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मेंथा की फसल पर ‘इन्द्र’ का साया

Last Updated- December 07, 2022 | 6:05 AM IST

समय से पहले मानसून आ जाने से मेंथा की फसल को नुकसान पहुंचा है। अगर इन्द्र देवता ने अपना प्रकोप जारी रखा तो यूपी में फसल क्षेत्र में बढ़ोतरी के बावजूद इस साल 40 हजार टन के अनुमानित उत्पादन में सेंध लग सकती है।


क्योंकि मेंथा के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में मानसून का आगमन जुलाई में होता रहा है, लेकिन इस साल 15 दिन पहले दस्तक देकर इसने मेंथा को नुकसान पहुंचाया है। वैसे एमसीएक्स के एक अधिकारी और व्यापारी का दावा है कि अब तक हुई बारिश से मेंथा को नुकसान नहीं पहुंचा है।

उनका कहना है कि तीन-चार दिनों की बारिश के बाद मौसम साफ हो गया है, लिहाजा नुकसान की आशंका फिलहाल समाप्त हो गई है। अगर मौसम विभाग की भविष्यवाणी सच साबित हुई तो फिर मेंथा को निश्चित रूप से नुकसान पहुंचेगा। मौसम विभाग ने राज्य में अगले दो दिन बारिश की संभावना जताई है।

चंदौसी स्थित मेंथा किसान और व्यापारी आर. सी. गुप्ता बड़ी बेबाकी से कहते हैं – बारिश के चलते अब तक मेंथा को जो नुकसान हुआ था, बुधवार को मौसम साफ होने से उसकी भरपाई हो गई है। अगर आगे भी मौसम साफ रहा तो मेंथा के उत्पादन में गिरावट शायद नहीं होगी। मेंथा के सबसे बड़े नकदी बाजार चंदौसी में बुधवार को यह 560 रुपये के आसपास रहा।

गुप्ता ने कहा कि बुधवार को इसमें पिछले दिनों के मुकाबले इसमें 30 रुपये की गिरावट दर्ज की गई। उन्होंने कहा कि अगर बारिश का प्रकोप जारी रहा तो मेंथा का उत्पादन गिरकर 20-25 हजार टन तक पहुंच सकता है और अगर धूप रही तो अनुमान है कि उत्पादन कम से कम 30-32 हजार टन तो रहेगा ही। उधर, एमसीएक्स के एक अधिकारी मेंथा में आई तेजी की वजह इस फसल की कटाई में देरी को बता रहे हैं।

उनका कहना है कि नई फसल आने में 15-20 दिन की देरी हो गई है और यही वजह है कि पिछले तीन-चार दिनों से मेंथा के नकदी और वायदा दोनों बाजार में गरमी का माहौल है। पिछले तीन दिनों में मेंथा का वायदा बाजार करीब 10 फीसदी तक उछला है। एमसीएक्स के अधिकारी का कहना है कि नई फसल आने केसाथ ही मेंथा की गरमी ठंडी पड़ जाएगी और यह 525-530 रुपये के आसपास स्थिर हो जाएगा।

बुधवार को एमसीएक्स में मेंथा के सितंबर वायदा में सर्वाधिक 3.68 फीसदी की तेजी रही और यह 530.20 रुपये पर बंद हुआ। जून वायदा 518.10 रुपये पर, जुलाई वायदा 526 रुपये पर और अगस्त वायदा 536.50 रुपये पर बंद हुआ और इसमें क्रमश: 1.49 फीसदी, 1.44 फीसदी और 1.73 फीसदी की तेजी रही। उत्तर प्रदेश मेंथा इंडस्ट्री असोसिएशन के प्रेजिडेंट फूल प्रकाश के मुताबिक, मई के आखिरी हफ्ते में इस फसल की कटाई शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार इसमें देरी हो रही है।

उन्होंने कहा कि बारिश की वजह से अगले एक सप्ताह तक इसकी कटाई मुमकिन नहीं है। उनका दावा है कि अगर बारिश ने मेंथा को नुकसान नहीं पहुंचाया होता तो इस साल करीब 45 हजार टन मेंथा का उत्पादन होता। वैसे अभी भी उन्हें 40 हजार टन मेंथा के उत्पादन की उम्मीद है। पिछले साल यूपी में 30-32 हजार टन मेंथा का उत्पादन हुआ था।

उत्तर प्रदेश के हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट के मुताबिक, 2007 में करीब एक लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मेंथा की फसल बोई गई थी, जो इस साल बढ़कर 1.2 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है। राज्य में मेंथा की खेती तराई इलाके में होती है और इनमें रामपुर, बरेली, बदायूं, मुरादाबाद, मेरठ, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, लखनऊ और सुल्तानपुर शामिल हैं। इस फसल के लोकप्रिय होने का एक कारण ये है कि दूसरे नकदी फसल के मुकाबले इस फसल के तैयार होने में काफी कम समय लगता है।

यह वैसे समय में लगाया जाता है जब जमीन खाली पड़ी रहती है। यूपी में चंदौसी मेंथा का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। वैसे इसकी खेती पंजाब में भी होती है। पंजाब में मेंथा के मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं मोगा, फिरोजपुर, कपूरथला, जालंधर, नवांशहर और लुधियाना।

पिछले साल यहां 1200 टन मेंथा का उत्पादन हुआ था। इसके अलावा हरियाणा, बिहार और हिमाचल प्रदेश में भी इसका उत्पादन होता है। मेंथा का इस्तेमाल मुख्य रूप से दवा और सौंदर्य प्रसाधन में होता है। टूथपेस्ट, माउथ फ्रेशनर, दवा, ड्रिंक, च्विंगम आदि के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल होता है। भारत मेंथा ऑयल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है।

First Published - June 18, 2008 | 11:24 PM IST

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