साल 2008 में इस्पात की मांग में काफी तेजी से गिरावट आई और दूसरी छमाही में कीमतें भी धराशाई होती देखी गईं। साल 2008 वैश्विक इस्पात उद्योग से जुड़े लोगों केलिए अविस्मरणीय रहा है। जुलाई से इस्पात की तेजी से घटती मांग उद्योग के लिए क्षतिकारक साबित हुआ है।
साल 2008 कर पहली छमाही में किसी ने नहीं सोचा था कि साल की अंतिम तिमाही में इस्पात का उत्पादन 24 प्रतिशत से अधिक घट जाएगा। इस्पात के उत्पादन में भारी कमी छह साल बाद देखी गई जबकि इन छह सालों में मांग में लगातार बढ़ोतरी होती रही थी।
इस्पात के उत्पादन और खपत में अप्रत्याशित कमी की प्रमुख वजह चीन रहा है। अन्य उभरते देशों, जिसमें भारत भी शामिल है, ने इस्पात उद्योग के भाग्य को सहारा दिया है। इस साल की दूसरी छमाही में मांग में थोड़ी तेजी देखने के लिए इस्पात कंपनियां अभी दबाव झेल रही हैं।
लग्जेम्बर्ग के एक दैनिक समाचार पत्र से लक्ष्मी मित्तल ने कहा कि वह साल 2009 की दूसरी छमाही तक इस्पात की मांग में सुधार की उम्मीद नहीं करते हैं।
वियव के सबसे बड़ी इस्पात कारोबारी कंपनी डुफर्को के मालिक और अघ्यक्ष ब्रूनो बॉल्फो ने इस घातु के दो सालों के परिदृश्य के बारे में जो कहा वह अगर निराशावादी नहीं तो कम से कम बहुत सावधानी से बोले गए शब्द थे।
फाइनैंशियल टाइम्स ने उनकी टिप्पणी को इस कठिन परिस्थिति में एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा की गई ‘सबसे अधिक धुंधली टिप्पणी’ करार दिया है। बॉल्फो ने कहा कि इस साल उन्हें मांग में 10 फीसदी की गिरावट की संभावना नजर आती है और अगले साल भी मोटे तौर पर मांग में वृध्दि की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
यह बात आम हो चुकी है कि ऑटोमोबाइल और निर्माण क्षेत्र का लड़खड़ाना इस्पात की मांग के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है जिस कारण कीमतें घट रही हैं और इस प्रकार कंवनियों की नकदी प्रवाह बाधित हो रही है।
बॉल्फो ने कहा कि अन्य प्रमुख क्षेत्रों में भी इस्पात के इस्तेमाल में कमी आ सकती है। हर जगह की निर्माण परियोजनाएं, जिसमें अमीरात भी शामिल है, व्यावसायिक भरोसे के अभाव में ठहर सी गई हैं।
बॉल्फो ने कहा, ‘अगर अन्य क्षेत्रों, जैसे तेल की खोज और आपूर्ति में होते निवेश को देखें जहां गतिविधियां पहले की तुलना में काफी कम हो गई हैं तो आशावादी होना असंभव लगता है।’
जुलाई मध्य में कच्चे तेल की कीमतें 147 डॉलर प्रति बैरल के रेकॉर्ड स्तर पर थीं। तब से अभी तक इसमें 70 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है और हाल ही में मॉर्गन स्टैनले ने भविष्यवाणी की है कि न्यू यॉर्क में कच्चे तेल की कीमतें इस साल 35 डॉलर प्रति बैरल रहने वाली हैं। इन वजहों से कई जानी मानी तेल कंपनियों ने विस्तार योजनाओं को ताक पर रख दिया है।
मॉर्गन स्टैनले की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कच्चे तेल की कीमतें साल 2010 में बढ़ कर औसतन 55 डॉलर प्रति बैरल हो जाएंगी और 2011 में कीमतें 85 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर होंगी। इसलिए इस विपत्ति की घड़ी में कम से कम अगले दो सालों तक इस्पात उद्योग को तेल के क्षेत्र से किसी तरह की सहायता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।’
सभी नकारात्मक पहलुओं को देखते हुए बॉल्फो निराशावादी हो सकते हैं। फाइनैंशियल टाम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि मेटल मुलेटिन रिसर्च के प्रमुख ब्रायन लेविच भी वर्तमान वर्ष में इस्पात के धुंधले परिदृश्य को देखते हुए बॉल्फो का समर्थन कर सकते हैं।
लेकिन, लेविच ने बताया कि इस साल के अंत तक इस्पात की मांग बढ़ने से अगले वर्ष उत्पादन में दो से तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। अगर अगले साल इस्पात की मांग में बढ़ोतरी होती है तो इसका श्रेय चीन की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की तेजी को जाएगा।