बढ़ती खपत और सोया को छोड़ अन्य तिलहनों के रकबे में कमी के कारण खाद्य तेलों के आयात में इस साल लगभग 10 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है।
इसके अलावा पाम ऑयल की कीमत में पिछले छह महीने के मुकाबले 40 फीसदी से अधिक की गिरावट के कारण भी वनस्पति तेल के आयात में बढ़ोतरी का अनुमान है। आयातित वनस्पति तेल में पाम ऑयल की हिस्सेदारी 85 फीसदी है।
आयातकों का कहना है कि विकसित देशों में भले ही खाद्य तेल की खपत में गिरावट आ रही है या वह स्थिर है, लेकिन भारत में खाद्य तेलों की खपत में बढ़ोतरी हो रही है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मूंगफली, तिल व सूरजमुखी के रकबे में पिछले साल के मुकाबले कमी दर्ज की गयी है।
मूंगफली की बिजाई इस साल अगस्त महीने के आखिर तक 50 लाख हेक्टेयर जमीन पर की गयी थी जो पिछले साल के मुकाबले 2.3 फीसदी कम है। सूरजमुखी के रकबे में तो पिछले साल के मुकाबले 30 फीसदी की गिरावट आयी है। इसकी बिजाई मात्र 4,95,000 हेक्टेयर भूमि पर की गयी है। वैसे ही तिल की बिजाई 13 लाख हेक्टेयर जमीन पर की गयी है जो कि पिछले साल के मुकाबले 9 फीसदी कम है।
तेल कारोबारियों का कहना है कि सोयाबीन की बिजाई का रकबा पिछले साल के मुकाबले इस साल बढ़ा है, लेकिन तिल, मूंगफली व सूरजमुखी से सोयाबीन के मुकाबले अधिक तेल निकलता है। दूसरी ओर फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में खाद्य तेलों की खपत में बढ़ोतरी जारी रहेगी।
हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बढ़ती महंगाई के कारण उपभोक्ताओं को परेशानी हो सकती है। लेकिन पाम ऑयल की कीमत में आयी जबरदस्त गिरावट से इसकी मांग में बढ़ोतरी की पूरी संभावना है। आयातकों के मुताबिक अन्य खाद्य तेलों में होने वाली कमी की भरपाई पाम ऑयल करेगा। कीमत में कमी के कारण सरकार को भी इसके आयात में मुश्किल नहीं होगी।
लिहाजा इस साल 5 लाख टन अधिक तेल के आयात का अनुमान लगाया जा रहा है। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाम ऑयल के भाव 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक कम होने से अधिकतर भारतीय आयातकों ने अगस्त महीने में इसकी डिलिवरी लेने से इनकार कर दिया था।