भारत ने अपने सामरिक ऊर्जा साझेदार रूस के साथ सहयोग का एक और द्वार खोल लिया है। केंद्रीय इस्पात मंत्री राम चंद्र प्रसाद सिंह ने आज विशेष रूप से कोकिंग कोल पर ध्यान देते हुए खनन और इस्पात क्षेत्रों में सहयोग के लिए रूस के ऊर्जा मंत्री निकोले शुल्गिनोव के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) किया है।
यह कदम भारत की राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 का हिस्सा है, जिसके तहत देश का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30 करोड़ टन इस्पात उत्पादन तक पहुंचना है, साथ ही साथ अगले-पिछले एकीकरण पर भी काम करना है।
इस्पात मंत्रालय ने अपनी विज्ञप्ति में कहा है कि दोनों देशों के बीच मास्को में किए गए इस समझौता ज्ञापन में कोकिंग कोल के क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाओं और वाणिज्यिक गतिविधियों के कार्यान्वयन की परिकल्पना की गई है, जिसमें भारत को उच्च गुणवत्ता वाले कोकिंग कोल की लंबी अवधि तक आपूर्ति, कोकिंग कोल भंडारण का विकास और लॉजिस्टिक्स विकास, कोकिंग कोल के उत्पादन प्रबंधन में अनुभव साझा करना, खनन की तकनीकों, लाभ और प्रसंस्करण के साथ-साथ प्रशिक्षण भी शामिल है।
बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान राम चंद्र प्रसाद सिंह ने कहा था कि देश कोकिंग कोल के आयात पर सालाना लगभग 75,000 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है और उन्होंने आपूर्ति में विविधता लाने की आवश्यकता जताई थी।
ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) रूस की विशाल वोस्तोक तेल परियोजना के साथ-साथ योजनाबद्ध तरलीकृत गैस परियोजना आर्कटिक एलएनजी-2 में हिस्सा खरीदने पर चर्चा कर रही है। वर्ष 2018 में रुइया के स्वामित्व वाली एस्सार ऑयल ने भारत की परिसंपत्ति रूसी सरकार द्वारा नियंत्रित रोसेनेफ्ट के नेतृत्व वाले समूह को 12.9 अरब डॉलर में बेची थी। यह समझौता ज्ञापन ऐसे समय में सामने आया है, जब भारत के गैर-विद्युत उद्योगों (एल्युमीनियम, सीमेंट और इस्पात के द्वितीयक उत्पादक) को तापीय कोयले की गंभीर कमी की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अलबत्ता कोकिंग कोल और तापीय कोयले के अलग-अलग अनुप्रयोग होते हैं और वे एक-दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करते हैं।
वर्तमान में भारत अपने कोकिंग कोल का आयात मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया से करता है, जो मूल्य निर्धारण शक्ति के मामले में घरेलू इस्पात उद्योग पर अपनी धाक रखता है। अधिकारियों ने कहा कि घरेलू इस्पात उपभोक्ताओं के लिए मूल्य निर्धारण के मामले में आपूर्ति के विविधीकरण से कुछ फायदा मिल सकता है। फिलहाल देश में इस्पात के लगभग सभी प्राथमिक उत्पादक अपनी आपूर्ति को पूरा करने के लिए पूर्ण रूप से आयातित कोकिंग कोल पर ही निर्भर रहते हैं। अलबत्ता टाटा स्टील ने कोयले की अपनी आवश्यकता का लगभग 25 से 30 प्रतिशत भाग घरेलू कोकिंग कोल की आपूर्ति के जरिये पूरा किया है, जिसके बाद सरकार के स्वामित्व वाली स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) का स्थान आता है।
भारत के पास झारखंड के झरिया में कोकिंग कोल के बड़े भंडार हैं, जिसे लगातार आग का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र में लगभग 19.4 अरब टन कोकिंग कोल का भंडार होने का अनुमान जताया जाता है और अगर इसे विकसित कर लिया जाए, तो यह घरेलू इस्पात उद्योग के लिए और रोजगार पैदा करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाला क्षेत्र हो सकता है। भारतीय इस्पात संघ के उप महासचिव अर्णव कुमार हजारा ने हाल ही में बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ एक बातचीत में कहा था ‘यह महत्त्वपूर्ण बात है कि घरेलू इस्पात उद्योग के पास कोकिंग कोयले की मजबूत और सस्ती आपूर्ति हो।