हासिल करना होगा।
इसके लिए इसकी उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 30.8 लाख टन तक ले जानी होगी। अध्ययन में बताया गया है कि दूसरे फसलों के चलते मक्के के रकबे में बढ़ोतरी की ज्यादा संभावना नहीं है।
ऐसे में उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए इसकी उत्पादकता बढ़ाने के सिवा और कोई रास्ता नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, स्टार्च और खाद्य क्षेत्र की ओर से मांग बढ़ने के चलते मक्के की मांग खासी बढ़ने का अनुमान है।
अध्ययन में कहा गया है कि मक्के के वैश्विक बाजार में भारत अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है। भारत को न केवल अपनी जरूरतें पूरी करनी होंगी बल्कि वैश्विक जरूरतों का भी ख्याल रखना होगा।