प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Pixabay
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर बातचीत एक अहम मोड़ पर आ गई है। भारत में घरेलू स्तर पर कुछ हलकों में चिंता जताई जा रही है कि कुछ कृषि उत्पादों के आयात से भारतीय किसानों पर बुरा असर पड़ सकता है। सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका तीन बड़े कृषि उत्पादों को भारत भेजने से जुड़ी व्यापार बाधाएं दूर करने की मांग कर रहा है, जिनकी उसके पास अधिशेष मात्रा है। इन कृषि उत्पादों में सोयाबीन, सोया तेल और मक्का (मक्के को ही मकई भी कहते हैं) शामिल है। वर्ष 2024-25 (जुलाई से जून) में, देश में लगभग 1.2 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर मक्का और लगभग 1.3 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर सोयाबीन उगाया गया था। इन दोनों फसलों का मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के किसानों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
अगर भारत, अमेरिका की मांग मान लेता है तब जिन फसलों पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की संभावना है, उनमें मक्का प्रमुख है। गेहूं और चावल के बाद मक्का भारत की तीसरी सबसे बड़ी अनाज फसल है। मक्का बिहार की पूरी कृषि अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। बिहार में अक्टूबर के अंत और नवंबर की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं, जब मक्के की खरीफ फसल कटने वाली होगी। भारत के कुल मक्का उत्पादन में वर्ष 2024-25 (जुलाई से जून) में लगभग 9-11 प्रतिशत हिस्सा बिहार का रहा।
तीसरे अग्रिम अनुमानों के मुताबिक बिहार का मक्का उत्पादन लगभग 50 लाख टन था जबकि देश का उत्पादन लगभग 4.22 करोड़ टन था। वास्तव में कुल उत्पादन में मक्के की हिस्सेदारी से कहीं अधिक, बिहार में प्रति हेक्टेयर मक्के की उपज और इसके कुल उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि ने इसे राज्य की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया है। आंकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 2018-19 और 2024-25 के बीच, बिहार में मक्के की पैदावार लगभग 8 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह लगभग 2.02 प्रतिशत थी।
इसके उलट, इसी अवधि के दौरान राज्य में चावल की पैदावार में 4.45 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर देखी गई जबकि इसी अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर यह 1.35 प्रतिशत थी। राज्य में गेहूं की पैदावार में वर्ष 2018-19 से वर्ष 2024-25 तक 0.45 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर की बढ़ोतरी देखी गई जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह वृद्धि बहुत कम, 0.03 प्रतिशत थी।
राज्य के किसानों के लिए एक महत्त्वपूर्ण फसल के रूप में मक्के के उभार ने राज्य में अनाज-आधारित एथनॉलक्षेत्र में भी क्रांति ला दी है। राज्य में फिलहाल 17 अनाज-आधारित एथनॉलइकाइयां चालू हैं जिनकी क्षमता 65 किलोलीटर प्रतिदिन से लेकर 250 किलोलीटर और उससे अधिक प्रतिदिन है।
एथनॉलनिर्माताओं से बढ़ती मांग ने बिहार में मक्के के बाजार मूल्य को 2022 में लगभग 1600-1700 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2024 में लगभग 2500-2600 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था। इस साल अप्रैल से यह लगभग 2200-2250 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर स्थिर हो गया है। इसका मतलब है कि बिहार में मक्के से औसत आय में महज दो सालों में लगभग 25 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर हुई। निश्चित तौर पर मक्का, राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव के मुख्य कारकों में से एक बन गया है। देश में वर्ष 2024-25 में मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,225 रुपये प्रति क्विंटल था, जिसे हाल ही में वर्ष 2025-26 सीजन के लिए बढ़ाकर 2400 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है।
कई विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार में अनाज-आधारित एथनॉलक्षेत्र का एक और प्रभाव रोजगार पर पड़ा है। औसतन 100 किलोलीटर रोजाना की अनाज-आधारित डिस्टिलरी लगभग 225-250 लोगों को रोजगार देती है, जिनमें से 100-125 कर्मचारी होते हैं। इनमें से कई स्थानीय लोग हैं। इसके अलावा एथनॉलउद्योग ने पूरे परिवहन और टैंकर क्षेत्र को भी सक्रिय कर दिया है, जिसका उपयोग तैयार उत्पाद को कारखानों से डिपो तक ले जाने में किया जाता है। ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स लिमिटेड के सह-प्रवर्तक और इंडियन शुगर ऐंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (पहले आईएसएमए) के पूर्व महानिदेशक अविनाश वर्मा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘बिहार में अनाज-आधारित एथनॉलउत्पादकों के कारण ग्रामीण क्षेत्र में बदलाव हो रहे हैं और इसका मुख्य कारण मक्के की ऊंची कीमत, किसानों पर इसका प्रभाव और साथ ही इन उद्योगों से मिलने वाले अतिरिक्त लाभ हैं।’
बिहार में मक्के की खेती मुख्य रूप से राज्य के मध्य और उत्तर-पूर्वी हिस्सों (सीमांचल) में होती है। सहरसा, किशनगंज, खगड़िया, अररिया और पूर्णिया जैसे जिले राज्य के प्रमुख मक्का उत्पादक जिले हैं। तेजस्वी प्रसाद के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और नीतीश कुमार की जनता दल सीमांचल क्षेत्र में दो प्रमुख राजनीतिक दलों का दबदबा रहा है। अक्टूबर-नवंबर 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में, जद (यू) ने क्षेत्र की अधिकांश सीटें जीतीं क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली पार्टी एआईएमआईएम के आने से राजद को नुकसान पहुंचा था। निश्चित रूप से मक्के का अनियंत्रित आयात राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर अहम असर डाल सकता है।
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते से प्रभावित होने वाली दूसरी फसल सोयाबीन है। फिलहाल, सोयाबीन की कीमतें लगभग 3800-4200 रुपये प्रति क्विंटल चल रही हैं, जो एमएसपी से भी कम है। इस साल बोआई के मौसम से ठीक पहले, केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए खाद्य तेलों पर आयात शुल्क कम कर दिया था। इस कदम पर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्य सोया उत्पादक क्षेत्रों से नाराजगी जताई गई। सोयाबीन मध्य प्रदेश में एक अहम फसल है।
यह मौजूदा केंद्रीय कृषि मंत्री और लगभग 17 वर्षों तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान का गृह राज्य भी है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सोयाबीन की गिरती दरें और किसानों की परेशानी जैसे अहम मुद्दों के कारण ही चौहान 2017 में राज्य चुनाव हार गए थे। अब आशंका यह है कि अगर भारत-अमेरिका व्यापार समझौते के तहत सोयाबीन का दूसरा सस्ता विकल्प आयात किया जाता है तब मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में भी जन धारणा पर असर दिखेगा।